ये परछाई जीतेजी कभी भी साथ नहीं छोड़ती । छुपी रहती है अंधेरों में गलत राग नहीं छेड़ती ॥ कौन किस रूप का आदमी है फर्क नहीं पड़ता । है यह उसका स्वरूप हीं गलत राह नहीं चुनती ॥
जीवन की सत्यता इसके होने से हीं प्रदर्शित है । जीवन का सुख दुख भी परछाई से हीं निहित है ॥ विकृतियों के कारण हीं लोग भटक गए रास्तों से । जिसकी सोच गलत है उसमें पाप भी अधिक है ॥
कहने मात्र से कुछ बदलता नहीं किसी के जीवन में । एक फूल जी नहीं सकता किसी भी उपवन में ॥ खुशी खुशी जिंदगी गुजर जाए तो इससे बड़ा क्या हो । मृत आत्मा भी भटकती है अपने सही मन में ॥
कोशिश हजार करो अपने जड़ से कभी दूर ना रहो । कितना भी बदलाव आए जीवन में मजबूर ना रहो ॥ सदा चलो अपनो के साथ परछाई बनकर उनके । वे बेशक छोड़ दें तुम्हें पर तुम घमंड़ में चुर ना रहो ॥
जो सबको देता है वहीं तो आज कल रोता है । जो कल तक अपना था साथ छोड़ चल देता है ॥ लोग तो जन्म देने वाले माँ बाप को नहीं छोड़ते । जो अपना सुख काटकर बच्चों को सुख देता है ॥
ना धूप है ना छाँव है जिंदगी जैसे है कोई गाँव । जिंदगी यूं हीं डूबती जा रही हर किसी कि जैसे कोई नाव ॥ पतझड़ का मौसम हो या सावन का महीना क्या फर्क पड़े । एक हीं जीवन है कई ध्येय जल्दी जल्दी चल रहे हैं पाँव ॥
प्रेम में पड़कर देख लिया हर किसी को , दर्द सहते रहो फर्क नहीं पड़ता है किसी को । चॉद तारे तो तोड़कर लाना पटाने के बहाने हैं , कौन जी रहा किस हाल में फर्क नहीं पड़ता किसी को ॥