विवेक अग्रवाल   (विवेक "क्षुब्ध")
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लिखना ही मेरी पहचान है।।
स्वाभिमान ही अभिमान है।।
Insta I'd @392vivek_shubdh
Joined 8 March 2019


लिखना ही मेरी पहचान है।।
स्वाभिमान ही अभिमान है।।
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Joined 8 March 2019

आज चाँद खिला है ऐसे,
दिल में गुलाब खिला है जैसे।
सजदा करू में ऐसे, रब को किआ हो जैसे।।
आज आँख चमकती है ऐसे, नूर हो जैसे।
छुपालूँ क्या तुमको भी ऐसे, दिल में प्यार छुपाया है जैसे।।
आज तेरी जुल्फे महकता है ऐसे, इत्र की बेला है जैसे।
बंद करलु क्‍या तुमको भी ऐसे, सीपी में मोती बंद है जैसे ।।
आज दिल मचलता है ऐसे, बदन से तेज बिखरता है जैसे ।
समेट लू क्या तुमको भी ऐसे, बादल समेटे है बूंदे जैसे ।।
आज घर झूमता है ऐसे, सुर की महफिल सजी हो जैसे ।
ढूंढ़लू पायल में तेरी पैरो को ऐसे, खोया हुँ अपना घुँगुरु को जैसे ।।
आज बहोत खुश हूँ ऐसे, तुम्हे पा लिया हो जैसे ।
सच बताऊँ क्या तुझसे, रात में ख्वाब देखा है ऐसे ।

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इश्क़ बस एक जात में हो जरूरी है क्या, वो हर एक बात में राजी हो जरूरी है क्या,
हम जिस मौसम में दिल दे बैठे वो पतझड़ का था, मोहब्बत बरसात में हो जरूरी है क्या,
बड़ी आसानी से बेवफा कह दिया तुमने उसे, उसके जज़्बात में मिलावट हो, ये जरूरी है क्या,
जिंदगी है ये उसकी अपनी, वो जिए तुम्हारी शर्तों पर, ये भी जरूरी है क्या,
मोहब्बत की है तो निभाओ उसे, हर बात में उसकी राजदारी जरूरी है क्या।

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ये तो अभी मेरी अधूरी दास्तां है दोस्त, आगे की कहानी अभी बाकी है।
अभी तो की है मुकर्रर आधी अधूरी ज़िंदगी, सपनों की उड़ान अभी बाकी है,
सोचता हूं कि लिख दूं अपने हाथों की लकीरें, पर हाथों पे उसका नाम आना अभी बाकी है।
सुना है कि उसे बेवफाई पसंद है बहुत, उसे उस अंजाम तक पहुंचाना अभी बाकी है।
भटकता रहता हूं उसकी तलाश में दर बदर, मंजिल ए मुकाम में उसे पाना अभी बाकी है।
दिल करता है कि बुझा दूं उस जलते हुए दिये को, क्यूंकि मेरी तनहाई में उसकी बेवफाई का मिल जाना अभी बाकी है।।

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टूटे आइने के टुकड़ों सी हो गई है ज़िंदगी,
कभी बाकी हिस्से की तलाश है तो कभी सुकून की।।

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मैं से तुम हो और हम से मैं, बस यही फर्क है तुम्हारी और मेरी मोहब्बत में।।

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अज़ीम रफ्तार से गुज़र रही है ज़िंदगी,
बेबाक से ख़ामोश कब हो गया, पता भी नहीं चला।।

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ये वक्त भी बड़ा बेईमान है, आलम है इस कदर की गफलत में ये क्षुब्ध सा इंसान है, मेरे किस्से को पकड़ लेना इस तरह, उसमें बसी मेरी जान है।
मैं कभी उसूलों पे चला नहीं, चंद पैसों के लिए बिका नहीं,
उड़ने का शौक़ है, पंख ही मेरी पहचान है।
जो बीत गया वो था कल था मेरा, मेरा आज ही मेरा ईमान है।
मेरी उदासी बसती है यूं उन कोनों में जहां अक्सर खिलखिलाहट हुआ करती थी, आज उस जगह खंडहर मकान है।।
मेरे इस किस्से को हकीक़त समझो या फिर कोई बेअदायगी,
सच तो यही है कि दिल के हर कोने में बसता मेरे सपनों का जहान है।।

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रात के ख्वाबों को दिन के उजाले में देखता हूं,
सिर्फ वही तो हैं जो तन्हा छोड़ के नहीं जाया करते।

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फ़ुरसत ही कहां है किसी और को देखने की आजकल, सिर्फ तुझे देखता हूं और आंखे वहीं सिमट जाती हैं।।

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ज़िन्दगी की तलाश में क्यों हम बिखर गए,
चंद सुख की चाह में क्यों इतने बिक गए
जब मौत ही अटल सत्य है तो क्यों हम जतन करें भला,
ना जाने किस राह में हम भटक गये
इस मतलबी दुनिया में सिर्फ धोखा है भरा पड़ा,
फिर किस सुकून की तलाश में इस कदर हम बिखर रहे,
एक के दो, दो के चार कर के, आत्म सुख को भूल रहे,
जिंदा होने के लिये, ज़िंदा रहना पड़ता है
इस सच से अंजान, बेख़बर हम ना जाने कब बुत से बन गये........

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