एक विषाणु, सूक्ष्म जीवाणु लेता मेज़बान की जान
करता दुर्बल आतिथेय को, मंद मंद हरता फिर प्राण
विष फैलाता अभ्यंतर और तल पर क्षति के देता निशान
कैंसर जैसा खोखला करके, बना देता फिर एक मसान
दूभर करता श्वास लेना, और फिर बढ़ाता तापमान
श्वास, स्वाद, गंध व जीवन, नहीं रहता कुछ भी आसान
महत्वाकांक्षी ,अभिमानी है,और खुद को माने बलवान
भूदेवी के दुर्गम कोनों में भी अब पहुंचे इसके निशान
देखो व्यंग्य प्रकृति का जब कोठरी में बंद हुए सुल्तान
कट गई वो टांगें, चादर से आगे जो ली थी तान
प्राणी प्रफुल्ल, नदियां नवीन, हुआ और उज्जवल आसमान
निर्मल वायु, नीरव नगर, बस नाद पंक्षियों की सुबह शाम
हर एक प्राणी देव अंश , फिर तू क्यों बन बैठा शैतान
कोरोना बस एक निमित मात्र, सच्चा धूर्त तो है इंसान
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