मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि वह सब कुछ अर्जित करना चाहता है, और प्राप्त भी करता है। संघर्ष करने वाले समय आने पर विपदा, विपत्ति के भी शिकार होते हैं। ऐसे बुरे परिस्थिति में रोने वाले सिर्फ बहाना ढूँढ़ते हैं और जो अपनी गलती स्वीकार कर झुकते हैं और आगे बढ़ते हैं वही समय आने पर कुछ न कुछ प्राप्त करते हैं।
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मेरा तो हाल यही है कि मेरा कितना भी दिन अच्छा गया हो किसी के दुखी होने पर मेरा अच्छा दिन भी व्यर्थ साबित होता है।
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आज का समाज ऐसा है कि कागज पर कितना भी स्याही चढ़ा लो, लोग कीमत सिर्फ महंगे कागज़ की लगाएंगे ।
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मनुष्य की सबसे बड़ी कमी यही है कि वो परिस्थिति के अनुसार झुकना नहीं चाहता । झुकना अभिमान नहीं है किन्तु दो लोगों के बीच गलत फहमी दूर करती है। 😊
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घर से बाहर निकला तो देखा ,
दिखावे की सबको बिमारी लगी है।
किनारे पे पड़े शव पर ,
किसी की नज़र नहीं पड़ रही है।
लोगों की झुंड तो आ पड़ी है,
पर किसी के हाथ जेब में जा नहीं रहे।
उसी भीड़ में बीमार गरीब को देख दया आ गयी,
जो उस शव को कफ़न पहना रहा था।
यह देख किसी के सिर नहीं झुके ,
ऐसा करने से उस गरीब के हाथ पल भर भी नहीं रुके।-
जब मैं बोलना चाहता था ,
लोगों ने मौका नहीं दिया।
अब मेरा कलम बोलता है,
तो लोग मुझे बोलने पर विवश करते हैं।-
ये दुनिया ही पूरी मज़ाक सी लगती है मुझे ,
दिल के करीब तुम्हारे वो है जो तुम्हे कभी भी त्याग सकती/सकता है।
और उनक लिए समय तक निकाल नहीं सकते जो हमारे लिए अपना प्राण न्योंछावर कर देते हैं।
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मुस्कराना भी मैं भूल गया था,
व्यथा से जब मैं पीड़ित था।
ईश्वर के आगे नतमस्तक हुआ,
वो भी मिल गया जिसका मुझे तलाश था।
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One should be like
abhimanyu. your physical
strength isn't decided by
your physical appearance.-