Vishwaroopa Awasthy   (Vishwaroopa)
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Psychic. Intuitive. Nomad.

#Bhopal
Joined 18 May 2017


Psychic. Intuitive. Nomad.

#Bhopal
Joined 18 May 2017
9 JUL 2022 AT 13:36

ये श्याम मेघ घने
आकाश की स्मित बने
गरजते हैं गुनगुनाते हैं
किस्से सागरों के सुनाते हैं

जब विषम ताप से गुजरो
मन भाव समर्पण रखना
मेघ रूप ले एक दिन
है उसी सूर्य को ढकना

अस्तित्व नहीं मिटेगा
बस रूप बदल जाएगा
ये जीवन काल का पहिया
चलता ही चला जाएगा

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12 MAY 2021 AT 10:41

सुनो मेरे दोस्त
मेरी बात सुनो
मेरे थोड़े जज़्बात सुनो

तुम थके हो हारे नहीं हो
तुम भटके हो बे-चारे नहीं हो

एक पल को बैठ जाओ
रुक जाओ थम जाओ

फिर उठकर बढ़ना है
अभी कई पहाड़ो पर चढ़ना है
कई मीलों तक पैदल चलना है

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6 SEP 2018 AT 14:18

कुल फक्त नौटंकियों का जमाना है दोस्तों
नारों की बुलंदियों का जमाना है दोस्तों
कहारों के काँधों पे चढ़ जो तीर्थ को चले
अब उन श्रद्धालुओं का जमाना है दोस्तों

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6 SEP 2018 AT 13:18

वो जो इतराता घूम रहा था
सड़कों चौराहों पर
गाता था तरुणाई के स्वर में
मुस्काता था उन चेहरों पर
गुमशुदा वाले कालम में
आज अखबारों में छपा एक छंद है
कोई तो उसे ढूंढ कर लाओ
जाने किस कमरे में
आज मेरा भारत बंद है

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4 SEP 2018 AT 10:03

प्रेम के पंचमहाभूत

1 मेले छोना बाबू ने थाना थाया
2 अले अले बाबू को नीन आ ली है
3 बाबू इज छो छवीट
4 अले बाबू छवाईप माय कार्ड ना
5 बाबू रूस दये

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1 SEP 2018 AT 12:50


We all have
history
chemistry
mystery
and that unique blend
makes us what we are

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18 AUG 2018 AT 14:33

मन, बूढ़े आदिवासी सा
सकोरे में समेटे दाने गिनता
वक्त का हिसाब करता
गुनता और बुनता किस्सों के जाले
कुछ खाली, कुछ भरे यादों के प्याले

जब वो हर दिन बगीचे में पानी देते हैं
उस टूटे पाइप को टेप लगा कर जोड़ रहे होते हैं
अभी ये कुछ दिन और चलेगा मुझे देख कर समझाते हैं
उफ्फ ये माँ बाप बूढ़े क्यों हो जाते हैं

मैं अपने चाय के प्याले को हाथों में समेटती हूँ
मुस्कुराती हूँ और एक अस्सी साल के टीनएजर की देखती हूँ
बार बार हर बात पर तुनक जाते हैं
उफ्फ ये माँ बाप बूढ़े क्यों हो जाते हैं

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18 JUL 2018 AT 19:42

प्रेम है मुझे तुमसे
कई कई बार सोचा
कहना चाहा
हर बार लगा
जरूरत ही नहीं
ऊंचे पहाड़ों ने कहा "कह दो"
शब्द चिलम से सुलगते रहे
निकल कर धुआँ होते बादल कहते रहे "कह दो"
तुम्हारी आँखों में जब खुद का अक्स दिखता
तो वो भी कहता "कह दो"
बहता दरमियान एक स्रोता
कहता
प्रेम है अगर तो हमेशा रहेगा
कोई फर्क नहीं
कोई शर्त नहीं
कह दो
या मत कहो
पहले जान लो खुद में कि
प्रेम है भी या नहीं

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15 JUL 2018 AT 16:34

सुनो
जब तुम मुस्कुराते हो ना
तो मेरे मन के खेतों में
गेहूँ की बालियाँ लहलहाने लगती हैं
सुबह के सूरज की किरणों से धुली हुईं

और जब तुम खिलखिलाते हो
वक़्त अपने जादुई झोले में समेटे
उन कुछ पलों में
सोने के खनखनाते हुए सिक्के बिखेर देता है
मेरे आँगन में
सुनो एक वादा करो
तुम यूँ ही मुस्कुराते खिलखिलाते रहोगे
ताकि मेरी अमीरी बरकरार रहे

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17 JUN 2018 AT 22:36

रोज जिम्मेदारियों का बस्ता उठा, लिए कांधे पर बोझ
निकल जाता हूँ जिंदगी की पाठशाला की ओर
लेने कोई और सबक या देने एक ओर इम्तेहान
क्योंकि घर का मुखिया हूँ मैं जैसे तनी हुई एक कमान

अरे कभी मैं भी था एक खिलंदड़ नौजवान
कभी नग़मे गुनगुनाता था कभी मैं भी प्रेम चुगलाता था
कभी हारमोनियम गिटार पर हाथ आजमाता था
कभी कूंची ले बन कलाकार जाता था
कभी नया वाला कोई फ़ैशन आजमाता था
और कभी दरख्तों पर लिखता था कोई एक नाम
पर अब घर का मुखिया हूँ मैं जैसे तनी हुई एक कमान

दवाइयों की पर्चियां, दाल चावल के डिब्बे
आधी अधूरी फरमाइशों के किस्से
आटे का कनस्तर, राशन का दस्तरखान
सफाई पुताई जो कभी पूरी न हो पाई
आधी अधूरी बची हुईं कई ईएमआई
कापी किताबें, स्टेशनरी का सामान

जाने कितनी लाल चीटियाँ हैं मेरे घर में
जो खा जातीं हैं मेरे मन की चिड़िया को उड़ने से पहले
मिलती है मुझे कुछ बूढ़ी दुआएँ,
कुछ नन्ही खिलखिलाहटें, और बस एक मुस्कान
और मैं निकल जाता हूँ अगले दिन फिर से कमाने
क्योंकि घर का मुखिया हूँ मैं जैसे तनी हुई एक कमान

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