झुर्रियों से भरे अक्सर चेहरे पे।
वो आस भरी उम्मीद की मुस्कान।
अपलक निरंतर निहारती है।
किसी भी आहट को जान।
सब कुछ त्याग दिया जिसने।
बिना सोचे समझे न पहजान।
एक छोटी सी उम्मीद से पाला था।
खिलाया अपने मुँह का निवाला था।
आज ख़ुद झेल रही बेबसी का मंज़र है।
चला उसके मन मस्तिष्क में ख़ंजर है।
उसने तो अपने मन को समझा ना पाया।
ये क्या हुवा उसके साथ मन को हरा न पाया।
किसी अपरिचित ने उसके घर में ऐसी दस्तक दी।
सारे उसके अपने सपने अधूरे रह गए।
किसी अपने ने ऐसी हरकत की।
विश्व में ये दुर्घटनाये तो अब..
आम होने लगी है।
सड़कों में झुर्रियों वाले चेहरे..
खुले आम होने लगी है।
फिर भी झुर्रियों से भरे चेहरे पे।
वो आस भरी मुस्कान आज भी बाक़ी है।
कोई अपना तो आएगा हाल पूछने।
बस इतने के लिए जान बाक़ी है।
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