दिल की गहराइयों में
प्यार में लिपटा हुआ मन
जब चाहत को नई दुनिया बनाते हुए पाता है
तो सुकून मिलता है...
आते-जाते सांसों में जब सपना सजता है
तो सुकून मिलता है...
मंद-मंद मुस्कान जब बिना कारण रहती है
तो सुकून मिलता है...
जीने और मरने का जब सबब मिलता है
तो सुकून मिलता है...
मिट जाने का जब दिल करता है
तो सुकून मिलता है...
सपने जब पूरे होते हैं
तो सुकून मिलता है...
सत्य जब परीक्षा लेता है
तो सुकून मिलता है!-
-किसान(मेरी पैतृक भूमि मेरी जीविका है)
-दर्शन,र... read more
'सिपाही विद्रोह'
यह कैसी राजनीति है
जो मुद्रा आधारित है
आकर्षण दबदबा है
दृष्टि पूर्णतःअयोग्य है
दर्शन रीति-रिवाज है
रीति-रिवाज अछूत है
दृष्टांत अतिशयोक्ति है
दायित्व तथाकथित है
विचार नकारात्मक है
योजना पूर्व नकल है
अनुसंधान संधारण है
विकास विपरीत है!-
हम आजादी के दीवाने
चल पड़े हैं, सीना ताने
राष्ट्रप्रथम व सादगी का
जन्मजात गुण अपनाने
हम आजादी के दीवाने
थाम रखा है रीत पुराने
एकता की बन्धुता का
मूल धर्म को दोहराने
हम आजादी के दीवाने
याद रखा है सूत्र सुहाने
राम राज्य की चाहत में
सोने की लंका बिसराने
हम आजादी के दीवाने
शांति के हैं दूत पुराने
सदाचार के सरलता में
संघर्ष से है साहस पाने
हम आजादी के दीवाने
युवाओं का सेंगोल पाने
आधुनिकता के दौर में
शिक्षा का धर्म बतलाने
हम आजादी के दीवाने
लोकतंत्र में सीमा जाने
सुराज का निमित्त रखें
जनताराज को है जाने-
"शून्यकाल"
खरी खोटी यह सभा है
सुराज का यह प्रभा है
मंथन का शोर मचा है
मत से मुद्दा लापता है!
दौरी में आम तमाम है
पका आम बेलगाम है
आम तो अलबत्ता है
मत से मुद्दा लापता है!
ज्ञान भूमि ये पुरानी है
चाणक्य हर प्राणी है
बंद मुट्ठी सबने कसा है
मत से मुद्दा लापता है!
नेता की लंबी कतार है
सफेदपोश का बाजार है
सबको स्व जात पता है
मत से मुद्दा लापता है!
(शेष भाग पढ़ने के लिए दूसरे पेज पर जाएं)— % &यथार्थ का हाहाकार है
काल्पनिक सरकार है
संघटन का विघटन पता है
मत से मुद्दा लापता है!
पलायन यहां एक सूत्र है
गरीबी का शुभ मुहूर्त है
अशिक्षा यहां खूब बंटा है
मत से मुद्दा लापता है!
दोषारोपण का चाल चला है
सुधार एक अछूत बला है
उम्मीदवार नेता बन खड़ा है
मत से मुद्दा लापता है!
यहां राजनीति अव्यवहारिक है
दल बना राजनीतिक पटवारी है
दलित बन पूरा समाज खड़ा है
मत से मुद्दा लापता है!— % &-
सत्य ही ब्रह्म है
नारायण हीं शाश्वत हैं
इस वास्तविकता के वलय में,
आकर्षण का केंद्र बिंदु ढूंढता;
यथाक्रम समर्पण का स्वरूप पाता मानव,
संकल्प को प्रस्तुत हो सके
इतनी सघन कृपा का मूल
मात्र सत्य में निहित है
इसे ही नारद मुनि बाँचते रहते हैं
कलिकाल में घर-घर में लोग इसे मानते हैं
हां!सत्यनारायण अद्वैत हैं।-
बिहार में मुद्दा तेज हो रहा है
चुनावी तंत्र से भेंट हो रहा है
शुरुवात में ही पलायन का पहचान हुआ है
इस बार मजदूरी ही विज्ञान हुआ है
कुछ दल इसे समस्या बता रहे हैं
इस चुनाव वे खेतिहर मजदूर उपजा रहे हैं
हरित क्रांति से जो रास्ता बन गया
उस रोटी को गोल घुमा रहे हैं
पूर्वज ने अंतरराज्यीय खेत ढूंढे
कमाई को तरसते लोगों का पेट ढूंढे
दो पैसों के साथ पुराना कर्ज उतारा
खाली पेट के लिए जाना होगा दुबारा
ऐसे परखे हुए रास्ते को बिहार अब रोकेगा
मजदूरी के लिए बाहर जाने वाले को टोकेगा
कहेगा रुको अपना सम्मान बचाओ
गरीबी में पेट को दबाओ
ये राजनीति फिर भ्रमित करने को तैयार है
इस बार खेतिहर मजदूर ही हथियार है
इस वर्ष के आम बजट में बिहार चर्चा में रहा
इस वर्ष के अंत में असंगठित किसान पर्चा में रहेगा
पता नहीं ऊंट किस करवट बैठेगा
खेतिहर मजदूर कब तक दक्षता की ढोल पीटेगा।-
एक अनोखा अबूझ अस्तित्व
शुभचिंतना में छाया रहता है
हर इंद्रियां जुड़ती है जिससे
एक-एक सुविचार पनपता है जिससे
स्रोत और सहजता को जो जोड़ता है
विधि और नीति को जन्म देता है
विधान का जनक होता है
वो तुम्हें आशीर्वाद देता है
अवसर का विकल्प देता है
गति का सौभाग्य देता है
मानवीय पुरुषार्थ देता है
कि तुम खुश रहो
ऐसे ही लक्ष्य पर होते हैं— पापा!-
दुर्घटना ग्रस्त है आज जन भाव
भीषण शोर है मानस पटल पर
हर कोई सद्भावना दे रहा है
इस शुभचिंतना से नव तृण निर्मित होगा
जो दिशा देगा विषय-वस्तु को
ठोस बनाएगा चलन को
केंद्र में रख कर तराशेगा सूत्र को
अब निर्मित होगा विज्ञान का एक और द्वार
जो वर्तमान आवाजाही को समर्पित होगा
मानव अस्थिर ही रहेगा।-
पता है तुम्हें
कोहली अकेला नहीं था
कुछ मानव दूत भी थे
उनकी भी सांसे थमी हुई सी थीं
सब इतिहास में अंकित हुआ
क्रिया-प्रतिक्रिया और परिणाम
बस रह गया व्यावसायिकता
विशुद्ध चेतना के साथ अटल बनकर
विराट बनकर
पुनः वास्तविकता का गणित बैठा
सूत्र ही प्रतीक्षित था।-
जीवन कठोर है
जीवन पद्धतियां कठोर नहीं
चयन कठोर है
विवेक कठोर नहीं
विश्वास कठोर है
समर्पण कठोर नहीं
दीक्षा कठोर है
शिक्षा कठोर नहीं
पुरुषार्थ कठोर है
पद का अर्थ कठोर नहीं
दृश्य कठोर है
दृष्टि कठोर नहीं
दिवस कठोर है
दिगंत कठोर नहीं
दुनिया कठोर है
तुम कठोर नहीं
आत्मा कठोर है
परमात्मा कठोर नहीं
काल कठोर है
अंतराल कठोर नहीं!-