वो कहते अविनाश बीमार ; उसपे कोई साया है,
गुलाबी आँखें में सात रंगों को दफनाया है
इंसानी जिस्म वो ;हूरों की चाहत रखता है
नादान है ; ज़मीं पे रेंगता ,क्षितिज को मापता आया है
गिरकर भी चैन नहीं ,इरादों को उसके,
चोटिल है ,बावजूद खुदको मजबूत बताया है
खुदपे लगते दावों को बस इतना ही झूटला पाया
मैं बोला ;
"बादलों पे सवार मिरा चारागर आया है;
मिरा रोग भी तो आसमानी है "
-