विशेषता मिश्रा   (©विशेषता)
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Joined 29 June 2018


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इक रास्ता, इक राब्ता,
इक ज़िंदगी, इक संग तेरा;
कभी हिज्र और फिर उल्फतें,
इक रंग तेरा, इक रंग मेरा।

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उल्फत रही, दर्द रहा, फिर पाया है तुम्हें मैंने,
कि तुम आए ही मुझे जख्मों से जुदा करने को;
ऐसी बेइंतेहांई की हद तलक चाहा है तुम्हें मैंने,
कि सारी खुदाई इकट्ठा है तुम्हें मेरा करने को।

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इज़्ज़त-ओ-तहफ़्फ़ुज़ लाओ, मुझसे इश्क़ से पहले;
मुझे इश्क़ कम चलेगा, मगर ये दोनों - कतई नहीं।

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प्यार हाथों जैसा है!

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सराहा ही करो मुझे हमेशा की तरह ही,
क्योंकि अब आदत है सराहे जाने की।
तुमने सराहते-सराहते
मुझे फर्श से अर्श तक,
तो कभी जिस्म से रूह तक,
चलना- संभलना सिखलाया है।
तुमसे सालों सराहे जाने के बाद,
उस सराहना से आए बदलाव
मुझमें इतने साफ दिखते हैं,
कि तुम्हारी सराही इस नाचीज़ को
अब दुनिया भी सराहती है;
लड़कियां बनना चाहती हैं मुझ सी
और लड़कों को चाहिए मुझ सी ही कोई,
जो उन्हें सराह कर संजीदा कर दे।

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एक छुअन से सारे रोमों को कंपित करने वाले,
अवसादों के ऊंचे-ऊंचे भवन खंडित करने वाले,
तुमको पाकर साधारण से असाधारण को प्राप्त हुई,
मुझ मिट्टी को देवी सी महिमामंडित करने वाले।

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तुम्हारी बाहें हों और दम टूट जाए मेरा उनमें,
ज़िंदगी क्या है, बस इक आई-गई बात है!

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मणिकर्णिका
(Read in the caption)
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पता है?
सुकून की कोई इंसानी शक्ल होती,
तो ठीक तुम से नैन नक्श होते उसके!।
🧿

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भोगने को तुमको ही तो मोह से भरी हूं मैं,
और तुम में ही खो जाना है मोक्ष पाने को।

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