जीवन की पर्याप्त मुलहिं अश्रुपूर्ण अथक विश्वास को संजोए हुवे निरंतर चलने वाली यह प्रक्रिया..
अथक प्रयास में थके हारे हुवे हम, जब खुद पे विचार करते है तो लगता है ,
जीवंत का अमृत रसपान इसमें नही की हम उस धुअे को जिए जिसकी वास्तविक्ता भी उस भाव के प्रति धुंधला है
और जो आपको व्यथित कर झकझोर दे ।
आखिर इस पीड़ा और यातना का कारण प्रभु!🙏
क्यू अंतर मन की वेदना जो चीख चीख कर आहत हो रही है!
व्यथित मैं, जो बंधक हु, इस क्रूर समाज का आपसे पूछता हु की,
जीवन की इन रश्मों से आखिर आजादी क्यू नही ईश्वर? क्या कसूर है मेरा?
सच और धर्म के पथ पर चलना इतना कठिन क्यू हैं ?
केसे आहत हुवे खुद को संजोए साथ प्यार और हित की बात करू?
ये मार्ग आपने दिखाया है 🙏
मुझे और दर्द दीजिए या मुझे अपने गोद में ले लीजिए,
मैं मौन आपके सरण में नतमस्तक आपका पुत्र ।
-