Words By Shri   (श्री)
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Joined 1 October 2018


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30 MAR AT 2:14

'मर्द'
अहंकारी इतना कि झुका नहीं कभी किसी के आगे
और
प्रेमी इतना कि मनपसंद शख्श की चप्पल भी उठाए हाथों में

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19 FEB 2024 AT 23:25

मैं ता - उम्र अपना ग़म लिखूँगा ।
तुम बस मुझे शायर कहते रहना ।।

-श्री✨

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1 NOV 2023 AT 10:56

अब उसके दिल-ए-पाक में किसी ग़ैर की लंबी उम्र के मुतालिक़ दुआएँ होंगीं ।
सूरज तुलू से ग़ुरूब होने तलक़ 'श्री ललित' तुम्हारे मुतालिक़ बलाएँ होंगीं ।।

ला इल्मीं में ऐतबार करता रहा मैं तुम्हारे शफ़्फ़ाक़ झुठों पर गुज़िश्ता दिनों ।
किसे मालूम था मुस्तक़बिल में ये वस्ल-ए-उल्फतें मिरे मुतालिक़ सज़ाएँ होंगीं ।।

-श्री ✨

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5 JUN 2023 AT 2:01

तू सूरज, तू ही मेरा चाँद
इस निरस कवि 'श्री' का
तू आखरी बांध

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5 JUN 2023 AT 1:55

शा'इरों की बस्ती में, मिर्ज़ा ग़ालिब का खिताब हाँसिल है मुझे।।
और तुम बेगैरत 'श्री' को नअहल लोगो की सफ में तलाशते हो।।

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17 DEC 2022 AT 18:29

चराग़ रोशन करने निकला था घर के ।
अंधेरों से 'श्री' आज मुतासिर हो गया है ।।

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14 OCT 2022 AT 17:37

माज़ी से मैंने जो सीखा वो वाज़ेह है 'ललित' ।
मुहब्बत की ख़ुशी से कभी निस्बत नहीं होती ।।

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4 OCT 2022 AT 0:42

"दिल उदास हो तो..
दुनिया की रौनकें, ज़हर लगतीं हैं !"

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19 SEP 2022 AT 15:27

भीगेगी जब जब भी ये ज़मीं श्री ।
बारिश की हर बरसती बूंद में तुम्हे याद आऊंगा ।।

चाह कर भी कभी तुम साथ ना छुड़ा पाओगी ।
खाब की ताबीर बन अक्सर तुम्हे याद आऊंगा ।।

मुलाकातो के सिलसिले जानें कब होंगे बरकरार लेकिन ।
मुद्दतॊं बाद भी ए जाँ पहले ठिकाने पे तुम्हे याद आऊंगा ।।

हर लफ्ज़ पे जो यूँ श्री श्री तुम करते फिरते हो आजकल ।
देखना किसी रोज़ टूटते हर तारे में तुम्हे याद आऊंगा ।।

ये खिलखिलाती हुई तसावीरें तो फ़कत फरेब है ललित ।
बेइंतेहा तो सिर्फ मेरी लिखी ग़ज़लो में तुम्हे याद आऊंगा ।।

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31 AUG 2022 AT 16:41

भीगेगी जब जब भी ये ज़मीं श्री ।
बारिश की हर बरसती बूंद में तुम्हे याद आऊंगा ।।

चाह कर भी कभी तुम साथ ना छुड़ा पाओगी ।
खाब की ताबीर बन अक्सर तुम्हे याद आऊंगा ।।

मुलाकातो के सिलसिले तो रहेंगे ही बरकरार लेकिन ।
उस छोटे तलाब के पानी मे मेरी जाँ तुम्हे याद आऊंगा ।।

हर लफ्ज़ पे जो यूँ श्री श्री तुम करते फिरते हो आजकल ।
देखना किसी रोज़ टूटते हर तारे में तुम्हे याद आऊंगा ।।

ये खिलखिलाती हुई तसावीरें तो फ़कत फरेब है ललित ।
बेइंतेहा तो सिर्फ मेरी लिखी ग़ज़लो में तुम्हे याद आऊंगा ।।

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