WordsofPK   (प्रवीण भारद्वाज)
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Joined 31 May 2017


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6 JAN 2022 AT 20:33

एक गज़ल
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जहाँ कैसे हुआ रौशन ये कैसा फ़लसफ़ा हैं देख
ये किसकी आँख का तारा फ़लक से जा लगा हैं देख
(Read caption)

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27 SEP 2021 AT 10:28

हमें कभी गुज़रती साँसों ने भी झकझोर दिया था
अब हम को तूफानों से भी टकराने की हिम्मत हैं

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14 JUN 2021 AT 19:23

जिस तरफ़ भी ग़म का साया होता हैं
रब ने भी कोई रास्ता बनाया होता हैं

सबकी अपनी दुनिया ज़ालिम होती हैं
सबकी दुनिया में अपना पराया होता हैं

आज डूबे समझो ये कल की गलती थी
कर्म का फ़ल बड़ी दूर से आया होता हैं

वह सख़्स यहाँ पर अकेला रह जाता हैं
असल में जिसने रिश्ता निभाया होता हैं

आग लगेगी जब घर में तब ही समझेंगे
किसने जंगल में आग लगाया होता हैं

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10 JUN 2021 AT 20:24

ठीक हैं खफ़ा होना जुदा होना ठीक नहीं हैं
इश्क होना ठीक हैं ख़ुदा होना ठीक नहीं हैं

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9 JUN 2021 AT 18:23

चलो अच्छा अपना सफ़र इतना ही था
यार! तू मेरा हमसफ़र इतना ही था

एक वक्त पर थककर लौटना पड़ता हैं
मेरा भी शाम-ओ-सहर इतना ही था

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8 JUN 2021 AT 10:06

जब क़त्ल हुआ हैं तो कातिल भी होगा
कोई ईलाज-ए-ज़ख्म-ए-दिल भी होगा

हमसे मत कहो उस से सुख़न की बातें
हम बता सकते हैं कहाँ पे तिल भी होगा

सफ़र में उम्र गुज़रे पर इसके आख़िर में
खोने वालों को आख़िर हासिल भी होगा

आज आसान हैं रास्ता तो तैयारी में रहो
मुमकिन हैं वक़्त कहीं मुश्किल भी होगा

यहाँ कोई महफ़िल ख़ाली कहाँ रहती हैं
कोई छोड़ जायेगा कोई शामिल भी होगा

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6 JUN 2021 AT 20:01

जैसी मंज़िल होगी फिर वैसा रास्ता देखेंगे
पहले लोग हालत देखेंगे फिर हौसला देखेंगे

करने वाले कर लेंगे चाहे जैसी मुश्किल हो
बाकी सारे बस अपना-अपना दायरा देखेंगे

उड़ते हैं वो छूटे हैं नये-नये पेड़ो की डाल
आलस में पड़ने वाले तो बस पिंजरा देखेंगे

काम करेंगे उनको अच्छी नींद भी आएगी
जैसा दिन गुज़रेगा वैसा ही सपना देखेंगे

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5 JUN 2021 AT 17:39

सबकी अपनी-अपनी मर्ज़ी होती हैं
जो यहाँ से अब जैसा चाहें वैसा चुने

उसकी मर्ज़ी हैं पत्थर को फूल समझे
या फिर अपने फूल से बस काँटा चुने

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3 JUN 2021 AT 19:41

एक दौर आता हैं कि राबता भूल जाते हैं
वक़्त मुश्किल आने पर वफ़ा भूल जाते हैं

समझ आता हैं किसी के भूल जाने से की
यार असल में लोग क्या-क्या भूल जाते हैं

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2 JUN 2021 AT 20:36

वो जो सुने दिल का और फैसला करे
भगवान हर उस शख्स का भला करे

हमेसा देर हो जाती हैं मुझतक आने में
उसको कहो घड़ी देखकर निकला करे

हवा तेज़ हैं पर कुछ बिगाड़ नहीं सकती
आदमी ज्यादा तेज़ हैं अग़र हौसला करे

मोहब्बत अधूरी हैं तभी तो ये मोहब्बत हैं
कैसे हर कोई हर किसी को मिला करे

ग़ुरूर हैं गर्मी पे तो सुने हम भी पानी हैं
आग को चाहिये हद में रहकर जला करे

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