वृंदा   (©)
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ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।।
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Joined 19 January 2020


ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।।
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Joined 19 January 2020
13 JUL AT 0:45

जो ऐहसास कमज़ोर बना दें,
उन्हें कागज़ पर जगह देना ही क्यों..!

इसलिए अब से नहीं बहेगा वो झरना,
स्रोत पर बड़ा सा पत्थर रख मुहाना बंद कर रही हूं।।

सूख जाए जज़्बाती स्याही तो सूख जाए..
मगर अब नहीं बहेगी कोई दरिया फिर से यहां !!!

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10 JUL AT 12:15

मेहनत, संघर्ष की भट्ठी में जलना मुझे स्वीकार है,
मगर बनाए गुलाम मुझे ये किसी को नहीं अधिकार है,

नहीं चाहिए ऐश- ओ- आराम की जिंदगी हमको,
मगर चाहिए सिर्फ़ मानसिक,आत्मिक मुक्ति सबको,

कभी किसी भी क़ीमत पर किसी के ग़ुलाम ना बनो,
मन व्याकुल हो तड़पे जिसके लिए कभी वो ना चुनो,

कोई जंजीर डालकर तुम्हें ग़ुलाम बना भी सकता है,
पर तुम्हारे मन,आत्मा को हाथ नहीं लगा सकता है,

यह बन्धन, शारीरिक गुलामी तो मिथ्या मात्र ही है,
मगर अपने या पराए मन का ग़ुलाम मृत्यु के पात्र ही है,

क्योंकि गुलामी सबसे पहले मार देती है आत्मा को,
और फिर ऐसे व्यक्ति बिल्कुल नहीं भाते हैं परमात्मा को,

आत्मसम्मान,स्वाभिमान तुम्हारा स्वभाव होना चाहिए,
हर प्रयत्न करो,हर मुश्किल पर यूं ही नहीं रोना चाहिए,

गुलामों की परम्परा पीढ़ियों से रही है उसको सुधारो,
इसलिए इसमें तुम्हारा भी कसूर नहीं इस पर विचारो।

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3 JUL AT 7:54

छा गई आज फिर नभ में भोर की लालिमा,
रात के दिन बहुरे मिट गई घोर सी कालिमा,
प्राकृतिक दुनिया में कोई किसी से कम नहीं,
ना कोई ज़ुल्म होता यहां ना कोई है जालिमा,

महान सूरज ने कभी भी देर नहीं की जगने में,
ना ही रात ने सोचा थोड़ी और देर रुक जाते हैं,
उजाले- अंधेरे की तो कोई लड़ाई हुई ही नहीं,
पवन ने सिर उठाया,वृक्षों ने कहा झुक जाते हैं,

बिना द्वेषभाव एक- दूसरे को हुनर सिखाते हैं,
यूं लग रहा है कि जैसे सब करतब दिखाते हैं,
सभी पात्र समान ज़रूरी माने जाते हैं यहां पर,
क्योंकि सब ईमानदारी से किरदार निभाते हैं,

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2 JUL AT 21:40

जाने वाले लौट आ कहकर हम बुला तो लें,
मगर बात ये भी तो है कि वो आना तो चाहें,

सारी शर्तें मान लें उनकी,शिकायतें सिर माथे,
मगर शर्त ये भी तो है कि वो निभाना तो चाहें,

उनके लिए ख़ुद के चुटकुले पे ख़ुद ही हँस लूं,
बन जाऊं मसखरा पर वो मुस्कुराना तो चाहें,

वो परदेशी हों तो सालों साल इंतज़ार कर लूं,
मगर आंगन में खो गए,तो कैसे उन्हें पाना चाहें,

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1 JUL AT 15:01

ओ रूठे दिल अब मान भी जा,
उठ रहे अरमां मेरे जान भी जा,
कि तुझसे ज्यादा कोई और नहीं,
तुझे छोड़ ना जाऊंगी और कहीं,

भला तुझसे भी पहले कौन होगा,
तू रूठा तो पास सिर्फ़ मौन होगा,
तूने ही तो संभाल रखा है मुझको,
तेरी एहमियत कैसे बताऊं तुझको,

बस यूं समझ बिन तेरे मैं हूं ही नहीं,
तूने जो छोड़ा, छोड़ दूँगी सब यहीं,
तुम्हारी नाराज़गी बिल्कुल जायज़ है,
मगर मेरी ख्वाइश कहां नाजायज है,

कौन नहीं चाहता कि मन्नतें पूरी हों,
कौन मांगता है ख्वाहिशें अधूरी हों,
तो तू मुझे भी समझ आस पूरी कर,
सुकून दे मेरे दिलबर से ये झोली भर,

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30 JUN AT 16:27

माना कि तुम्हें उनको खोने का डर बहुत सताता है,
इसका मतलब ये तो नहीं हर किसी को चोर बना दो,

मज़बूत बनाओ रिश्ता कि यमराज भी ना तोड़ सकें,
शक की बुनियाद पर ही घर में चोरी का ढोल बजा दो,

रिश्ते कैसे भी हों तुम्हारे मगर इंसानियत तो क़ायम रखो,
अपनी ज़ेब ख़ुद काट,हाय जेब कट गई का शोर मचा दो,

कुछ गलतियां माफ़ कर दो,कुछ भूल जाओ,बेहतर है,
बार बार भूलें याद दिला ना रिश्ते को कमज़ोर बना दो,

हर किसी को डर लगता है अकेलेपन से, तन्हाइयों से,
मना लो रूठे रिश्ते हो भले अपनी रात, भोर लगा दो,

जब तलक तुम चाहोगे, तुम्हारे रिश्ते खिलखिलाएंगे,
तुम चाहो तो संगीत,तुम ही चाहो तो उसे शोर बना दो,

और हां आख़िरी सलाह है तुम्हें ज़रा गौर से सुनना,
जो तुम्हारा नहीं,नहीं मिलेगा चाहे पूरा ज़ोर लगा दो,

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30 JUN AT 16:06

बात निकलती है तो बहुत दूर तलक जाती है,
तो बेवजह यूं ही,कुछ भी क्यों बोल दिया जाए,

शब्द संभालकर प्रदान किए जाएं तो ही भले,
विनाश होने से पहले क्यूं ना तौल लिया जाए,

किसी की खोलते-२तुम्हारी पूरी ना खुल जाए,
हर बार ही क्यूँ जिंदगियों को झोल किया जाए,

आकर हवाएं टकराती हैं बार बार खिलाड़ियों से,
क्यों ना यूं करें कि दरवाज़ा ही खोल दिया जाए,

उड़ जाने दें आज ख़्वाब इनके भी, ख्वाइश पूरी,
क्यों हर रोज़ ही इन झकोरों का मोल किया जाए,

जिंदगी सबकी एक ही होती है ऐहतियात रखिए,
क्यूँ बेईमानी और बर्बादी पर ही ज़ोर दिया जाए,

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29 JUN AT 9:12

दिलों का टूटना निश्चित ही है फिर ये झूठा खेल क्यों,
क्यों झूठी सांत्वाना झूठी रिश्तेदारियां,झूठा मेल क्यों,

जो टूट गया उसकी क़ीमत ही कहां,समूचा लाखों का,
मगर टूटा कैसे,क्यों तोड़ने वाला हकदार नहीं सलाखों का,

जुड़ना इतना आसान होता तो दो किनारे जुड़ जाता करते,
बेचारे,अकेले, तड़पते रास्ते मनमर्ज़ी से मुड़ जाया करते,

कौन किसके सामने खोले अपने इन सवालों की भारी गठरी,
कि आख़िर क्या धन्यवाद योग्य नहीं ट्रेन ढोती बेचारी पटरी,

यहां तो बस अपना सा मुँह लिए मिलते हैं लोग हर रोज़,
कि मिल जाए कोई बकरा चढ़ सके बलि करते हैं खोज,

ना कोई शिकवा शिकायत ना ही कोई प्रश्न है समाज़ से अब,
एक वही अब करेगा सब सही, कहीं से तो देखता होगा मेरा रब,

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29 JUN AT 9:02

सबकुछ भुलाकर अब ख़ुद को चुनना है,
सबसे आगे बढ़कर बस ख़ुद को चुनना है,

सब बिसर गए हैं आंखों के आंसू बनकर,
सबकुछ भूलकर अब वही आंसू चुनना है,

ना हाल पूछेंगे,ना ही खैर खबर लेंगे लोग,
भीड़ से निकल अब बस ख़ुद को चुनना है,

ये कुआं सा है या कोई अंधेरी कोठरी बंद,
जहां तड़पकर भी बस ख़ुद को चुनना है,

पलटकर देखने से और दुःख ही मिलेगा,
तो आगे देखकर,जैसे भी ख़ुद को चुनना है,

दर्द की क्या बिसात जो ठहर जाए पास,
झटकर हाथ सबके,बस ख़ुद को चुनना है,

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22 JUN AT 21:34

ख़्वाब में आते हो,हक़ीक़त में दिखते नहीं,
लगता यूं है कि सपने कहीं भी बिकते नहीं,

मगर फिर अमीरों की बस्ती याद आती है,
कि क्यों खुदा उन सी क़िस्मत लिखते नहीं,

वो तो चांद ख़रीद अपना कमरा सजाते हैं,
और हमें तो जुगनू तक कभी मिलते नहीं,

चाहत है कि तुम्हें अपना आज बना लूं मैं,
मगर तुम्हारी अदाओं में इशारे करते नहीं,

कभी तो चाहत करो नज़र भर नज़र आओ,
क्यों छुपते हो जब कहते दुनिया से डरते नहीं,

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