अब हवा भी दवा सी लगने लगी है...
बुरा जो हुआ था सब धुआँ हो गया है...
जब से बाबा के गोद मे सर रखा है...
सच तब से मेरा मन बेफिकर हो गया है...-
कई लोग ऐसा कहते है....
कि हमारा कोई कुछ बिगाड़ नही सकता...
सत्य है...
लेकिन तब तक जब तक आपने किसी का कुछ बिगाड़ा न हो...
खुश रहो खुश रहने दो...
वरना आँसू का हिसाब तो गुणे में होता है...
जोड़े में नही...-
अपनी हकीकत और राज़ को छुपाने की खातिर अपने व्यक्तित्व पर लोगों ने पहरे पर पहरा बिठा लिया...
कोई घायल समझकर वार पर वार न करे इसलिए हमने भी अपने बेबस चेहरे पर बेफिक्री का चेहरा लगा लिया...-
लोगों से मिलने का मेरा सलीका कुछ इस कदर बदल गया...
वो सिर्फ मेरी एक बात सुनकर मेरी जान के पीछे पड़ गया...
बहुत सोचते सोचते मैं कब और कौन से भवर में फँस गया...
उसके, मुझे रुलाने के प्रयास को देख, मैं बड़ी तेज़ हँस गया...
मारे तिलबिलाहट के वो मेरे विरुद्ध ऐसी ऐसी चाल चल गया...
मेरे सामने मेरी ख्वाहिशों की लाशें बिछाकर, उनपर लेट गया...
उसकी हरकत देख मैं ताली बजाकर उसके बगल में बैठे गया...
मेरी हिमाकत देखा, उसका चेहरा गुस्से से आग बाबुला हो गया...
अगले ही पल वो हुआ, जिसका मुझे पहले ही अंदेशा हो गया...
वो मुझे वेदना और विलाप सुनाना चाहता था, मैं बहरा हो गया...
जब वो मुझे, द्वेष-स्वार्थ दिखना चाहता था, तब मैं अँधा हो गया...
सब कुछ से हार मान कर, आखिर वो मुझे अकेला छोड़ गया...
खुश हुआ की आखिरकार, मैं जिंदा लाश बनने से बचा गया...
लेकिन इस पूरे खेल में पता नहीं, कैसे मेरा बचपना मर गया...-
तन पीड़ा से और मन दुविधाओ के वार से क्षतिग्रस्त हो रहा है....
कितना स्थिर होने की कोशिश करूँ, अस्थिर मन नहीं संभल रहा है...
ऐसा तो कभी हुआ नहीं हमारे साथ, जो अनुभव आज हो रहा है...
शायद कोई बहुत करीबी रूठा है हमसे, जो हमे बददुआऐं दे रहा है...
पीड़ा की तीव्रता बढ़ रही और कर्म का ये फल बड़ा मिठा लग रहा है...
बस इसी बहाने ही सही मेरे प्रभु के सानिध्य में मेरा उपचार हो रहा है...
मेरे करीबी रूठ मत मुझसे, मेरे प्रभु के दरबार में तेरा न्याय हो रहा है...
एवं बड़े ध्यान से देख लो न्याय को, मेरा कर्म मुझे कैसा दंड दे रहा है...
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सभी घाव तन का कुछ भर सा गया है...
हो सकता है राहत की रूत आ रही है...
लगता तो यही है लेकिन...
शायद सच नहीं है...
मन की व्यथाओं का अंत हो गया है...
मन में शांति की तरंग सी घुल रही है...
लगता तो यही है लेकिन...
शायद सच नहीं है...
एकदम से सब कुछ बदल सा गया है...
यह हवा है जो, मेरे हक में चल रही है...
लगता तो यही है लेकिन...
शायद सच नहीं है...-
सपनो में सफेद अश्व जिसके कोमल दो पंख हो...
जिस पर स्वार होकर अकसर राजकुमार आतें हैं...
किसी के सपने न उजड़ जाए कभी हमें देखकर...
इसलिए हर जगह अपना चेहरा छिपाकर जातें हैं...
"मैंने अपनी दिल की बात सुनकर बहुत अच्छा किया"...
प्रेम सफल होने पर लोग दिल को हकदार बतातें है...
"मेरा दिमाग खराब होगया था जो तुमसे प्रेम किया"...
प्रेम असफल होने पर दिमाग को गुन्हेगार ठेहेरातें हैं...
काम हृदय का धड़कना और शरीर में रक्त संचार...
यही वो सब कार्य है, जो हृदय के दायरे में आतें हैं...
दिमाग ही है जिम्मेदार चाहे जंग हो या चाहे प्यार...
"प्रेम करना है हृदय का काम" ये बेकार की बातें हैं...-
मरने के बाद भी लोग,
पहले कुछ ढुंढा करते है कपड़ो की जेबें टटोलकर...
यह कलयुग है जनाब,
यहाँ तो प्यार भी बिकता है हमेशा तराज़ु पर तोलकर...
काम सारा हो जाएगा,
हमेशा पैसा रख दिया करो जेब में बिना कुछ बोलकर...
यह कलयुग है जनाब,
यहाँ तो लोग दुध भी पीते है पानी मे पाउडर घोलकर...
जिदंगी के सूख भी
उसी को मिलेंगे जो रखेगा दौलतों के पिटारे खोलकर...
यह कलयुग है जनाब,
यहाँ रिश्ते निभाए तो जाते है लेकिन नाप तोलकर...
पीठ पीछे वार करने वाले,
खुद को मर्द कहते है औरों का विश्वास तोड़कर...
यह कलयुग है जनाब,
यहाँ अपने भी चले जाते है दुखों में अकेला छोड़कर...-
देख तेरी धोखे की बदहवास आँधी से, मेरे महोब्बत की प्रत्येक पत्ती वसंत ऋतु मे ही झड़ गई...
बड़े आश्चर्य मे हुँ क्योकि मै लड़ा जहाँ से जिसके लिए वो आज मुझी से गभीर लड़ाई लड़ गई...-
ज़िदगी से क्या शिकवा...
अरे भाई! स्विकार लो सरे गम,
क्योकि यह ज़िदगी उस भगवान का खेला है...
ज़िदगी से क्या शिकवा...
जब इस जहाँ के रगंमंच पर,
हर पात्र,अभिनेता और किरदार अकेला है...
ज़िदगी से क्या शिकवा...
बस जीते रहो इसे क्योकि,
कभी खुशियो तो कभी दुखो का मेला है...-