ऐ जिन्दगी..! अलविदा.......
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दर्द हैं बस अच्छे लगते हैं!!
💔 🎭 💔
कोई उम्मीद ना रखना
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रात गुजरेगी मेरी यूं किताबों संघ कहीं
कौन बोलेगा इन्हें साल गुज़रा है कोई
ख्वाहिशों की संदूक पर एक ताला है यहां
नींद अधूरी छोड़ कर ख़्वाब पला है यहां-
रकीब आया है तेरे इश्क़ की दुहाई देने...
क्या इसे भी उम्र भर का वादा किया है?-
नज़रों का कुसूर है जो मुड़ के ताकती हैं
इक दीदार को यूं ही नहीं आवारा हूं मैं..!-
मेरे बेटों को बुला देना बांटने जायदाद
मेरी तकलीफ़ें बेटियों ने बांट रक्खी है-
अधूरे इश्क़ से दूर से गुज़र जाना अच्छा है.!
हमें रकिब की नज़रों से उतर जाना अच्छा है.!
वाजीब नहीं उनको मुड़ मुड़ के देखना मेरा...
सरेआम पहचानने से मुकर जाना अच्छा है.!-
ऐ जिन्दगी मेरे साथ तेरी कितनी सख़्ती है
स्कूल वाले बस्ते में पापा की दवाई रखी है
किताबें पांच थीं और दवाईयां बारह
किताबों की गिनती कम पड़ गई यारा-
क्या लिखा है मेरी तकदीर में, सिफारिस किससे करू!
हर दिन इम्तहान नया हैं यहां तैयारी किसकी करू?-
करो कोशिश बुझाने की लगी है आग अपने मकान में
व्योम जुरूरत नहीं तेरी लोग खुद बुझायेंगे
जद में पड़ोसियों के भी मकान हैं-
तमाशा, बदनाम, बदसलूकी
क्या-क्या नहीं हुआ है..?
मेरी ख़ामोशी का बहुत मज़ाक हुआ है!-