Vivek Sharma   (Author Vivek Sharma)
203 Followers · 31 Following

www.facebook.com/authorviveksharma
Joined 11 December 2016


www.facebook.com/authorviveksharma
Joined 11 December 2016
11 APR AT 12:42






उम्रदराज़ होने लगे हैं , कुछ अब अपने ख़्वाब भी ,
तलब बाक़ी ,ख्वाहिश मुकम्मिल होने के बाद भी !

आरज़ुओं के ढेर पर , आग अमूमन लगने को है ,
हाथ बस बढ़े नहीं है , चिंगारी लेने के बाद भी !

क्या करना था,और क्या करते रहे उम्र भर हम भी ,
नींदों में ही रहे शायद , जाग जाने के बाद भी !

फ़ुर्सत मय्यसर ना हो पायी , मेरे शहर को कभी ,
नींद ना आयी इसे कभी ,रात हो जाने के बाद भी !

आग बरसती है अब ,गर्मियों के मौसम में यहाँ भी ,
छाँव ढूँढतें हैं लोग अब,पेड़ कट जाने के बाद भी !

भरोसे की शक्ल इख़्तियार कर, आता है धोखा ही ,
लोग पलट जाते हैं यहाँ , इत्मीनान आने के बाद भी !

ढूँढ रहा हूँ ख़ुद को मैं , दूसरों के प्रतिबिम्बों में ,
पहचाना नहीं ख़ुद को,आईना देख लेने के बाद भी !!

विवेक शर्मा




-


29 FEB AT 10:39






#AAP #arvind #kejriwal

चले थे लड़ने जिससे , उसी से यारियाँ हो गई,
आपकी बातें भी सारी, सिरे से ज़ाया हो गयीं !

क़समें खा खाकर तुम , खड़े थे जिसके ख़िलाफ़,
इश्क़ उन्हीं से कर बैठे,ये क्या मजबूरियाँ हो गयीं !

वो तोहमतें सच थी ,या किसी कहानी का हिस्सा थीं,
जिनकी परछाई तुम्हें गवारा नहीं,वही हमसाया हो गई !

बंगला तुम्हारा,गाड़ी तुम्हारी,हुकमरानी भी ठीक है,
ले देकर एक ग़ैरत बची थी ,वो भी स्वाहा हो गई !

मफ़लर,खांसी,स्वेटर,चप्पल,और नीली छोटी सी गाड़ी,
सीढ़ियाँ थी सियासत की,चीज़ें खूब दिखावा हो गयीं !

ठगी हुई लग रही है दिल्ली,ठग के राजा बनने के बाद,
पानी,बिजली,सड़कें ,सौहार्द, बातें सारी छलावा हो गयीं !!

Vivek Sharma



-


19 AUG 2023 AT 10:05


थक क्यों नहीं जाते इस, ज़माने से ,
बात क्यों कहते हो किसी बहाने से !

वो निकलेगा तो तबाह, कर सकता है,
दर्द मिटता नहीं कभी भी, दबाने से !

अजनबी की तरह , देखता है ये शहर,
बाज़ आता नहीं कभी , हमें सताने से !

हर रिश्ता गँवा चुका हूँ, इन मोडों पर,
बचा रहा हूँ अब ख़ुद को गँवाने से !

अनजाने से लगते हैं, रोज़ मिलने वाले,
यहाँ अपना नहीं होता कोई गले लगाने से !

वो भी हैरां होंगे जब देखेंगें इस तरफ़ ,
शहर वो शहर नहीं रहता, बस्तियाँ बसाने से !

मैं रोज़ उम्मीद का दामन थामे, चल पड़ता हूँ,
सितारे काम के नहीं होते केवल टिमटिमाने से !

-


8 AUG 2023 AT 20:18





बहुत कुछ चाहिए जब ज़िंदगी से ,
मायूस ना हों, तब कभी किसी से !

वक़्त की फ़ितरत में है,बदल जाना ,
हाथ आता नहीं ये , कभी किसी के !

मुख़्तसर सी है ज़िंदगी, अपने हाथ ,
जी लीजिए ज़रा इसे ,हंसी ख़ुशी से !

चार लोग, चार तरह की बातें करेंगें ,
ग़ौर क्या करना , बेवजह किसी पे !

रास्ते अपनी मंज़िलें ,बना लेते हैं ख़ुद ,
चलते रहिए बस , बेझिझक किसी पे !

कौन है साथ आपके, कहना मुश्किल है ,
अपने पर भरोसा रखिए, आप अभी से !

महफ़िलों की रंगत,एक सी रहती नहीं कभी,
हर रंग की तवक्को कीजिए , आप सभी से !!

विवेक शर्मा







-


13 JUL 2023 AT 17:09










“ नदी किनारे के छोटे मकान,
कच्ची झुग्गियों ,और हज़ारों परिवार,
डूब जाएँगें , बाढ़ आने पर,
तब महल से निकलेंगे ,
सत्ता का सुख भोगने वाले ,
डूबते लोगों को ,
शब्दों की रोटी देने के लिए,
आश्वासनों का घर देने के लिए,
दिलासों का धन देने के लिए ,
कल्पनाओं का बिस्तर देने के लिए,
प्रपंचों की नींद देने के लिए ,
बच्चों को झूठे सपने देने के लिए ,
और अगले चुनाव में ,
वोट लेने के लिए ,
सत्ता में रहने वाले लोग ज़रूर निकलेंगे ,
बाढ़ आने पर , मदद के लिए ,
बाढ़ आने पर , मदद के लिए !

विवेक शर्मा








-


1 JUL 2023 AT 9:22


“ एक उम्र लग जाती है,
वो बनने में,
जहां ज़िंदगियों,
को बचाया जा सके,
अश्रु भरी आँखों में,
आशा का दीप जलाया जा सके ,
गमगीन होंठों पर ,
मुस्कान को बैठाया जा सके ,
और मृत्यु से द्वन्द कर ,
नवजीवन किसी को
दिलाया जा सके ,
एक उम्र लग जाती है वो ,
वो बनने में “

#Happy #DoctorsDay

Vivek Sharma

-


28 JUN 2023 AT 18:34

We never dare to Eat anything
of Expiry Date
But All Non Vegetarian food ,
are Eventually “ EXPIRED “ beings !!

-


26 JUN 2023 AT 10:15













ख़्वाहिशों का बोझ उठाये हुए है , मेरा शहर ,
मेलों के बीच भी मुरझाये हुए है , मेरा शहर !

बंधा के उम्मीद के धागे, बुला लिया यहाँ हमें,
और अब तेवर हमें ही दिखाए है ,मेरा शहर !

चेहरे दिखाने के कुछ हैं ,बताने के कुछ और,
रंग रोज़ बदलकर मँगवाए है , मेरा शहर !

चेहरों पर रसूख़ ज़रूर है, लेकिन सुकून नहीं ,
हर आज़माइश पर तमतमाये है , मेरा शहर !

किताबों की बातों को, आज़माने देता नहीं कभी,
फ़लसफ़े अपने ही सिखाये है , मेरा शहर !

क़ीमती बहुत है ,यहाँ की ज़मीं और आबो हवा,
नसीब से ही किसी को बुलाये है , मेरा शहर !

पूछोगे तो बताएगा नहीं, यह कामयाबी का मंत्र,
सबको राह अलग बताये है बारहा, मेरा शहर !!

विवेक शर्मा








-


19 JUN 2023 AT 19:26



पिता
एक अदृश्य शक्ति सी काम करती है,
पिता की साधना , कब आराम करती है,
अपने बीज को , अपना दीयित्व मान,
वो लगा रहता है ,
नन्हे अंकुरित बीज को पौधा बनाने में
रक्षा कर पौधे की उसे वृक्ष बनाने में,
संसाधन जुटाता रहता है,
उसके लालन पालन में ,
दे देता है तिलांजलि ,
अपनी इच्छा बताने में,
गर्म धूप सा जलता है उसे बढ़ाने में,
स्वयं बन जाता है मिट्टी और पानी,
ज़मीं नये पौधे को दिलाने में ,
हवा का झोंका भी वही है ,
ग़लतियों पर रोकता भी वही है ,
अनुभव बाँटता रहता है ,
बिना यह भाव की,
उसके हिस्से में अच्छाई आयेगी या बुराई,
उसका योगदान , क्या स्मरण रह पाएगा ?
एक पिता जो उलझा है परविरश में ,
वो बच्चों को कहाँ दिख पाएगा ?
वो एक अदृश्य शक्ति सा ,
एक जीवन संवारने लगता है,
और वो जानता भी है की,
पिता बनने की क़ीमत नहीं होती ,
यह तो आहुति है स्वयं की,
ख़ुद को न्योछावर कर,
छोड़ जाना है अपना बीज ,
एक अदृश्य शक्ति, अदृश्य मूल्य,
अदृश्य संस्कार
और अदृश्य आधार के साथ ,
पिता होना अदभुत अनुभव है,
उसके होने से ही जीवन का ,
होता नव उदभव है “

विवेक शर्मा

-


18 JUN 2023 AT 23:57



रातभर , मैं रात से बात करता रहा,
अपनी तनहाइयों से मुलाक़ात करता रहा !

पतझड़ को जाते कभी, देखा नहीं ज़िंदगी ने,
मेरा बादल , कहीं और बरसात करता रहा !

कैफ़ियत यूँ थी की मायूसी को पनाह ना दी हमने,
ख़ुशियों से अक्सर मैं, सवालात करता रहा !

बहुत आसान ज़िंदगी से भी , ऊब हो जाती है,
चुनकर अंजान रास्ते,मुश्किल हालात करता रहा !

उसकी गली से गुजरता,देखता दूसरी ओर लेकिन,
इश्क़ के खेल में मैं भी , शह और मात करता रहा !

एक मुस्कान ले आता चेहरे पर, उसका हर ख़्याल,
वो दूर होकर भी बारहा , यह करामात करता रहा !!

विवेक शर्मा

-


Fetching Vivek Sharma Quotes