Vivek verma   (~ज़बा-ए-ज़िन्दगी~)
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भरोसा न रहा दुनियां का हमें..
अपनों से ही अपने को चुरा लिया हमनें...
Joined 21 November 2018


भरोसा न रहा दुनियां का हमें..
अपनों से ही अपने को चुरा लिया हमनें...
Joined 21 November 2018
23 DEC 2021 AT 10:40

मुझें जो गम मिला ख़ूब लिखा मैंने
यूं कई कागजों पर ग़म उतारा मैंने..।।

भटके इस दुनियां में मारे - मारे जब
काँधे पर उंगलिया महसूस किया मैंने..।।

कई रास्ते गलत जा रहे थे हम चलते
किसी ने झट से हाथ थामा देखा मैंने..।।

इस क़दर गमों के ठंड में जम गया था
उम्मीद की धूप आया लिए वो सेंका मैंने..।।

वो समंदर प्यार का ग़म समा चुका था
सब बदल चुका था उसे जब देखा मैंने।।

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2 JUL 2021 AT 13:51

हम भी मुस्कुराहट से दुश्मनो को जला देते…

जो अगर होते खुश तो मुस्कुरा देते ..।।

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29 JUN 2021 AT 0:05

हम ज़्यादा ही मुस्कुराने लगे
टूट कर और उन्हें चाहने लगे

ख़बर न थी वो और पास
दूर जाने के लिए आने लगें।।

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31 MAY 2021 AT 20:48

ज़ज़्बात हालात मिरे मर्ज़ात रखे रहने दो।
बाक़ी रात सब में सब बाँट के सोता हु..।।

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23 MAY 2021 AT 23:15

किसी का होना ज़रूरी है कुछ होने के लिए
और कुछ होना ज़रूरी किसी के होने के लिए।।

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30 APR 2021 AT 13:49

किसी को कर्मो से न छाना जाएगा ....
ख़ामोशी से सबका ज़नाज़ा जाएगा..।।

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18 APR 2021 AT 23:58

उनके साँचे में ढलते गए..
उनके साँचे बदलते गए।।

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10 APR 2021 AT 21:33

अंदाज़ा क्या लगेगा गहराई का
मृत सागर हूँ कोई डूबा नहि क़भी।।

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8 APR 2021 AT 18:55

कुछ कश्मकश है ज़िंदगी मेरी
अगर समझु तो बताउ तुझे मैं..।।

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5 APR 2021 AT 22:51

कुछ इस तरह लफ़्ज़ो को नज़रंदाज़ कर देते है
बिन दिखाएँ दिल की दीवारों पर दाग़ कर देते है

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