क्या मुमकिन है.....?
क्या मुमकिन है मैं, तुम बन जाऊ, तुममें, तुम बनकर ढल जाऊ।
फिर दूर जाने की बातें ना होंगी, वो महीनों बाद की मुलाकातें ना होंगी।
फिर देर से आने का बहाना ना होगा, वो घंटों प्यार जताना ना होगा।
फिर और कोई मजबूरी ना होगी, हममें और तुममें कोई दूरी ना होगी।
फिर तुम्हारा रूठ जानी ना होगा, वो घंटों तुमको मनाना होगा।
फिर ये सारी रस्में ना होंगी, वो साथ निभाने की कस्मे ना होंगी।
अगर मैं, तुम बन जाऊ..... और तुममें, तुम बन कर ढल पाऊ ।।
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