Vishwadeep Ambardar   (vishwadeep ambardar)
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Joined 12 December 2020


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Joined 12 December 2020
14 JUL AT 18:54

ज़िन्दगी के रास्तों पर कितने हम मजबूर हैं
खुद में उलझे हैं ऐसे चमक-दमक से दूर हैं

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10 JUL AT 21:16

देखो वक्त गुज़रा है
पर हमारी नज़रों में
यादों का पहरा है
बीता तेरे साथ लम्हा
अब भी ठहरा है

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8 JUL AT 21:11

वक़्त की शाख पर लम्हे से पिरोये हैं
यादों के वो पत्ते जो हमने कभी खोए हैं
उनकी हर बात इस दिल को सताती है
जिन पलों को सिरहाने रख कर हम सोये हैं

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4 JUL AT 16:59


ज़िंदगी में बातें तो
सारी अधूरी रह गई
तुम मुझ में पूरे रह गए
मैं तुम में पूरी रह गई

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2 JUL AT 22:18

मैं कविता हूं बन जाती हूं
चाहे तुम जैसे भी लिखो
कह डालो जो भी चाहो
वो भी जो कि हुआ ना हो
ये सच से ज़रा जो दूरी है
मैं जानू तेरी मजबूरी है
मन में जितने उदगार भरे
हैं ज़्यादातर शब्दों से परे
जो बातें दिल में आती हैं
सब प्रकट कहां हो पाती हैं
समझ लेती फिर भी दुनिया
वह भी जो कि कहा न गया
जब तेरी कलम अठखेली करे
तो बनकर मैं इठलाती हूं
और कागज पर बिछ जाती हूं
मैं कविता हूं बन जाती हूं

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2 JUL AT 21:22

चलो आज माज़ी की मरम्मत कर लें
यादें जो तड़पायें उन्हें रुखसत कर लें

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2 JUL AT 20:41

भरोसा रखो इतना कि तुमहे खबर ही न हो
उसकी गलती का भरोसे पर असर ही न हो

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24 MAY AT 23:21

शमा की रोशनी तो रोशनी है रात क़ाली हो
शमा की रोशनी तो रोशनी है बुझने वाली हो


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2 FEB AT 14:54


किसी की नज़रों से रौशन उन्ही की याद का मंज़र
सभी कुछ बस उसी का था मुझे लगता था है मेरा
कोई शायद के गुज़रा है हमारी रूह के जानिब
मर कर भी फ़िर से ये सकूँ मुश्किल हुआ मेरा

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16 OCT 2024 AT 14:14

वक़्त की शाख पर लम्हे से पिरोये हैं
यादों के वो पत्ते जो हमने कभी खोए हैं
उनकी हर बात इस दिल को सताती है
जिन पलों को सिरहाने रख कर के सोये हैं

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