सीलन लगी है दीवारों पर
मन उलझनों के अनगिनत जालों में फंसा है
सब रास्ते, सारी गलियाँ अंधेरी हैं।
प्रेम की चादर मैले कपड़ों के ढ़ेर में है
आशाओं के झोले चूहे कुतर गये
बारिश ख़यालों की नदी बहा रही है
खिड़कियाँ खुली हैं।
आँखे उदास हैं-
मन ...प्रेम करता है
तो बहाने ढूँढ़ता है
मिलने के.. तन
प्रेम करता है
तो बहाने ढूँढ़ता है
छूने के.. प्रेम
प्रेम करता है
तो बातें करता है
आँखों से.. और...जीत लेता है मन...-
जमाने ने अपने अपने हिसाब से पढ़ा होगा,
पर मैंने लिखा तो बस तुम्हें ही है...❤️🌻-
कितना वक्त लगता हैं किसी के 'जाने'
को स्वीकार करने में ?
कितने वक़्त बाद हम सहज हो पाते हैं
इस बात को मान लेने में की
अब वो हमारे साथ नहीं हैं ?
कितना वक्त लगता हैं मन के भीतर
बिखरी यादों को
सहेज कर आगे बढ़ने में ?
कितना वक्त लगता है......-
Ye जो खो बैठे हो मुझे....
किसी के लिए
वो भी तुम्हारा न हुआ
तो क्या करोगे....-
सब kuchh जिंदगी में नहीं मिलता,
कुछ चीजे मुस्कराते हुए छोड़ देनी चाहिए .......-
कविताएं जन्मती हैं,अधुरेपन से विरहपन से,
और ऋतु और उपवन से ,बदलते मौसम से,
अंतस मन मे जब तक नहीं घटती कोई वेदना की घटना,
तब तक नहीं जन्मति कोई कविता
.........❤️-
Aaz तुझे नहीं सोचूंगा,
बस यही सोचते-सोचते
तुझे दिनभर सोचा है मैंने
खैर ...... Sb अच्छा है 😊-
कभी इसका दिल रखा,
कभी उसका दिल रखा,
इस कश्मकश में भूल गए कि ख़ुद का दिल
कहां रखा…..??
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