किसी की नज़रों से रौशन उन्ही की याद का मंज़र
सभी कुछ बस उसी का था मुझे लगता था है मेरा
कोई शायद के गुज़रा है हमारी रूह के जानिब
मर कर भी फ़िर से ये सकूँ मुश्किल हुआ मेरा-
वक़्त की शाख पर लम्हे से पिरोये हैं
यादों के वो पत्ते जो हमने कभी खोए हैं
उनकी हर बात इस दिल को सताती है
जिन पलों को सिरहाने रख कर के सोये हैं-
रफ्ता रफ्ता हो रही हर शय फ़ना क्या बात है रोशनी है मांगती अंधेरों से पनाह क्या बात है
लड़ रहे हैं सब ख़ुद ही , 'ख़ुद ही'के अक्स से
जीतने की रख कर के दिल मे चाह क्या बात है-
रफ्ता रफ्ता हो रही हर शय फ़ना क्या बात है
रोशनी है मांगती अंधेरों से पनाह क्या बात है
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चौडी चौडी सड़कों के फ्लाइ ओवर की छाँव
रस्ते तो भरपूर बने पर दूर हुआ मेरा गाँव
पनघट हैं वीरान सूख गए नाले और तालाब
प्यास लगे तो बिसलेरी पेप्सी हाज़िर है जनाब
दुल्हे के सेहरे से सज गए चिप्स और पान मसाले
ख़रीद रहे सब कार की खिड़की से हाथ निकाले
टिन्टेड काले शीशों में थे दुर्लभ जिनके दर्शन
पीक थूकते कर रहे ' ज़ुबाँ केसरी ' प्रदर्शन
ऊँची ऊँची इमारतें और फार्महॉउस की कतार
कर अवरुध रही है गाँव की ठंडी ठंडी बयार
जिसकी चर्चा किये निराला जी बहुत ही गौर से
अब भी है वो खड़ी हुई प्रगति के उसी छोर पे
इलाहाबाद के रस्ते पर जो ढूंढे थी मुक्कदर
आज भी प्रयागराज के पथ पर तोड़ रही है पत्थर-
अगर तेरे हिस्से मे युद्ध लिखा है
तो तेरे हिस्से में कृष्ण भी आयेंगे
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मेरी बातों के असर को देखना
शाम को भूलो सहर को देखना
बीती बातों से न कुछ मिल पाएगा
अब तो आगे रह गुज़र को देखना
लेके तुम पतवार हो मझधार में
ग़ौर से पहले भँवर को देखना
ख़ुद से मंज़िल पास दौड़ी आएगी
मेरी मानो तुम संवर के देखना-
यहीं खड़ा होकर मैं कबसे
देख रहा हूं दुनिया को
सोच रहा हूं क्या सोचा था
कैसा पाया दुनिया को
जीवन का हर पल और लम्हा
याद आ रहा जो बीता
सोच रहा हूं कैसा होता
समझ पाता जो दुनिया को
कितना बीता कैसे बीता
मन का था या ना भी था
मन का होता तो भी क्या
मैं समझ पाता इस दुनिया को
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दुनिया पर था राज किया बना - बना के मूर्ख
देखा बस अपना ही भला हैं यह बहुत ही धूर्त
बर्बाद खाडी को कर अब एशिया दक्षिण पूर्व-
घर बनाने जो चले थे हम मुसाफ़िर बन गए
कर ली ज़्यादा इबादत हम तो काफ़िर बन गए-