16 AUG 2017 AT 17:24

दर्द को सम्हाले जी रहा हूँ।
कटु अनुभव के सीख पी रहा हूँ।
दरिया तो तूफ़ानी ही है।
फिर भी बिना पतवार जी रहा हूँ।
कब होगा पूरा आरज़ू का ख़ज़ाना।
उसे पाने की चाहत में बस जी रहा हूँ।
दर्द बिना कहे जीना क्या सिखा साहेब।
अब तो कोई देख के भी हाल नहीं पूछता।
चेहरे पे सबका ध्यान है दोस्तों।
मन की अंतरात्मा कोई नहीं पूछता।
साम्राज्य तो बहुत आयें विश्व में।
पर अमरत्व की चाहत में जी रहा हूँ।
दर्द को सम्हाले जी रहा हूँ।
कटु अनुभव के सीख पी रहा हूँ।

- "vishw"