Vishnu Verma   (Vishnu Verma)
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Joined 11 May 2017


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Joined 11 May 2017
29 JUL 2023 AT 22:48

सुनो मेरी उलझी हुई है जिंदगी, तुम सुलझा दोगे क्या..
बड़ा उथल पुथल सा है यह मन, तुम समझा दोगे क्या..

किस कनक को सोना कहूं किस कनक को धतूरा,
यह तुम बतला दोगे क्या..

कैसे मैं अपने ख्वाबों का उड़ान लिखूं और कैसे लिखूं
अपने सपनों का किताब, ज़रा तुम लिखवा दोगे क्या...

कैसे मिलूं मैं ख़ुद ही ख़ुद से और कैसे मिलूं मैं तुम्हारे
अंतर्मन से, मुझे तुम मिलवा दोगे क्या ...

यही एक छोटा सा संदेश है मेरा अगर तुम जा
रहे हो वृंदावन,
तो मेरे श्रीकृष्ण को यह संदेश पहुंचा दोगे क्या..

🙌 !! जय श्री कृष्णा !!🙌

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18 JUN 2023 AT 8:50

"पिता"
बिन जताये ही अथाह प्रेम की मूर्ति है वह..
लाख मुश्किलों के बाद भी परिवार की खूबसूरती है वह..
अजी! वह पिता है; अंदर भले ही थकान हो अरसों का ,
पर बच्चों के लिए चीता-सा फूर्ति है वह ।

हर रोज निकल पड़ता है घर की जिम्मेदारियों का
बोझ लिए कंधों पर..
चाहे तपती धूप हो, कपकपाती ठंड हो या
गरजते मेघ हो..
तमाम व्यथा है उसके अंदर पर तनिक भी
जाहिर नहीं करता ताकि उसका कुटुंब खुश रह सके ।

मां की दवाई है, पिता की मिठाई है, बच्चों की पढ़ाई है
चाहे पत्नी की रुसवाई है, सबकी चिंता है उसको..
अजी! वो पिता है अंदर बवंडर सा शोर लिए सदैव
पानी सा शांत रहता है वह..

हां वह पिता है, वाणी में कठोरता लिए
हृदय का कोमलता है वह।
आंखों में हजारों स्वप्न लिए,
अपने कबीले का शीतलता है वह।‌

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1 MAY 2023 AT 22:58

सफ़र
अजी! ये शहर, गांव, कस्बा, कबीला सब झूठे हैं..
सच्चा है तो बस आपका खुद से तय किया हुआ सफ़र ,

कुछ दूर तलक चलने के बाद ये सब पीछे छूट जाते हैं,
फिर एक नई सफ़र की शुरुआत होती है..
और उस सफ़र के साथी भी हम स्वयं ही होते हैं..

फिर क्या? बचती है तो बस सफ़र में तय की हुई
कुछ यादें, कुछ लोग और कुछ उम्मीदें..
जिसे लेकर जिंदगी की मंजिल को पाने की
कोशिश रहती है हम सबकी,

तो क्यों ना स्वयं को हर सफ़र के लिए तैयार किया जाए,
और जिंदगी की हर एक उम्मीदों को कायम रखा जाए ...
!! जिंदगी जिंदाबाद !!

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28 MAR 2023 AT 23:19

"ज़िंदगी -2"

बेइंतेहा सब्र, अंदर शोर सा मंजर पर
लफ्जों पर ख़ामोशी, हजारों दर्द फिर
भी चेहरे पर मुस्कुराहट
अब तो ऐसे ही चल रही है ज़िंदगी,

जो ज़रा सी तकलीफ़ पर घर में तूफान
मचा दिया करते थे ,वो आज खुद के
अंदर ही बवंडर लिए बैठे हैं
अब तो ऐसे ही चल रही है ज़िंदगी,

वह शाम जहां बिन मतलब के ही महफ़िल
सजा करती थी आज उस महफ़िल के लिए भी
मतलब से जाना पड़ता है
अब तो ऐसे ही चल रही है ज़िंदगी,

तमाम उलझनों के बाद भी खुद को हर रोज़
थोड़ी-थोड़ी सुलझाने की कोशिश
अब तो बस ऐसे ही चल रही है ज़िंदगी।

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9 JAN 2023 AT 8:11




"स्वयं का महाभारत"

जिंदगी के सफर को अब तुम स्वीकार करो..
गिरो, उठो, दौड़ो और फिर एक नयी हूंकार भरो ।

मन को बना लो रणभूमि और मस्तिष्क को बनाओ
अपना हथियार...
उठा लो पताका विजय का और खुद का करो ज़रा जय-जय कार ।

धनुर्धर बनो तुम अर्जुन सा पर अभिमन्यु सा प्रहार करो..
सूर्यपुत्र कर्ण सा उन्माद रखो जिगर में और भीम सा वार करो ।

गांधारी की प्रेम बनो तुम, माँ कुंती सा रखो धैर्य..
गंगा की सतत् प्रवाह बनो तुम और द्रौपदी सी आवाज बनो ।

भीष्म की प्रतिज्ञा बनो तुम पर समय के अनुसार चलो..
गुरु द्रोण की शिक्षा बनो तुम पर सब का सम्मान करो ।

त्याग दो शकुनि का लोभ, छल, कपट और प्रपंच..
ज्ञान लो तुम श्री कृष्ण का :- आरंभ भी तुम, अंत भी तुम
युद्ध भी तुम, योद्धा भी तुम
और कुरुक्षेत्र भी तुम ।

एक बार स्वयं का महाभारत स्वयं से लड़ कर तो देखो..
हार भी तुम, जीत भी तुम, तलवार भी तुम और धार भी तुम।


🌺 🙏 जय श्री कृष्णा 🙏 🌺

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5 JAN 2023 AT 13:00

स्वयं की महाभारत

जिंदगी के सफर को अब तुम स्वीकार करो..
गिरो, उठो, दौड़ो और फिर एक नयी हूंकार भरो ।

मन को बना लो रणभूमि और मस्तिष्क को बनाओ
अपना हथियार...
उठा लो पताका विजय का और खुद की करो ज़रा जय-जय कार ।

धनुर्धर बनो तुम अर्जुन सा पर अभिमन्यु सा प्रहार करो..
सूर्यपुत्र कर्ण सा उन्माद रखो जीगर में और भीम सा वार करो ।

गंधारी की प्रेम बनो तुम, माँ कुंती सा रखो धैर्य..
गंगा की सतत् प्रवाह बनो तुम और द्रौपदी सी
आवाज बनो ।

भीष्म की प्रतिज्ञा बनो तुम पर समय के अनुसार चलो..
गुरु द्रोण की शिक्षा बनो तुम पर सब का सम्मान करो ।

त्याग दो शकुनि का लोभ, छल, कपट और प्रपंच..
ज्ञान लो तुम श्री कृष्ण का :- आरंभ भी तुम, अंत भी तुम
युद्ध भी तुम, योद्धा भी तुम
और कुरुक्षेत्र भी तुम ।

एक बार स्वयं की महाभारत स्वयं से लड़ कर तो देखो..
हार भी तुम, जीत भी तुम, तलवार भी तुम और धार भी तुम ।

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20 NOV 2022 AT 21:57

जिन व्यक्तित्व में बिन काबिलियत ही
सत्ता की ललक होती है
उनसे सदैव सचेत रहें..
वो मौकापरस्त लोग हैं
समय आने पर उनको भी
दरकिनार कर देंगे जो उन्हें
काबिल बनना सिखाए हैं ..

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11 NOV 2022 AT 21:41

किसे सुनाया जाए हाल-ए-दिल?
ना इश्क है, ना वफ़ा है..
ना गम है, ना खफा है..
फिर भी न जाने क्यूं ,
दर-बदर भटक रहा यह,
बस एक सुकून की तलाश में।

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6 NOV 2022 AT 11:05

बेहिसाब हसरतें मत पालिए जनाब ,
जो आपके पास है उसी को संभालिए ।

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31 OCT 2022 AT 23:00

"आज अचानक ही"

कल तक जो मेरे अपने थे ,
आज अचानक ही अजनबी यार हो गए ।

उनसे हर रोज़ होती थी तमाम दुनिया की बातें ,
आज अचानक ही अपनी दुनिया में खो गए ।

ताउम्र साथ चलने की बातें करते थे जो ,
आज अचानक ही कहीं अनजान रास्तों पर खो गए ।

उनसे ही चलता था रूठना-मनाना, समझना-समझाना ,
आज अचानक ही वो नादान हो गए ।

बहुत ही कमाल की यारी थी अपनी ,
आज वो यार भी अचानक से कहीं गुमनाम हो गए ।

बिन सोचे, बिन समझे, बिन मतललब ही बातें किया करते थे ,
आज अचानक ही वो मतलबी सा यार हो गए ।

बिन कुछ बोले ही चेहरे को पढ़ लेते थे जो ,
आज अचानक ही रद्दी किताब हो गए ।

खुद से ज़्यादा दूसरो की परवाह करते थे जो ,
आज अचानक ही बेपरवाह हो गए ।

कल तक जो मेरे अपने थे,
आज अचानक ही अजनबी यार हो गए।

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