जिंदगी की इस भागदौड़ में
खो गए कही
मैं भी,
और
शब्द भी,
जिम्मेदारियों के बोझ तले
दब गए कहीं,
मैं भी,
और
शब्द भी,
हां कुछ कुछ बाकी तो है,
लेकिन
निष्ठुर,बेजान,शुष्क
जैसे पतझड़ के झरते पत्ते
वैसे ही,
मैं भी
और शब्द भी।
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चाहा है कुछ गहरा कहना,लफ़्ज़ों की गहराई समझिए।।
"पिता"
सोचती हूँ
कुछ शब्दों में
बयां करु
पिता को
पर हर बार रह जाती हूँ
निःशब्द
जब याद आती है
वो पसीने की बूंदे
जो वो शख़्स
मेरा जीवन बनाने में
हर रोज़ बहा रहा है
आंखों के सामने आती है
वो ढाल सी छवि
जो निरंतर लड़ रही है
हर तकलीफ को
मुझसे दूर रखने,
उनके संघर्ष
लिखना चाहती हूं
तो पूछती है कलम
कैसे आकार दे पाओगे
उस शख्श को शब्दों में
जिसकी ज़िन्दगी का हर लम्हा
तुम्हारी ज़िंदगी को
आकार देने में बीता जा रहा है
तुम्हारे लिए
इस कलम को लाने में बीता जा रहा हैं।
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'About your flaws which you are hiding from me'
'I was scared that you will stop loving me as you do now'
'Yes after knowing about them I can't love you the same as now because
I'll start
Loving you more'
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मैंने रास्ते को चुना है
या रास्ते ने मुझे
मालूम नहीं,
बस हर सफ़र
को पूरी तरह
जीने की ख्वाहिश है।-
"तलाश"
कही न कही,
एक तलाश में है
हम सब
तलाश,
बेहतर कल की,
ख्याबो की,
खुशियों की,
एक खुशी मिलने पर ,
अगली खुशी की,
जिंदगी भर जारी रहती है
एक तलाश,
दूसरी ज़िंदगी की
जिसमें हम जीना चाहते है
हर तलाश के परे
सिर्फ जीना चाहते है ।-