इस तन्हाई से डर है लगता,
जैसे कोई ताक रहा हो,
रात भी चैन से सोने ना दे,
जैसे अँधेरा झांक रहा हो,
धड़कन, धड़कन कम है लगती,
धड़कन जैसे काँप रही हो,
सारे तारे भीड़ की दुनिया,
वो दाइम जो ख़िलाफ़ रहा हो,
सारी भीड़ ही कोस रही है,
जाने क्यों इस जलते से क़मर को,
जैसे नूर कोई कला ना हो,
हाँ ये नूर तो मानो कहर हो।
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मेरी मिसरा-ए-उला तो हो ही,
तुम मिसरा-ए-सानी भी बनना,
हाँ मेरे शेर से लेके ग़ज़ल तक,
और हाँ, बस तुम ही कहानी बनना।
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रहता है शुल्क दिये बिन ही वो मन के मकाँ में,
आरज़ू इश्क़ की पाली है दिल ए नादाँ ने,
शायरी की बड़ी दीवानी है वो, जब से सुना,
हर्फ़ों की माला सजाई है दिल ए नादाँ ने।-
एक यही वो रिश्ता है जिसमें कुछ कच्चा नहीं लगता,
माँ के प्यार से ज़्यादा तो कुछ भी सच्चा नहीं लगता,
सारी की सारी दुनिया तो माँ में ही समायी हुई है,
माँ ही तो रब है, माँ के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता,
तपती गर्मी ही हो या चाहे काफ़ी सर्दी ही हो,
हर दिन ही करती है रसोई, तबियत कैसी भी हो,
करते रहना है माँ की इज़्ज़त स्थिति चाहे जो भी हो,
माँ से है बढ़कर कौन बड़ा, अल्लाह, भगवन, रब ही हो।
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ये ज़मीं मेरी रहने दो,
आसमां मेरा रहने दो,
तूम तो जहाँ हो मेरा,
ये जहाँ मेरा रहने दो,
चुप हूँ कब से, अब कहने दो,
ग़म के आशियाँ ढहने दो,
बाद भी ना बाहम रहे,
अब तो बाहों में रहने दो।
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तुम्हारे और मेरे साथ हो पाने की चाह किसी पिछड़े गाँव की तरक्की के जैसे है,
इसमें देरी ही देरी है।-
मैं अब क्या ही कहूँ कि,
ये जुदाई नहीं भायी,
सावन तो आ ही गया,
पर वर्षा नहीं आयी।
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मैं (अस्तित्व) को समझ पाने के लिए,
मैं (अहंकार) के पर्दे को हटाना ज़रूरी होता है,
' ग़लत ' जो है वो ' सत् ' नहीं हो सकता,
और ' सत् ' कभी भी ' ग़लत ' नहीं हो सकता।
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मेरा ये दिल बिखरता ही रह जाता है,
रोज़ आ कर इसे तुम सजाया करो,
आँसू हर वक़्त गालों पे रहते ही हैं,
रोज़ आ कर इसे तुम मिटाया करो।
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