Vishu   (©विशाल)
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Joined 29 November 2020


Joined 29 November 2020
1 MAY 2022 AT 23:15

कभी-कभी
तुम्हारे बारे में
किसी के पूर्व-निर्णय
अनुमान या अटकलें
ज़रा भी चुभते नहीं!

चुभती है तो बस
तुम्हारी ओर से
उनको दे दी गई अब
विदा से पहले की विदा...

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3 JAN 2022 AT 22:54


कभी गुल से, कभी काँटे से, कभी पत्थर से मिला
जब-जब भी बाहर गया मैं, नए एक बशर से मिला।

जिसे दूर ढूँढता रहा वो इत्तेफ़ाक़न करीब आ गया
उधड़ता दिल स्याह अँधेरे में एक रफूगर से मिला।

मौसम ही सर्द था या क्या था उसे थी फ़िकर मेरी
मुझे था उसने तो घर बुलाया मगर मैं बाहर से मिला।

बड़ा संभल के चलना, कही वो सराब ना निकले
मैंने जब-जब भी पूछा, जवाब इक अंदर से मिला।

तय हो रास्ते वस्ल के, तो रुकते नही रोके किसी के
आसमाँ उफ़क़ पर मिला,जब भी समंदर से मिला।

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2 JAN 2022 AT 21:12

हो तुम उनके तब तक ही, आ सको काम जब तक उनके
मत भूलो ये तथ्य एक जो, सत्य है जग में, सर्वविदित है।
गहराई में प्रेम की उनके डूबो मत, पहले जानो प्रिय
तुमको अपना कहने में क्या, उनका कोई स्वार्थ निहित है?

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1 JAN 2022 AT 22:18

फिक्र मेरी भी सारी यूँ काफूर हो जाएगी
शाद चेहरे पे तेरे तबस्सुम जो खिल जाएगी।
लब-ए-नाज़ुक पे घुलेगी जिस रोज़ भी तेरे
मौसिक़ी मेरी ग़ज़लों को उस रोज़ मिल जाएगी।

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14 NOV 2021 AT 23:10

कभी-कभी तुम
जी रहे होते हो प्रेम
और स्मृतियों के गवाक्षो से
हल्की धूप छनकर
पहुँच जाती है
ह्रदय के किसी कोने में

उन क्षणों में अनायास ही
फूट पड़ते है आँखों से प्रस्रवण!
और उनके बह जाने के बाद
मिलता है वो अकूत आनंद,
एक अथाह तृप्ति
जैसे कुछ ना पाकर भी
मिल गया हो सब कुछ

क्या तुम्हे लगता नही?
"अश्रु कणिकाएँ
प्रेमियों के ईश्वर की
सबसे प्रिय वस्तु है|"

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19 SEP 2021 AT 22:00

सभ्यताएँ रही
किंचित असहज
अंगीकार करने में जब प्रेम को
कुछ प्रेम सदा रहे
दैहिक स्पर्शो से परे।

प्रकृति ने अपनी तूलिका से
प्रेमियों के हृदय में रंग भरे
और उपहार में दी जाने लगी
प्रेम कविताएँ...

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16 SEP 2021 AT 20:49

बारहा दिल की आँखों के सारी रात बहने में
मुश्किल हो रही है वक़्त के साथ बहने में ।

पहले पता होता था खुश है या है गमगीन हम
खामोश है दिल भी अब अपने हाल कहने में।

सोचा था सफर आसाँ होगा कारवाँ में मिलके
तनहा ही फिर भी लगता है सबके साथ रहने में।

कर लिया करते थे पहले कुछ काम पसंद के
भूलने लगे है सारे अब सबके काम करने में।

ख़्याल आता है बागी हुआ जाए जिंदगी से अब
कुछ रक्खा नहीं है सितम यूँ चुपचाप सहने में।

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2 AUG 2021 AT 0:49

बेहतर होता कुछ हक़ीक़तों से अनजान होते
मिज़ाज़-ए-तहक़ीक़ ने अक्सर डुबोया हमे|

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14 JUL 2021 AT 0:54

मसरूफ़ियत में अधूरी बाते रह जाती है।
लोग चले जाते है बस यादे रह जाती है।

कुछ रुखसते होती नही रुखसते शायद
किताबे होती है खुली, वाक़िए कह जाती है।

मुस्कुराहटें ले आते थे हरकतों से वो अपनी
बाँधी सबसे कहाँ ऐसी भला गिरह जाती है।

बारिशो के सफर में वहीं शज़र सुहाना था
जिंदगी यूँ तो वैसे शरारे भी सह जाती है।

जाते-जाते हमे कोई जिद्दी बता जाता है
रोके तब न खुद को तो आँखे बह जाती है।

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1 JUL 2021 AT 0:26

किरदार से अपने ही दगा करे कब तक
नाशाद है तो अहद-ए-वफ़ा करे कब तक

राब्ता नही रखना फ़िर भी मिलते है जो
बेरंग खतो का महसूल हम भरे कब तक

वजूद से अब अपने लड़ा जाएगा नहीं हमसे
कि इक-इक दिन मौत-सा है मरे कब तक

सामना करना है सच का कभी ना कभी तो
सही वक़्त के भरोसे यूँ रहेंगे परे कब तक

रोशनी की चाह में जिंदगी चली जानी है
जब जलना ही तकदीर है तो डरे कब तक

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