सुकून से माँ के पास बैठे तो ज़माने निकल गए,
होश संभालते ही बच्चे कमाने निकल गए,
नए शहर की नई धूप में घर सा आराम था,
कहीं से मिट्टी के घड़े कुछ पुराने निकल गए...
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शाम जाते जाते अपने पीछे
एक सड़क छोड़ गयी थी,
कतार में लगी गाड़ियों के बीच,
ज़हन की पखडंडियों में चुप चाप,
कोई चल रहा था,
उतनी शिद्दत से चाँद भी सुर्ख नहीं हुआ था,
जितनी शिद्दत से चाँद की तस्वीर खींची थी उसने,
एक अर्से बाद किसी अमावस की रात,
फोन की गैलरी में वो चाँद फिर रोशन होगा,
और ज़हन की पखडंडियों में चुप चाप,
चलने लगेगा कोई.....
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मैंने आँगन में कोई भी ऐसी चीज़ तो बोई नहीं है,
फिर किसकी हरक़त से खिड़कियाँ सोई नहीं हैं,
मुंतज़िर हैं दर-ओ-दीवार किसी साए या भनक की,
एक चैन है जो उठके कहता है बाहर कोई नहीं है..-
दिल-ए-बेताब ज़रा सुन, आहिस्ता आहिस्ता,
उठा है कहीं से जुनून, आहिस्ता आहिस्ता,
मंज़िल से हैं बेखबर, ये और बात है,
सफ़र दे रहा है सुकून, आहिस्ता आहिस्ता...-
एक पहर की बारिश थी, भीगा आँगन छोड़ गयी,
मुरझाई सी शाम कोई, दिन का दामन छोड़ गयी,
कुछ अर्से के बाद लिए, भूली बिसरी याद लिए,
रात सिरहाने बैठी थी, भारी सा मन छोड़ गयी।।-
December में किसी आँगन सा है तू,
और कुछ ना बन सका, तो दोपहर बन जाऊँगा.....-
କର୍ମ ପାଇଲା ପ୍ରଗତି ପଥ,
ମୁକ୍ତା ଆଣିଛି ଜୀବିକା ରଥ ।
ଉନ୍ନତ ସମାଜ ଉନ୍ନତ ନାରୀ,
ମୁକ୍ତା ଯେବେଠୁ କାର୍ଯ୍ୟକାରୀ ।
ଖୋଜି ଖୋଜି ଓଡ଼ିଶା ର କୋଣ ଅନୁକୋଣ,
ନିଯୁକ୍ତି ପାଇଲେ ସହରୀ ଗରିବ ପରିବାର ।
ମହିଳା ମାନଙ୍କୁ କରି ଏକତ୍ରିତ,
ସଶକ୍ତିକରଣ ର ଏକ ନୂତନ ପାହାଚ ।
ପଦ୍ମାଳୟା ଚୌଧୁରୀ
ପ୍ରକଳ୍ପ ସଂଯୋଜକ
ସୁନ୍ଦରଗଡ଼ ପୌରପାଳିକା-
धूप की चटनी चाट के देखें ?
आधा पौना बाँट के देखें ?
जाग के कितने पहर गुज़ारे,
रात को दिन से छाँट के देखें ?
सोच का दलदल खींच रहा है,
वक़्त भी पल्कें मीच रहा है,
साल महीने साथ बिताए,
उम्र भी थोड़ी काट के देखें ?
धूप की चटनी चाट के देखें...
खौफ़ ना था कुछ खोने का,
और कुछ पाने को बागी था,
अब मोह से लतपत बैठा है,
कल तक जो बैरागी था,
ज़िद्दी है मन बच्चे सा,
माँ की तरह डाँट के देखें ?
धूप की चटनी चाट के देखें ??-
इसी खौफ़ में रहता है रहनुमा मेरा,
मंज़िल से है ना सफ़र से राब्ता मेरा,
ले तो आया है भँवर से दूर मुझको,
मगर डूबे बिना क्या सुनेगा क़िस्सा मेरा,
अधूरे ख़्वाब, बेचैन रातें, ला-हासिल उम्मीदें,
भला कैसे उठाएगा इतना ख़र्चा मेरा,
समेटेगा किसी रोज़ तो इल्म होगा उसे,
बिखरा हुआ है मुझमें क्या क्या मेरा,
इसी खौफ़ में रहता है रहनुमा मेरा....
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पास बैठ कर मेरी कहानियाँ सुनती है,
कभी मेरे तजुर्बे, कभी ख़ामियाँ सुनती है,
रात पल पल का हिसाब माँगती है मुझसे,
नींद पल पल में मेरी सदियाँ सुनती है ।।
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