चारों ओर ख़ुशी का माहौल था। घर में चहकते रिश्तेदार, दोस्तों की आवाज़ें और हर चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन आरव के दिल में कुछ और ही था। आज उसका विवाह था, और उसे इस दिन का इंतजार सालों से था, लेकिन जैसे-जैसे शादी का दिन पास आ रहा था, उसके अंदर एक अजीब सा संकोच और उलझन बढ़ रही थी। वह अपने कमरे में दोस्तों के साथ बैठा था, हंसी-ठहाके लग रहे थे। कभी पुराने कॉलेज के किस्से, कभी उसकी पुरानी प्रेमिकाओं की बातें। “अब उनका क्या होगा?” एक दोस्त मुस्कुराते हुए पूछता, तो आरव मुस्कुरा कर चुप हो जाता। दरवाज़े पर दस्तक होती, कभी रिश्तेदार आते, कभी घरवाले उसे अगले फंक्शन के लिए तैयार होने को कहते। फिर एक दस्तक हुई, और आरव के दोस्त उठकर चले गए, जैसे मौन की आवाज को उन्होंने सुन लिया हो। वर्तिका कमरे में आई। वह हल्के से मुस्कराई और बोली, “Congratulations।” वह और कुछ नहीं बोल सकी, शायद शब्दों की कमी थी या फिर कुछ कहने की हिम्मत नहीं। आरव को चुप देख, वर्तिका ने थोड़ी देर बाद कहा, “तुम्हें तो मुझसे भी बेहतर पार्टनर मिल गयी “ आरव का दिल कह रहा था कुछ बोले, लेकिन उसके दिमाग़ ने चुप रहने का आदेश दिया। यह उस पुल के जैसे था, जहां एक तरफ़ दिल था और दूसरी तरफ़ दिमाग़। दोनों के बीच फंसा वह बस खड़ा रहा। वर्तिका ने फिर कहा, “क्या कभी बात नहीं करोगे मुझसे?” वह कुछ कहने का प्रयास करता, लेकिन बस बिना कुछ कहे सीढ़ियों की ओर बढ़ गया। हर कदम में उसकी सोच एक उलझन में फँसी हुई थी। क्या सच में एक ही इंसान से इतना प्यार और इतनी नफ़रत एक साथ हो सकती है?
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🏠 Hanumangarh
📖 IIIT Allahabad
🎂 5 September
Lake mukhota zindagi de vich,
Dss kad tk tu jee lenga
Yaadan nu saambh ke rkh lenga
Ghaman nu v pee lenga.
Par eh tauheen hougi,
Yaari di, sardaari di.
Tere andar ursan vali
Bemisal fankari di.
Maneya tu nahi chahunda,
Apne dukh faraulna duniya agge.
Maneya tu nahi chahunda
Apne aap nu kholna duniya agge.
Par rkh ke andr ehsaasan nu
tu kinna dil nu see lenga?
Lake mukhota zindagi de vich
Dss kad tk tu jee lenga.-
कभी कभी ही इश्क़ ये महसूस होता है,
जीना भी फिर उसी से मंसूब होता है,
मगर रुक जाते हैं हम दूर कहीं उस से ,
और दिल भी तब कहीं महफ़ूज़ होता है।-
ख़ुद पर ही नहीं ज़माने पर भी क़हर होता है,
बेजान रिश्तों का बोझ उठाना ज़हर होता है।
यूँ मरता नहीं कोई कभी जाने से किसी के
कभी कभी छोड़ कर जाना भी खैर होता है ।-
Kahin ghaton ki guftgu bhi bekar lagti jati hai
Kahin ek lamhe ki mulakat asar kar jati hai,
Kab samjhoge vishesh tum nadaniyan ishq ki
Ye paheli suljhane pe aur ulajhti jati hai !-
तेरी हार और जीत के मायने नहीं थे मुझे
तू, तू रहा हर वक्त यही काफ़ी है मुझे ।-
फेर लेता है मुँह तू, नफ़रतों से जिसको देख कर,
कभी मोहब्बतों के लिए उसकी तू सजदे किया करता था।-
Mai hun oh insaan ni reha
Vakt mera aasan ni reha
Tu mud ke aauna chauna hai
Par hun o armaan ni reha.-
जल और वायु जैसे लोहे को प्रेम नहीं ये मोह है द्रोण,
इक दिन मिट्टी कर जाते हैं सत्य नहीं ये भ्रम है द्रोण
दिव्य गुण चाहे कितने हों, प्रेम तो मुक्ति देता है
दुष्कर्मों से नष्ट हो जाते हैं। मोह बाँधता है गुरु द्रोण ।
मगर कृष्ण मैंने तो बस दिए सुख आपने उसको ,
एक पिता का धर्म निभाया राज्य उसके नाम किया
धन-धान्य और राज्य को मगर क्या उचित संस्कार दिए?
पुत्र के ही नाम कराया । क्या भले-बुरे का ज्ञान दिया?
और वासुदेव सुख देना पुत्र को। देखिए अब इस धर्मयुद्ध में,
क्या पिता का कर्म नहीं है? किस और खड़े हैं आप?
क्या प्रेम करना पुत्र को, पुत्रमोह के कारण ही,
पितृत्व का धर्म नहीं है? कब से अंहकार में पड़े हैं आप।
जोड़े हाथ गुरु द्रोण ने
टेके घुटने धरती पर,
जैसे एक गुरु को ज्ञान मिला हो
अपने आख़िरी समय पर।-
कैसे-कैसे
ज़हन से निकलने लगा है घर जैसे-जैसे,
समझ में आने लगी है दुनिया वैसे-वैसे ।
पुजारी से पूछ बैठे हम राह मस्जिद का,
दुत्कार कर बोला, “आ जाते हैं लोग कैसे-कैसे”।
तुम कहते हो खूबसूरत है, सफ़र-ए-ज़िंदगी,
इश्क़ करो मियाँ, फिर देखो इम्तिहान हैं कैसे-कैसे।
जो छोड़ कर चल दिए, उन्हें याद क्यों करें?
जो हैं अपने, उन्हें सम्भाल लिया जाए जैसे-तैसे।
मत उठाना ये पैमाना जाम का, छुप जाएँगे चेहरे सब,
ना जाने फिर नज़र आयेंगे किरदार कैसे-कैसे।
ज़हन से निकलने लगा है घर जैसे-जैसे।-