Vivek Trivedi   (वि'वेक त्रिवेदी 'वैभव'🌼)
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Joined 26 October 2022


Joined 26 October 2022
4 MAR AT 1:11

तुम्हें पाने की चाहत कहां लाकर खड़ी कर गई
हम हमारे न रहे ,तुम हमारे न रहे

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27 FEB AT 1:11

सुलझ जाए तो सहेली

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3 FEB AT 15:19

इनायत में चांद की फीके हैं सौ अंजुम
एक मोहब्बत काफ़ी है काफ़ी हो बस तुम

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29 JAN AT 18:23

बाहर से सुरभित खिला हुआ,व्यथित हुआ भीतर मन है
तीखे कांटो से घिरा हुआ , फूलों जैसा यह जीवन है

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9 JAN AT 22:54

स्त्रीत्व की पूर्णतः
स्त्रीत्व की परीभाषा ,
यदि स्वयं के विचारों,
अधिकारों वा स्वतंत्रता का हनन है

मात्र सहनशीलता, तप त्याग ममता
संवेदन शीलता की पराकाष्ठा ही है स्त्रीत्व,

तो अच्छा है स्त्रियां,स्त्रियां न रहें
वे लगा ले दाढ़ी और मूछ

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8 JAN AT 0:16

कुछ अटक जाती हैं
गलत जगहों पर
दिन ब दिन बेजार,
फीकी पड़ती रहती हैं

कुछ उतार ली जाती हैं ,
किसी के ज़रिए
नई जिंदगी पाकर
चिड़ियों सी चहकती हैं

और कुछ को नहीं भाता
कहीं भी अटकना
कुछ को हवाओं के
तेज़ बहाव में बहना भाता है

और कुछ उन बदकिस्मत
पतंगों की तरह होती हैं
जिनको उड़ने से पहले ही
काट दिया जाता है

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30 DEC 2023 AT 18:05

ये कागज की सिलवटे
ये स्याही की छींटे
ये कलम ये दवात
वो कमरे का झरोखा
वो झरोखे से आने वाले तूफान का शोर
और शोर के बीच
विचारों और भावो की गहरी खामोशी
लेकिन मैं एक भावहीन विचारहीन विवेकहीन व्यक्ति हूं
तुम्हे लिख लेता हु तो मर्मज्ञ हो जाता हूं

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25 DEC 2023 AT 18:42

नाउम्मीदी के दौर में
चलो एक उम्मीद चुन लें

मुद्दतों से दबी ज़हन में
अनजानी अनसुनी
फरियादें सुन लें

के ऐसे खुद में सिमटकर
जीना भी भला जीना होता है...

मिले जो साथ
तुम्हारा, ए जिंदगी..
तो कुछ पल खुलकर हम भी जी लें

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23 DEC 2023 AT 21:18

कब तक सुनोगे औरों की
कभी खुद की भी सुन लो
ख्वाबों के,इरादों के
लम्हों के ताने बाने बुन लो
गम के हज़ार जरिए हैं
पर खुशी सिर्फ खुद से है
जब भी मौका मिले चूको नहीं
छोटी छोटी खुशियां चुन लो

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20 DEC 2023 AT 22:11

रंज ओ गम में
सुकून मिल जाए तो अच्छा है

मिल जाओ तुम
या मौत मिल जाए तो अच्छा है

यूं तो परेशां हैं हम
तुम्हें शाम ओ सहर याद करके

तुम्हारी यादों की मीनार
अब ढह जाए तो अच्छा है

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