Vivek Kumar Prajapati   (विवेक "विशू")
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बहुत असर है शब्दो के जादू मे...और मै वो हुँ जो थोड़ा बहुत जादू जानता हूँ...
Joined 3 July 2018


बहुत असर है शब्दो के जादू मे...और मै वो हुँ जो थोड़ा बहुत जादू जानता हूँ...
Joined 3 July 2018
15 MAR AT 13:56

कई लोग ऐसा कहते है....
कि हमारा कोई कुछ बिगाड़ नही सकता...
सत्य है...
लेकिन तब तक जब तक आपने किसी का कुछ बिगाड़ा न हो...

खुश रहो खुश रहने दो...
वरना आँसू का हिसाब तो गुणे में होता है...
जोड़े में नही...

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3 JAN AT 16:42

अपनी हकीकत और राज़ को छुपाने की खातिर अपने व्यक्तित्व पर लोगों ने पहरे पर पहरा बिठा लिया...
कोई घायल समझकर वार पर वार न करे इसलिए हमने भी अपने बेबस चेहरे पर बेफिक्री का चेहरा लगा लिया...

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28 DEC 2023 AT 3:05

लोगों से मिलने का मेरा सलीका कुछ इस कदर बदल गया...
वो सिर्फ मेरी एक बात सुनकर मेरी जान के पीछे पड़ गया...
बहुत सोचते सोचते मैं कब और कौन से भवर में फँस गया...
उसके, मुझे रुलाने के प्रयास को देख, मैं बड़ी तेज़ हँस गया...
मारे तिलबिलाहट के वो मेरे विरुद्ध ऐसी ऐसी चाल चल गया...
मेरे सामने मेरी ख्वाहिशों की लाशें बिछाकर, उनपर लेट गया...
उसकी हरकत देख मैं ताली बजाकर उसके बगल में बैठे गया...
मेरी हिमाकत देखा, उसका चेहरा गुस्से से आग बाबुला हो गया...
अगले ही पल वो हुआ, जिसका मुझे पहले ही अंदेशा हो गया...
वो मुझे वेदना और विलाप सुनाना चाहता था, मैं बहरा हो गया...
जब वो मुझे, द्वेष-स्वार्थ दिखना चाहता था, तब मैं अँधा हो गया...
सब कुछ से हार मान कर, आखिर वो मुझे अकेला छोड़ गया...
खुश हुआ की आखिरकार, मैं जिंदा लाश बनने से बचा गया...
लेकिन इस पूरे खेल में पता नहीं, कैसे मेरा बचपना मर गया...

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28 MAY 2023 AT 12:47


तन पीड़ा से और मन दुविधाओ के वार से क्षतिग्रस्त हो रहा है....
कितना स्थिर होने की कोशिश करूँ, अस्थिर मन नहीं संभल रहा है...

ऐसा तो कभी हुआ नहीं हमारे साथ, जो अनुभव आज हो रहा है...
शायद कोई बहुत करीबी रूठा है हमसे, जो हमे बददुआऐं दे रहा है...

पीड़ा की तीव्रता बढ़ रही और कर्म का ये फल बड़ा मिठा लग रहा है...
बस इसी बहाने ही सही मेरे प्रभु के सानिध्य में मेरा उपचार हो रहा है...

मेरे करीबी रूठ मत मुझसे, मेरे प्रभु के दरबार में तेरा न्याय हो रहा है...
एवं बड़े ध्यान से देख लो न्याय को, मेरा कर्म मुझे कैसा दंड दे रहा है...

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25 JUN 2022 AT 1:21

सभी घाव तन का कुछ भर सा गया है...
हो सकता है राहत की रूत आ रही है...
लगता तो यही है लेकिन...
शायद सच नहीं है...
मन की व्यथाओं का अंत हो गया है...
मन में शांति की तरंग सी घुल रही है...
लगता तो यही है लेकिन...
शायद सच नहीं है...
एकदम से सब कुछ बदल सा गया है...
यह हवा है जो, मेरे हक में चल रही है...
लगता तो यही है लेकिन...
शायद सच नहीं है...

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27 FEB 2022 AT 0:38

सपनो में सफेद अश्व जिसके कोमल दो पंख हो...
जिस पर स्वार होकर अकसर राजकुमार आतें हैं...
किसी के सपने न उजड़ जाए कभी हमें देखकर...
इसलिए हर जगह अपना चेहरा छिपाकर जातें हैं...

"मैंने अपनी दिल की बात सुनकर बहुत अच्छा किया"...
प्रेम सफल होने पर लोग दिल को हकदार बतातें है...
"मेरा दिमाग खराब होगया था जो तुमसे प्रेम किया"...
प्रेम असफल होने पर दिमाग को गुन्हेगार ठेहेरातें हैं...

काम हृदय का धड़कना और शरीर में रक्त संचार...
यही वो सब कार्य है, जो हृदय के दायरे में आतें हैं...
दिमाग ही है जिम्मेदार चाहे जंग हो या चाहे प्यार...
"प्रेम करना है हृदय का काम" ये बेकार की बातें हैं...

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15 OCT 2021 AT 16:37

हर साल मेरा पुतला बनाकर मुझे दशहरे पर जलाने वालो...
जो मैं तुम्हारे अंदर हुँ बस उसी को एक बार जलालो...
और जिस दिन सबने मुझे जला दिया खुद के अंदर ही...
उसी दिन कलयुग खत्म हो जाएगा चाहो तो लिखवा लो...

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3 OCT 2021 AT 23:28

कुछ पुराने ज़ख्म हरे हो गए,
ज़ख्म देने वाले को देखकर...
उन आँखो ने भी आँसू बहा दिए,
जिन्हे हमने रखा था रोक कर...
बस उन कदमो का शुक्रिया
जो दुर ले आए हमें सही वक्त पर...
वरना अगर देख लेते वो हमें,
तो हम चले जाते
अपने ज़ख्मी जिस्म को छोड़कर...

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17 SEP 2021 AT 1:36

हमे छोड़ दो हमारे हाल पर...
कितना टुटें हुए हैं हम, तुम ना समझ पाओगे...
गौर करना तुम हमारी बात पर...
अगर कभी समेटोगे तुम, तो हम तुम्हे चुभ जाएगें...

न चलना तुम हमारी राह पर...
क्योकि इसके अंत तक, तुम ना पहुँच पाओगे...
उठाएँ ना हमें बिखर जाने पर...
हमें जितना बटोरोगे तुम, हम उतना बिखर जाएगें...

जमें बैठे हैं हम गरम रेत पर...
क्या पता है हमारा, क्या कभी तुम बता पाओगे...
तेज़ी से पिघलेगें उस रेत पर...
जबतक पहुँचोगे, तबतक हम रेत में कहीं खो जाएगें...

विचार करना मेरी बात पर...
जो पहले ही तड़प रहा, उसे तुम क्या तड़पाओगे...
मलहम तो जलता है जख्म पर...
अकेलापन इलाज है हमारा, इकदिन सब समझ जाएगें...

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9 AUG 2021 AT 23:51

जलाया था दीया हर बार मैंने, इस अंधेरे से डर-डर के...
न अंधेरा गया, न डर गया, तेल खत्म हो गया, दीये में भर-भर के...

संभलने की कोशिश में, मैं ठोकरे खाता रहा दर-दर के...
न ठोकरे थमी, न कोशिश थमी, संभलता रहा मैं गिर-गिर के...

मदद की आश में मैंने, खटखटाए दरवाजे कई घर-घर के...
न दरवाजा खुला, न भाग्य खुला, मैं जीता रहा बस मर-मर के...

मेरे दुखों की तुफान में, दर्द के सैलाब में सफर कर-कर के...
लगता है मेरा देवदूत भी थक गया, मेरे दुख-दर्दों को हर-हर के...

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