Vivek Gupta chanchal   (विवेक गुप्ता ‘चंचल’)
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Joined 6 December 2018


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24 FEB 2023 AT 15:05

जिंदगी के किस्सों में अपना हिस्सा ढूंढता हूं,
किस्मत जो बदले वो फरिश्ता ढूंढता हूं,
कमबख्त हदों में रहने की अब तो आदत हो गई,
बेहद जो मिले अब वो रिश्ता ढूंढता हूं।

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31 AUG 2022 AT 12:28

ख़ामोश जिंदगी का एक वजूद ढूंढता हूं,
खुशियां हैं मगर खुशियों का वजूद ढूंढता हूं,

कुछ तो है जिसने रोका है मुझे आगे होने से,
वही पीछे होने का वजह मनहूस ढूंढता हूं,

मुझे पता है वक्त बदल रहा है वक्त के साथ,
पर क्या करूं! सही वक्त का वो हिसाब ढूंढता हूं।

अकेला हूं नही राह में सब साथ हैं मेरे ,मगर
अकेलेपन से जुड़ा वो खुद का जज़्बात ढूंढता हूं।

मेरे मालिक मुझे बख्श दे कुछ तो रज़ा अपनी,
क़िस्मत बदलने का वो बारिश 'शादाब' ढूंढता हूं ।।

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12 APR 2022 AT 10:32

तेरे साथ न होने का ग़म नहीं है,
अरे होगा भी कैसे!
तेरे बिना तो हम, हम ही नहीं हैं।

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25 MAR 2022 AT 13:30

जिंदगी सुकून ढूंढती है,
कमबख़्त! राह बेचैनियों में गुजरती है।

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4 DEC 2021 AT 23:37

जिंदगी के दर्द में 'ज़र्फ़' बाकी है,
'वरक़' जिंदगी का ये कभी पलटेगा ही।

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2 DEC 2021 AT 22:01

बिटिया,
एक ऐसा एहसास जो सुकून से ऊपर है,
और सुकून भी तब है जब बिटिया के
चेहरे पर एक मध्यम मुस्कान होती है,
वो मुस्कान हर दर्द की दवा लगती है,
लाख गुस्से में रहूँ मैं
चेहरा देखते ही उसकी इक शिफ़ा लगती है।
शब्दों में कुछ बोलती नहीं है वो
फिर भी आँखे उसकी हर बात बोलती है,
बड़े आराम से गोद मे सो जाती है,
जागते ही जैसे कोई दुआ लगती है।
बिटिया,
एक ऐसा एहसास जो सुकून से ऊपर है,
और वो सुकून खुश्बुओं की फिज़ा लगती है।

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22 OCT 2021 AT 13:05

इस बीमार दिल का इक इलाज तुम हो!
बस सवाल तुम हो और जवाब तुम हो।

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21 SEP 2021 AT 23:31

तुम रूठे तो नींद में
बातें होंगी फिर किससे?
सपनों की नगरी में
महबूब की गलियाँ,
कैसे आएंगी मेरे हिस्से?
बेचैन दिन के विरह से,
मिलन रात वाले पल
इश्क़ की ख़ुश्बू,
इत्र में भिगो कर, बोलो
मुझे महकायेंगी कैसे?
नींद!तुम रूठों न मुझसे।

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18 SEP 2021 AT 11:09

तड़प इश्क़ की कुछ भूलने नहीं देती,
शुक्रिया तेरा भी बेपनाह इश्क़ के लिए।

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17 SEP 2021 AT 22:24

दरमियाँ अपने यूँ इतने 'फासले' न होते,
जो हमसे दूर रहने के ये तेरे 'फैसले'ना होते।

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