एक दिन वो मेरे पास से कुछ यूं गुजारी थी।
मुझे बस उसके कानों की बाली दिखी थी।।
मैं उसकी तलाश में लगा रहा,
उस दिन तुम्हारी गली से गुजर रहा था।
तो, तुम्हारे कानों में भी वही बाली दिखी थी।।-
यूं न तुम मुझको तड़पाया करो।
एक नज़र तो दिख जाया करो।।
मैं तुमको पसंद नहीं जानता हूं।
करीब न सही,
बस दूर से ही गुजर जाया करो।।-
ये जिंदगी कुछ यूं चल रही है।
एक तरफ़ रफू कर रहा हूं तो,
दूसरी तरफ फट रही है।।-
उसकी आंखों को अपना आइना समझता हूं।
अपने घर में अब आइना कहां रखता हूं।।
जब भी जानना होता है हाल मुझे खुद का।
बुलाकर उसको, उसकी आंखों में देखता हूं।।-
क्या हुआ, क्यों बैठे हो गुमनाम से।
जिसको जाना था वो, गया अपने काम से।।-
तुम्हारा सब कुछ तो मान लेता हूं।
दरिया को समंदर कहो तो मान लेता हूं।
तुम कहते हो तुम्हारे दरिया में शोर बहुत हैं।
ये सुन मैं मेरा समंदर शांत कर लेता हूं।।-
सुकून ढूंढने का सिलसिला कुछ यूं चल रहा है।
मानो ये सुकून मेरे सामने ही चल रहा है।।
अगर थोड़ा रुक जाता सुकून तो पहुंच जाता मैं।
इस तरह मेरी जिंदगी का सफर निकल रहा है।।-
मंज़िल थोड़ी धुंधली दिख रही है।
सुना है कुछ साफ करो तो,
धूल उड़ते बहुत हैं।।-
लोग झूठ कहते हैं कि
चांद आसमान में रहता है।
कभी आओ हमारे छत पर,
चांद मेरे छत पर घूमता है।।-