विष्णु प्रभाकर सिंह   (#विप्रणु)
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Joined 8 May 2018


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Joined 8 May 2018

एक माँ ही तो है जहां जीवन है
समूल बहती हुई शीतल पवन है
जो सींचती है ममता की डाली
जिसके आंचल में सभी इंद्रियां हैं
हाथ समर्पित है, मन अर्पित है
जो देती है बटोर कर आशीष
भरती है बांहों में उत्कर्ष का बीज
आशा के दीप जलाती जाती है
नमती है शिक्षा को
उभारती है पुण्य को
लालसा में बांध देती है भटकाव को
अभेद्य तीर चलाते जाती है
एक मां ही तो है जो ढाल भी सजाती है
सर्वगुण को जीवंत करती है
हृदय का अंश भरती है
माँ प्रकृति है।

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"नियति"
तुम अब मान लो सिर्फ मेरी हो
भगवान करे सबसे तुम्हारी दूरी हो
अकारण सबसे तुम्हारा प्रेम हो
मगर मुझसे भी अकारण क्षेम हो
गंभीर संबंध का निश्चित ही आवरण हो
परंतु प्रेम का निराकार ही आचरण हो
सौ गलती दिन के माफ करने का चलन हो
पर भगवान करे कभी ना आत्मा का हनन हो
साथी जन्मांतर के इतना तो तुम्हारा वचन हो
किसी भी परिस्थिति में परमेश्वर का चयन हो
परस्पर पूरकता का पुष्प सदा खिलता हो
मन को भी चंचलता का मार्ग मिलता हो
हर बार तुम ही स्पष्टता का पहल करती रहो
पर अनिवार्य रूप से तनाव को भी सरल करती रहो
तर्क को भले ही अभी तक कोई स्थान नहीं मिला हो
पर भगवान करे कुतर्क को भी सीमा का ज्ञान मिला हो
तुम अब मान लो सिर्फ मेरी हो
भले ही हर कामना अधूरी हो..

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दुनिया बदल गई है
शोर दहल गई है
राष्ट्र अब जन का है
ध्यान सबके मन का है
गलती अब अनुभव है
अभ्यास बना गौरव है
विश्व सिकुड़ गया है
शांति की ओर मुड़ गया है
कूटनीति संदेश वाहक है
राजनीति कुशल साधक है
द्वेष अब अराजकता है
विकास की फैली सुलभता है
शस्त्र अब अस्त्र है
शास्त्र मुख्य परामर्श है
कार्य अब खपत है
मानवता अनिवार्य बचत है
सरकार अब सभ्य है
मानव अब भी दुर्लभ है
धारणा को मिलती चुनौती है
परिभाषा ही बना नीति है
आक्रमण अशांति है
परिणाम अभेद्य क्रांति है
आतंकवाद अब निराधार है
विश्व की बनी सरकार है!

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युद्ध भी अधिकार है
बिना इसके वर्तमान स्वतंत्रता निराकार है
कपट का जो करता व्यापार है
नीति अनुरूप देता विस्तार है
इनकी पहचान गुट में तैयार है
इनसे निपटना युद्ध नहीं, व्यापार है

शक्ति स्वरूपा का अब भी अशेष आधार है
जन सुख के लिए यह कैसा सामूहिक विचार है
मूल मानव चेतना का प्रत्यक्ष यह तिरस्कार है
नौ सौ चूहे खा कर, बिल्ली बनता सियार है
इनकी दुर्गति के लिए अब विश्व तैयार है
इनसे बचाव युद्ध नहीं, अधिकार है

किस कारण राष्ट्र ही बना विकास द्वार है
महात्वाकांक्षा को क्या सिक्का दरकार है
क्या निर्धन हो चुकी कर्णधारों की आत्मा
लोक प्रशासन ने जहां जकड़ा परोपकार है
इनकी कालाबाजारी कभी नहीं स्वीकार है
इनसे टकराव युद्ध नहीं, सदाचार है

अशिक्षा को अस्त्र बना रहा कुविचार है
वास्तविकता से दूरी का षडयंत्र जहां साकार है
भय के बंदोबस्त में लगी जिस राष्ट्र की सरकार है
वहां का प्रकृति भी जल रहा लगातार है
इनकी अवसरवादिता का भ्रष्ट ही सरोकार है
इनसे कूटनीति युद्ध नहीं, उपकार है।

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है कौन सा सितारा है तुम्हारे अंदर
जिसकी रोशनी आज लुभा रही है
नव है या है क्रम में वही मंजर
जिसे तू मासूमियत से सजा रही है

हर जगह तुम्हारी खुशी है सुंदर
जिसकी इच्छा आज निभा रही है
सब है या है समूल बोध का तदंतर
जिसे दिवस विशेष पर अपना रही है

❤️HAPPY BIRTHDAY SHIVA❤️

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सुख और दुख अवयव है
संतुलन और असंतुलन अवयव है
क्रिया और प्रतिक्रिया अवयव है
आकार और निराकार अवयव है
प्रेम और समर्पण अवयव है
इसी तरह द्वेष और घृणा अवयव है
और मानवीयता और अमानवीयता भी
अब प्रश्न है कि, संपर्क और विच्छेद क्या है
जाति विशेष की मूलता है क्या?

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दिल जो चाहे दिल खोल कर करे
दुनियादारी में दिल का मोल नहीं होता

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शासक की चालक आँखें
कुछ नहीं कहती
अखंड नियंत्रण का परिचय देती
भाव जैसे उमड़ ही नहीं रहे
प्रवाह जैसे शिथिल पड़ गई हो
ये सन्नाटा इंगित कर रहा है
अनहोनी!
आत्मसम्मान पर ठेस से
चारों दिशा में फैला है विरोध
व्याप्त है अमानवीय कृत पर निंदा
युद्ध एक मात्र विचार है
सरकारों के पास अस्त्र-शस्त्र है
अब देखना है युद्ध का निर्णय
अनहोनी!

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व्यथा सीमा पार है
राष्ट्र भर रहा हुंकार है
आतंक कूटनीति का वाहक है पुनः
इस बार ठोस उत्तर मात्र, दरकार है

विजय या वीरगति का व्यापार है
मां भारती की सेना अपार है
शांति दूतों का सीना साधक है पुनः
इस बार राष्ट्र अग्निशिखा बन साकार है

सहज आक्रोश का बन गया आधार है
लोकतंत्र का ब्रह्मास्त्र का विचार है
इस बार भी सुदर्शन चक्र अचूक रहेगा पुनः
विश्व को अलगाववादी का ध्वंस स्वीकार है

उठो वर्तमान कि, भविष्य तो निराकार है
स्वीकार करो चुनौती कि बन रहा परोपकार है
इस बार भी सौगंध पुरखों का पुनः
राम नाम से अंत होगा जो भी अत्याचार है।

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गोलची ने बीज लगाया है
विशाल प्रांगण में
प्रस्फुटन और शाखा
समरूप हैं
कली की प्रतीक्षा
अपेक्षाकृत है
श्वास ठहरी है
सभी की दृष्टि है
विवरणों को संदर्भित करने की पारी है
परीक्षा अब इच्छा बन गई है
परिणाम सहज होने वाला है!

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