ना दिल है ना उम्मीद ना कोई गिला है
तुमसे मिले वो पुराना सिलसिला है
ना खत है ना बाते ना कहानी बनी है
उन्हें देखे हुए जमाना हो गया है
ना जाना है ना अंजना ना पहचान है
वो यादों का खजाना खो गया है
ना रंजिश है ना शिकवा ना गुल खिला है
तेरी गली से गुजरे जमाना हो गया है
ना चंद है ना चांदनी ना कोई सितारा है
भरी महफ़िल में रोकर शायर ने दम तोड़ा है-
उनसे बात करने के लिए शायद इजाजत की जरूरत नहीं होगी ,
वो खुद ही खुद से हारकर हमारे दर पर अपना डेरा ले आए है ...-
आज तू भी तो थक गया दिल यू ही बेतुखे इंतेज़ार से,
मगर इन बेबुनियाद एहसासों में अब भी जान बाकी है ...-
शायद मेरी आशिकी में इतना असर नहीं होगा ,
यूं ही मुकद्दर खामोशी ओढ़े इंतेज़ार नहीं करवाता ....-
माना कि तुम्हे जानने पहचान ने का सबब काफी झूठा है,
मगर इश्क में झूठ भी हक़ीक़त का आईना ओढ़ लेता है...-
तुम्हें पाने का शोख नहीं है, साथ रहने का जुनून बसता है...
दिल में अंगार नहीं है मगर फिर तुम्हारी जुदाई में जलता है...
पुराने शीशे का अक्स, मुझे मिला तो सिर्फ कांच का टुकड़ा है...
परवाह जमाने की उन्हें है, हमारा तो सबकुछ दाव पर लगा है...
चौरी करने की आदत भी उनकी ओर शोख भी उनको लगा है...
हमने तो बस इश्क में रुसवा दिल का एक इल्ज़ाम अपनाया है...
तुम्हें सादगी अच्छी लगी तो ठहर गए, कुछ यूं ही संभले है...
वरना अपने मौहल्ले में हमारा नाम भी बहुत ऊंचा है...
चलो आज यही खत्म करते है इस गुफ्तगू को सनम,
वरना कहने ओर सुनने के लिए यह कफ़्फ़ारा छोटा है...-
आपका गुजारा होता होगा इन चंद लम्हों की मुहब्बत से ,
हमारे दिल को दीवाना हुए कही सदियां बीत गई ...-
इश्क आशिकों की महफ़िल में सजा करता है ,
हम बेवफ़ा की बस्ती में टूटे दिल के टुकड़े ही मिलेंगे....
लौट जाओ यहाँ से यह महफ़िल आपके किसी काम की नहीं हुज़ूर...-
किन लफ्जों में मुहब्बत बया करु तुम्हे
तू चांद है महलों का मैं एक सितारा मयखाने का...-
मर गई मेरे दिल की सारी रिदा मगर
उस एक नाम की खपत आज भी उतनी ही हैं ....-