कहा से निकले थे, और कहा ले के आ गई
आज भी याद है वो दोस्तो के साथ होती शरारतें,
मां के हाथ का स्वाद और कहा ढूंढ़ सके?
एक लम्हा सा हो गया तेरे साथ वक़्त बिताए जिंदगी,
अब तो खुद को भी ढूंढ़ना क्यों हो रहा है मुश्किल?
बस कुछ सपने पूरे करने के लिए घर से निकले थे ए जिंदगी,
पर अब घर जाना ही सपना बन जाएगा वो किसे पता था ए जिंदगी।
बहोत सपने दिखाए तूने, बहोत सपनों को पूरा भी किया,
पर ये सपने पूरे करने की स्पर्धा में कहीं तू खो गई ए जिंदगी...
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