'मर्द'
अहंकारी इतना कि झुका नहीं कभी किसी के आगे
और
प्रेमी इतना कि मनपसंद शख्श की चप्पल भी उठाए हाथों में
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पारदर्शी हूँ साहब हर रंग में ढलना जानता हूं।।
| Dark Minded |™
😐Exper... read more
मैं ता - उम्र अपना ग़म लिखूँगा ।
तुम बस मुझे शायर कहते रहना ।।
-श्री✨-
अब उसके दिल-ए-पाक में किसी ग़ैर की लंबी उम्र के मुतालिक़ दुआएँ होंगीं ।
सूरज तुलू से ग़ुरूब होने तलक़ 'श्री ललित' तुम्हारे मुतालिक़ बलाएँ होंगीं ।।
ला इल्मीं में ऐतबार करता रहा मैं तुम्हारे शफ़्फ़ाक़ झुठों पर गुज़िश्ता दिनों ।
किसे मालूम था मुस्तक़बिल में ये वस्ल-ए-उल्फतें मिरे मुतालिक़ सज़ाएँ होंगीं ।।
-श्री ✨-
शा'इरों की बस्ती में, मिर्ज़ा ग़ालिब का खिताब हाँसिल है मुझे।।
और तुम बेगैरत 'श्री' को नअहल लोगो की सफ में तलाशते हो।।-
चराग़ रोशन करने निकला था घर के ।
अंधेरों से 'श्री' आज मुतासिर हो गया है ।।-
माज़ी से मैंने जो सीखा वो वाज़ेह है 'ललित' ।
मुहब्बत की ख़ुशी से कभी निस्बत नहीं होती ।।-
भीगेगी जब जब भी ये ज़मीं श्री ।
बारिश की हर बरसती बूंद में तुम्हे याद आऊंगा ।।
चाह कर भी कभी तुम साथ ना छुड़ा पाओगी ।
खाब की ताबीर बन अक्सर तुम्हे याद आऊंगा ।।
मुलाकातो के सिलसिले जानें कब होंगे बरकरार लेकिन ।
मुद्दतॊं बाद भी ए जाँ पहले ठिकाने पे तुम्हे याद आऊंगा ।।
हर लफ्ज़ पे जो यूँ श्री श्री तुम करते फिरते हो आजकल ।
देखना किसी रोज़ टूटते हर तारे में तुम्हे याद आऊंगा ।।
ये खिलखिलाती हुई तसावीरें तो फ़कत फरेब है ललित ।
बेइंतेहा तो सिर्फ मेरी लिखी ग़ज़लो में तुम्हे याद आऊंगा ।।
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भीगेगी जब जब भी ये ज़मीं श्री ।
बारिश की हर बरसती बूंद में तुम्हे याद आऊंगा ।।
चाह कर भी कभी तुम साथ ना छुड़ा पाओगी ।
खाब की ताबीर बन अक्सर तुम्हे याद आऊंगा ।।
मुलाकातो के सिलसिले तो रहेंगे ही बरकरार लेकिन ।
उस छोटे तलाब के पानी मे मेरी जाँ तुम्हे याद आऊंगा ।।
हर लफ्ज़ पे जो यूँ श्री श्री तुम करते फिरते हो आजकल ।
देखना किसी रोज़ टूटते हर तारे में तुम्हे याद आऊंगा ।।
ये खिलखिलाती हुई तसावीरें तो फ़कत फरेब है ललित ।
बेइंतेहा तो सिर्फ मेरी लिखी ग़ज़लो में तुम्हे याद आऊंगा ।।-