तेरी जुल्फों से उलझे ख्वाब में एक शाम से पहले
तेरे इन कांपते होठों से निकले नाम से पहले
लहरों से बगावत कर चुकी पतवार से पहले
तेरी यादों में पुरी डूब चुकी इतवार से पहले
इक शोर में निकली हुई चुप्पी जरूरी थी
तेरा ही नाम आया था मेरे लहजे के कोने से
लो राधा रह गई गोकुल में फिर बदनाम होने से-
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कुछ तो बात है उन खुले जुल्फों के बीच छुपे चेहरे में
वरना एक ही छत पे बार बार कौन देखता है
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अजब सी कशिश है, उसकी बातों में
बस मुस्कुरा भर दे, तो बात कौन करता है
वो छत पर ना आए और चाँद भी ना निकले
अब ऐसी रात को, रात कौन करता है
तुम फिर ना कहना, बदल गए हो बहोत
अब काम छोड़ कर, बात कौन करता है
अलग सा सुकून था, उसकी बातों में मगर
अब भूल गए तो याद कौन करता है
बड़ी मुश्किलों के बाद, मिलना मुकर्रर हुआ
अब ऐसे में बरसात कौन करता है
घर था, छत थी, बसेरा था, सब बिक गए इश्क़ में
अब मुफलिसी में मुलाकात कौन करता है
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चाहे जैसे बना हम निभाते रहे,
बात चुभती रही हम दबाते रहे
मुफलिसी में मुहब्बत गवारा न थी,
फिर भी दिल हम उन्हीं से लगाते रहे
इश्क़ सच्चा या झूठा हमें क्या पता,
बात बढ़ती रही हम बढ़ाते रहे
ज़ख्म देने में उनको ना तकलीफ़ हो,
इसलिए साथ मरहम लगाते रहे
याद थी , दर्द था, इश्क़ था , शाम थी,
उनकी तस्वीर यूंही बनाते रहे-
सोचते तो हैं ,
कि कुछ लिखें , लेकिन लिख नहीं पाते हैं
पता नहीं क्यूं लेकिन ,
इतनी भीड़ में दिख नहीं पाते हैं
सपना तो, 7 स्टार का था,
ऊपर के तरफ खुलने वाली कार का था
चाय की टपरी से आगे , हांथ में गिलास लिए
महंगी सी एक बार का था
अधकटे सेब वाले कंप्यूटर में ,
आंखें घुसाने के इंतजार का था
गुम हो गए सब,
शायद इस संसार के धुएं में !
ख़ैर छोड़ो..
ये सारा सपना भी तो इसी संसार का था।
सोचते तो हैं ,
कि कुछ लिखें , लेकिन लिख नहीं पाते हैं
पता नहीं क्यूं लेकिन ,
इतनी भीड़ में दिख नहीं पाते हैं-
हकीकत से सच्ची भरम देख लो
क्यूं रोने लगा सा सितम देख लो
सफेदी से कागज के उब सा गया
क्यों रुक सी गई ये कलम देख लो
जाने दो दुनिया इधर से उधर
मेरी हदें , तुम सनम देख लो
गर सही ना मिला, जो मिला वो सही
अरे जाने दो किस्मत करम देख लो
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छोटे से शहर में, एक हसीं वो शाम सी
कंपकपाती पूस में, वो दोपहर के घाम सी
बड़ी बेचैनियों के बाद, लंबी वो पहर आराम सी
जैसे वो मेरे नाम सी - गुमनाम सी - बदनाम सी-
वो पूछती मुझसे,
की कितना चाहता हूं मै।
वो ग़ज़ल सबसे हसीं,
वो सफर सबसे हसीं ।
हर शोर की गहराइयों में,
वो लहर सबसे हसीं ।
शुकून वो है वो नशा,
दर्द वो है वो दवा ।
वो नहीं तो मैं नहीं,
मैं जमीं हूं वो हवा ।
कोई बोल दो उसको,
की कितना चाहता हूं मैं ।-
जिंदगी के श्वेतपथ पर ,
प्यार क्या संसार क्या ।
खुद खेल हूं फिर खेलना क्या ,
जीत क्या और हार क्या ।
मै मुशाफिर, तुम ही जानो,
इश्क़ क्या घर - बार क्या ।
दिल समंदर हो गया जब ,
नाव क्या पतवार क्या ।
मै नासमझ तुम ही बताओ ,
फूल क्या तलवार क्या ।
जिंदगी के श्वेतपथ पर,
प्यार क्या संसार क्या ।
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चलता रहा इश्क़ भी , व्यापार भी चलता रहा
तेरे मेरे दिल्लगी से प्यार भी चलता रहा ।
वो जख्म भी देते रहे , उपचार भी चलता रहा
जुस्तजू चलती रही इजहार भी चलता रहा ।
अल्फ़ाज़ मेरे रुक गए , दीदार ही चलता रहा
काफिला रुक सा गया संसार ही चलता रहा ।
आजम- ए- फ़िरदौस से फरियाद भी चलती रही
मुख्तलिफ था ये सफर , अंजाम भी चलता रहा ।
हो गए वो लाजमी , इकरार जो चलता रहा
मै भी बोलो कब रुका , अय्यार था चलता रहा ।
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