तुम्हे बेवफ़ा कहूँ तो भी कैसे!
ना वो शख्स अपना था, ना वो प्यार बेगाना...-
उसे छुपाना इतना आसान नहीं होगा ,
दिल धड़कना छोड़ देता है उसके नाम के आगे ...-
दिल तड़पा है यार जब वो पर्दा करते है हमसे
क्या उन्हें नहीं मालूम इस दिल का मर्ज क्या है ?-
वो पर्दा करती है मगर पर्दे में भी क्या खूब लगती है
वो हुस्न है तो में दीवाना हूँ मुझे वो कातिल भी खूब लगती है...-
तुझे काफ़ी कहूँ या काफिर कहूँ
तुझ पर अफसाना लिखूं या तुझे अफसाना कहूँ....-
तू आएगा जरूर यह याद है हमको
मगर अब इंतेज़ार करना छोड़ दिया है हमने ....
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ना दिल है ना उम्मीद ना कोई गिला है
तुमसे मिले वो पुराना सिलसिला है
ना खत है ना बाते ना कहानी बनी है
उन्हें देखे हुए जमाना हो गया है
ना जाना है ना अंजना ना पहचान है
वो यादों का खजाना खो गया है
ना रंजिश है ना शिकवा ना गुल खिला है
तेरी गली से गुजरे जमाना हो गया है
ना चांद है ना चांदनी ना कोई सितारा है
भरी महफ़िल में रोकर शायर ने दम तोड़ा है-
उनसे बात करने के लिए शायद इजाजत की जरूरत नहीं होगी ,
वो खुद ही खुद से हारकर हमारे दर पर अपना डेरा ले आए है ...-
आज तू भी तो थक गया दिल यू ही बेतुखे इंतेज़ार से,
मगर इन बेबुनियाद एहसासों में अब भी जान बाकी है ...-
शायद मेरी आशिकी में इतना असर नहीं होगा ,
यूं ही मुकद्दर खामोशी ओढ़े इंतेज़ार नहीं करवाता ....-