विष्णु प्रभाकर सिंह   (#विप्रणु)
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Joined 8 May 2018


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Joined 8 May 2018

एक अनोखा अबूझ अस्तित्व
शुभचिंतना में छाया रहता है
हर इंद्रियां जुड़ती है जिससे
एक-एक सुविचार पनपता है जिससे
स्रोत और सहजता को जो जोड़ता है
विधि और नीति को जन्म देता है
विधान का जनक होता है
वो तुम्हें आशीर्वाद देता है
अवसर का विकल्प देता है
गति का सौभाग्य देता है
मानवीय पुरुषार्थ देता है
कि तुम खुश रहो
ऐसे ही लक्ष्य पर होते हैं— पापा!

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दुर्घटना ग्रस्त है आज जन भाव
भीषण शोर है मानस पटल पर
हर कोई सद्भावना दे रहा है
इस शुभचिंतना से नव तृण निर्मित होगा
जो दिशा देगा विषय-वस्तु को
ठोस बनाएगा चलन को
केंद्र में रख कर तराशेगा सूत्र को
अब निर्मित होगा विज्ञान का एक और द्वार
जो वर्तमान आवाजाही को समर्पित होगा
मानव अस्थिर ही रहेगा।

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पता है तुम्हें
कोहली अकेला नहीं था
कुछ मानव दूत भी थे
उनकी भी सांसे थमी हुई सी थीं
सब इतिहास में अंकित हुआ
क्रिया-प्रतिक्रिया और परिणाम
बस रह गया व्यावसायिकता
विशुद्ध चेतना के साथ अटल बनकर
विराट बनकर
पुनः वास्तविकता का गणित बैठा
सूत्र ही प्रतीक्षित था।

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जीवन कठोर है
जीवन पद्धतियां कठोर नहीं
चयन कठोर है
विवेक कठोर नहीं
विश्वास कठोर है
समर्पण कठोर नहीं
दीक्षा कठोर है
शिक्षा कठोर नहीं
पुरुषार्थ कठोर है
पद का अर्थ कठोर नहीं
दृश्य कठोर है
दृष्टि कठोर नहीं
दिवस कठोर है
दिगंत कठोर नहीं
दुनिया कठोर है
तुम कठोर नहीं
आत्मा कठोर है
परमात्मा कठोर नहीं
काल कठोर है
अंतराल कठोर नहीं!

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एक माँ ही तो है जहां जीवन है
समूल बहती हुई शीतल पवन है
जो सींचती है ममता की डाली
जिसके आंचल में सभी इंद्रियां हैं
हाथ समर्पित है, मन अर्पित है
जो देती है बटोर कर आशीष
भरती है बांहों में उत्कर्ष का बीज
आशा के दीप जलाती जाती है
नमती है शिक्षा को
उभारती है पुण्य को
लालसा में बांध देती है भटकाव को
अभेद्य तीर चलाते जाती है
एक मां ही तो है जो ढाल भी सजाती है
सर्वगुण को जीवंत करती है
हृदय का अंश भरती है
माँ प्रकृति है।

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"नियति"
तुम अब मान लो सिर्फ मेरी हो
भगवान करे सबसे तुम्हारी दूरी हो
अकारण सबसे तुम्हारा प्रेम हो
मगर मुझसे भी अकारण क्षेम हो
गंभीर संबंध का निश्चित ही आवरण हो
परंतु प्रेम का निराकार ही आचरण हो
सौ गलती दिन के माफ करने का चलन हो
पर भगवान करे कभी ना आत्मा का हनन हो
साथी जन्मांतर के इतना तो तुम्हारा वचन हो
किसी भी परिस्थिति में परमेश्वर का चयन हो
परस्पर पूरकता का पुष्प सदा खिलता हो
मन को भी चंचलता का मार्ग मिलता हो
हर बार तुम ही स्पष्टता का पहल करती रहो
पर अनिवार्य रूप से तनाव को भी सरल करती रहो
तर्क को भले ही अभी तक कोई स्थान नहीं मिला हो
पर भगवान करे कुतर्क को भी सीमा का ज्ञान मिला हो
तुम अब मान लो सिर्फ मेरी हो
भले ही हर कामना अधूरी हो..

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दुनिया बदल गई है
शोर दहल गई है
राष्ट्र अब जन का है
ध्यान सबके मन का है
गलती अब अनुभव है
अभ्यास बना गौरव है
विश्व सिकुड़ गया है
शांति की ओर मुड़ गया है
कूटनीति संदेश वाहक है
राजनीति कुशल साधक है
द्वेष अब अराजकता है
विकास की फैली सुलभता है
शस्त्र अब अस्त्र है
शास्त्र मुख्य परामर्श है
कार्य अब खपत है
मानवता अनिवार्य बचत है
सरकार अब सभ्य है
मानव अब भी दुर्लभ है
धारणा को मिलती चुनौती है
परिभाषा ही बना नीति है
आक्रमण अशांति है
परिणाम अभेद्य क्रांति है
आतंकवाद अब निराधार है
विश्व की बनी सरकार है!

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युद्ध भी अधिकार है
बिना इसके वर्तमान स्वतंत्रता निराकार है
कपट का जो करता व्यापार है
नीति अनुरूप देता विस्तार है
इनकी पहचान गुट में तैयार है
इनसे निपटना युद्ध नहीं, व्यापार है

शक्ति स्वरूपा का अब भी अशेष आधार है
जन सुख के लिए यह कैसा सामूहिक विचार है
मूल मानव चेतना का प्रत्यक्ष यह तिरस्कार है
नौ सौ चूहे खा कर, बिल्ली बनता सियार है
इनकी दुर्गति के लिए अब विश्व तैयार है
इनसे बचाव युद्ध नहीं, अधिकार है

किस कारण राष्ट्र ही बना विकास द्वार है
महात्वाकांक्षा को क्या सिक्का दरकार है
क्या निर्धन हो चुकी कर्णधारों की आत्मा
लोक प्रशासन ने जहां जकड़ा परोपकार है
इनकी कालाबाजारी कभी नहीं स्वीकार है
इनसे टकराव युद्ध नहीं, सदाचार है

अशिक्षा को अस्त्र बना रहा कुविचार है
वास्तविकता से दूरी का षडयंत्र जहां साकार है
भय के बंदोबस्त में लगी जिस राष्ट्र की सरकार है
वहां का प्रकृति भी जल रहा लगातार है
इनकी अवसरवादिता का भ्रष्ट ही सरोकार है
इनसे कूटनीति युद्ध नहीं, उपकार है।

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है कौन सा सितारा है तुम्हारे अंदर
जिसकी रोशनी आज लुभा रही है
नव है या है क्रम में वही मंजर
जिसे तू मासूमियत से सजा रही है

हर जगह तुम्हारी खुशी है सुंदर
जिसकी इच्छा आज निभा रही है
सब है या है समूल बोध का तदंतर
जिसे दिवस विशेष पर अपना रही है

❤️HAPPY BIRTHDAY SHIVA❤️

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सुख और दुख अवयव है
संतुलन और असंतुलन अवयव है
क्रिया और प्रतिक्रिया अवयव है
आकार और निराकार अवयव है
प्रेम और समर्पण अवयव है
इसी तरह द्वेष और घृणा अवयव है
और मानवीयता और अमानवीयता भी
अब प्रश्न है कि, संपर्क और विच्छेद क्या है
जाति विशेष की मूलता है क्या?

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