जलाया था दीया हर बार मैंने, इस अंधेरे से डर-डर के...
न अंधेरा गया, न डर गया, तेल खत्म हो गया, दीये में भर-भर के...
संभलने की कोशिश में, मैं ठोकरे खाता रहा दर-दर के...
न ठोकरे थमी, न कोशिश थमी, संभलता रहा मैं गिर-गिर के...
मदद की आश में मैंने, खटखटाए दरवाजे कई घर-घर के...
न दरवाजा खुला, न भाग्य खुला, मैं जीता रहा बस मर-मर के...
मेरे दुखों की तुफान में, दर्द के सैलाब में सफर कर-कर के...
लगता है मेरा देवदूत भी थक गया, मेरे दुख-दर्दों को हर-हर के...
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