Wriggler Divyanshu  
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कोई कवि या लेखक नहीं हूं मैं,
अश्क नहीं इश्क़ लिखता हूं मैं।
Joined 24 December 2017


कोई कवि या लेखक नहीं हूं मैं,
अश्क नहीं इश्क़ लिखता हूं मैं।
Joined 24 December 2017
25 APR 2020 AT 22:18

डाक्टर ईश्वर का रूप होता है,
ईश्वर भी डाक्टर का रूप हो सकता है।

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30 MAR 2020 AT 23:12

कृपया कोई चाय की दुकान का नज़ारा दिखा दो। आपकी बहुत मेहरबानी होगी।

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26 MAY 2019 AT 20:54

कुछ ख़ता तो चाँद ने भी तारों से की होगी, तभी तो हमने तारों का टूटना सुना है!

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3 FEB 2019 AT 22:45

रंग साँवला,चाय का और उसका भी,
हाँ! पसंद है मुझे बेहद चाय और वो भी।

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7 JAN 2019 AT 21:14

फंस गया हूँ तेरे और तेरी यादों में, हु ब हु नन्हें पतंगे जैसा -मकड़ी जाल में;
मुसलसल कोशिशें किये जा रहा हूँ, मगर हर दफ़ा नामुकम्मल रहा तुझे और तेरी यादों को भुला पाने में।

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14 DEC 2018 AT 1:24

बन बैठे हैं कुछ समाज के भक्षक कहलाने को धर्म के रक्षक, पहुँच गए हैं सदन के गलियारे तक;
मत बांटो हमारे अपने ही 'तिरंगे' के रंगों को मज़हबों में बता 'केसरिया' को एक सच्चे हिंदू की शान और रंग 'हरे' को एक मुसलमाँ की पहचान।
ना ही है हिंदूत्व खतरे में और ना इस्लाम,ना ही है हिंदूत्व खतरे में और ना इस्लाम,
जरा सलीके से तो तुम देखो छिपा है नाम 'राम' रमज़ान में और 'अली' - दिवाली में ;
मत बांटो हमारे अपने ही 'तिरंगे' के रंगों को मज़हबों में बता 'केसरिया' को एक सच्चे हिंदू की शान और रंग 'हरे' को एक मुसलमाँ की पहचान।
-अभी जल्द ही यारों में खाई गई थी 'सिवैयाँ', और उसने भी तो थी मँगवाई दिवाली की 'मिठाइयाँ'।

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29 JUL 2018 AT 1:43

शायद,
शायद मैं गलत था,
जो मैं यों ही घंटों बिता दिया करता था उन हसीं शामों में;
थामे तेरे हाथ अपने हाथों में,
थामे तेरे हाथ अपने हाथों में,
कि हमारी खत़-ऐ-तकदीर की लकीरें मिल जाएंगी आपस में।

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28 JUL 2018 AT 19:36

केवल तू ही है मेरा बाबू-शोना,
ये है तेरा रोज-रोज का रंडी-रोना।

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5 JUN 2018 AT 0:18

तुम चाहते हो कि बेवफा शब्द को वाजिह़* करूं,
और मैं भरी महफिल में तेरा आगाज़** न करूं।

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5 JUN 2018 AT 0:10

चाहते हो कि बेवफा शब्द को वजिह़ करूं,
और मैं भरी महफिल में तेरा आगाज़ न करूं।

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