Vivek Kumar   (विवेक कुमार)
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कुछ यूं ही सोच लो,
या फिर,,
अपने आप को ही रोक लो.....
Joined 10 January 2018


कुछ यूं ही सोच लो,
या फिर,,
अपने आप को ही रोक लो.....
Joined 10 January 2018
6 APR 2022 AT 4:44

खुद से दूर और खुदा से भी दूर होकर जाना कहां है,
ए जिंदगी तू ही बता दुनिया से मजबूर होकर जाना कहां हैll

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13 FEB 2022 AT 5:02

ऐ जिंदगी,
कुछ दूर और साथ तो चल।
पैर लड़खड़ा गए,
पर थोड़ा तो सम्भल।
आज हम टूटे हुए हैं,
पर लायेंगे एक नया कल।
ऐ जिंदगी।।
बहुत कुछ टूटता है,
बहुत कुछ छूटता है,
हम तुम्हें सवार लेंगे,
और एक दिन जरूर निखार लेंगे ll

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15 JAN 2022 AT 6:21

सारी बातें खत्म करना चाहता हूं,
न जाने कौन सी बात आखिरी होगी ll

दिन में ही सारे गिले शिकवे मिटा लो,
ना जाने कौन सी रात आखिरी होगी ll

यादें समेट कर रखना चाहता हूं जेहन में,
ना जाने कौन सी याद आखिरी होगी ll

मिल लिया करो कभी-कभी हमसे,
न जाने कौन सी मुलाकात आखिरी होगी ll

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24 AUG 2021 AT 4:29

llबेरोजगारी समस्या या वरदानll
कविता लिखने की कोशिश कैप्शन में-

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14 AUG 2020 AT 16:06

तेरे हरेक रुख से रुखसार हो गए।
आंखों के सैलाब देख, तार-तार हो गए।।

ढेरों सवाल थे उसकी मोहब्बत को लेकर।
उसके एक जवाब से जार-जार हो गए।।

एक फ़क़ीर सा परिंदा बना फिरता था।
आंखों में देख,पूरी मिल्कियत के हकदार हो गए।।

एक छोटी सी बात नहीं पचती थी पेट में।
आज उसे दिल में छुपा कर राजदार हो गए।।

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18 JUL 2020 AT 21:18

फिर तन्हाई|
क्या तुम्हें दी सुनाई?
रात को जगना,
खुद से बातें करना,
आती है रुलाई|
आई फिर तन्हाई||
साथ बिताए सारे पल
यादें होती धूमल,
क्या लौट आएंगे फिर वो कल?
काली घनी रात,
ले आई फिर तन्हाई||

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24 MAY 2020 AT 8:43

आज-कल जनता पुलाव खा रही है,
लगता है शहर में चुनाव आ रही है||
आहिस्ता और अदब से बोलो,
हर पहर में एक ख्वाब आ रही है||
गरीब मिटेंगे या फिर गरीबी,
छोड़ इन बातों को,
दूर थाली में कबाब आ रही है||
वोटों का क्या है,
कोई ना कोई तो जीतेगा|
भरी मयखाने से शराब आ रही है||
पढ़ी-लिखी जनता छोड़ कर,
मदमस्त अनपढ़ों की ओर से
नाम मात्र कुछ सवाल आ रही है||
ढोल नगाड़े की आवाज में,
दबे सारे सवाल की आशा,
छोड़ो यार..... चुनाव आ रही है||

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19 NOV 2019 AT 13:05

Be a Man....
Respect the woman....
Don't force again( #rape)....
Understand the retain....
Everything not for gain....
Dear Men Be a man....

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25 OCT 2019 AT 21:16

कुछ तड़पाते पलों की तड़प सह लूं क्या,
कवि की भांति मैं भी कुछ कह लूं क्या।।

खाना मांगते दिखे सड़क पर बच्चे,
उनके लिए थोड़ी भूख सह लूँ क्या।।

इज्जत बचा छिपती घरों और गलियारों में,
उनके लिए थोड़ी सी दर्द सह लूँ क्या।।

मां की ममता पुकार रही आंगन में,
पलकों की छांव में थोड़ी देर रह लूँ क्या।।

प्यार का इजहार इश्तेहार में है देखा,
दिल-ए-सुकून के लिए आज मैं भी कह दूं क्या।।

झूठ और फरेब ने दुनिया में फंसा रखा है,
बचने के लिए एक झूठ और कह दूं क्या।।

समझना कठिन है समाज की बातों को,
डूबना मत मेरे अंदर मैं तह हूं क्या??

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8 SEP 2019 AT 17:06

जिससे मिलने की चाहत थी वर्षों से;
उसके दिल में उतर गए तो मदहोश होना लाजमी था||

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