उसकी यादों को खारिज़ कर भूलना चाहता था
मैं एक बंद दरवाजा था जो खुलना चाहता था
सूरज की तपिश में सुख कर मुरझा गया 'विवेक'
मैं एक सतरंगी फूल था जो फूलना चाहता था-
तू जाने तो तेरा हूँ वरना गुज़रा सवेरा हूँ
ओस की बूंद हूँ
छू ले तो तेरा ... read more
कलम हाथों से छूटती नहीं मेरे
लब्ज़ों ने रूह पर कब्जा जमा रखा है,
तेरे नाम से रखा था जो संभाल कर
जुबां ने अब तक उसे नग़मा बना रखा है
टूटने लगे हैं दिल के दरवाजे-खिड़कियां
ख्वाहिशो ने यहां भी मजमा जमा रखा है,
चोरी की नीयत से आया था वो शक़्स मेरे घर
दर्द-ए-तन्हाई ने उसे अपना मेहमां बना रखा है,
अपना है और नही भी है वो शहर 'विवेक'
सिहय-बख्तों ने जहां मजमा जमा रखा है।-
मेरा ख़्याल है कि तुझमे शामिल हूँ मैं
तुझमे शामिल हूँ मैं...ये बस मेरा ख़्याल है-
मेरा ख़्याल है कि तुझमे शामिल हूँ मैं
तुझमे शामिल हूँ मैं...ये बस मेरा ख़्याल है-
"लोकप्रियता" योग्यता पर हावी है...
क्या सही है क्या गलत है इस बात से कोई फर्क नही पड़ता फर्क तो इस बात से पड़ता है कि भीड़ क्या दोहरा रही है, और सबसे मजे की बात की भीड़ खुद भी नही जानती की वह जो बात दोहरा रही है वो क्यों दोहरा रही है, भीड़ केवल तथाकथित लोकप्रिय पर विश्वास करती है, और "लोकप्रियता" भीड़ पर अपना मनचाहा नियंत्रण बनाये हुए है...चाहे राजनीति हो, कला हो शिक्षा या कोई भी क्षेत्र हो... बुद्धि ने तार्किकता का त्याग कर दिया है-
दीवाने और भी हैं मेरे ऐ शराब तू अकेली न है
मेरे यारों की महफ़िल है ये तू अकेली न है
न सोच की तेरे बिना हम कुछ भी नही
ये सोच की मेरी वज़ह से ही तू अकेली न है-
"खुशगवार बहता था निश्छल जिसका पानी
नदियों में अब नही रही वो रवानी आजकल"-
मैं सम्भल नही पाता, तुझसे संभाला नही जाता
नशा इक दूसरे का हमसे यूँ उतारा नही जाता
एक मुद्दत से इंतज़ार है तेरा तू मिल तो कहीं
ऐ नसीब तेरे बिना अब दिन गुज़ारा नही जाता-
कदम दर कदम हम संभलते गज़ब थे
अंदाज़-ए-सितम पर मचलते गज़ब थे
हुआ जो रूबरू हमसे एक समुंदर शैतानी
फ़िर ख़ाक में जो डूबे राख मलते गज़ब थे
दौड़ते दौड़ते फिर सफ़र दर सफ़र
वो खुशियों के पल भी गुज़रते गज़ब थे
मुझको मालूम था हर मुसीबत टलेगी
ये सोचते सोचते हम टहलते गज़ब थे
जो बीता सो बीता हम गिला क्यों करें
चोट खाते हुए भी हम बहलते गज़ब थे-
हाँ मैं ही लंकेश हूँ
दशकंध हूँ दुर्गुण द्वेष हूँ
तू मुझे मारने आया है
क्या तुझमे राम समाया है
यदि हाँ तो मेरा वध कर दे
धड़ और शीश अलग कर दे
कर दे पूरा लहूलुहान
थर थर कांपे धरती शमशान
दृश्य देख कर डरे इंसान
लहू और पानी एक समान
ऐसा अंत तू कर दे मेरा
बुराई का न हो कोई सबेरा-