Vishesh Jothe   (विशेष)
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आज़ादी में आज़ादी कि प्यास लिए एक सफ़र ज़िन्दगी का बस ज़िंदा रहने के माने नहीं.
Joined 13 July 2019


आज़ादी में आज़ादी कि प्यास लिए एक सफ़र ज़िन्दगी का बस ज़िंदा रहने के माने नहीं.
Joined 13 July 2019
7 MAR 2024 AT 20:24

मैं हर रोज़ नया शहर खोजने निकल पड़ता हूँ

मैं हर रोज़ नया शहर खोजने निकल पड़ता हूँ,
कोई छायाँदार सज़र खोजने निकल पड़ता हूँ।

वो जिसमे थोड़ी फ़ुर्शत हो, थोड़ा शुकून हो,
ऐसी कोई पहर खोजने निकल पड़ता हूँ।

जिस पर मुझे कहीं न जाने के लिए चलना हो,
सीधी सी एक डगर खोजने निकल पड़ता हूँ।

जिसको खा कर एक लंबी, गहरी नींद आए,
मीठा सा कोई ज़हर खोजने निकल पड़ता हूँ।

कुछ नकामियाॅ मिलीं, बहुत भटका हूँ पहले भी,
थका हु थोड़ा, मगर खोजने निकल पड़ता हूँ।

- विशेष

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8 OCT 2023 AT 0:53

कभी कभी मेरा जी करता हैं,
मैं खुद को बहुत रुलाऊँ।

कोई चीज़ छीन लूं खुद से,
और खुद को ही सताऊँ।

बहुत देर तक सोचू,
किसी अपने की याद दिलाऊँ।

कही दूर अंधेरे जंगल में जाकर,
बैठू, जोरों से चिल्लाऊँ।

जख्म कुरेदूँ पहले खुदके,
फिर उन पर मरहम लगाऊँ।

लाखों राज़ छिपाऊँ दिन में,
किस को न बतलाऊँ।

पहले खूब चलू सहरा में,
खुद को पानी तड़पाऊँ।

कभी कभी मेरा जी करता हैं…

- विशेष

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10 AUG 2023 AT 0:48

बहुत बारिश के बाद का दिन...

नम खयालों में लिपटा बरसात का दिन,
अकेला, उदासी भरा आज का दिन,
सब कुछ भिगा कर सूखने के इंतज़ार में
बहुत बारिश के बाद का दिन।

जिनको था भूलना उनकी याद का दिन,
मौन पर मौन की दाद का दिन,
कल के झोंको से लड़कर अब चुप खड़े
हवाओं से पेड़ों की मात का दिन।

तेज बूंदों से उथले जज़्बात का दिन,
पतंगों का सुरंग से झांकने का,घबराहट का दिन,
वो जो बहुत कुछ बहा ले गयी अपने साथ
उस बीती हुई रात का दिन।

क्या रहा, क्या खो दिया के हिसाब का दिन,
पुराना भूलने का, नई शुरुआत का दिन,
कुछ इस तरह से गुज़र गया
बहुत बारिश के बाद का दिन।।

- विशेष

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24 MAY 2023 AT 3:18

अभी तो यही था न जाने वो चमकता हुआ खिलौना किधर गया, 

परखने की चाह में इतना उठा कर देखा की उसका रंग उतर गया, 

जमाया गया, सजाया गया, दाम लगाया गया, पर खरीदा न गया, 

पर इस बार खिलौने वाले ने जो नुमाइश मे रखा उसे तो बिखर गया।

- विशेष

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20 MAR 2023 AT 1:26

ये दिन हुआ कैसा, हुई सुबह ही नही,
मैं रहा इस तरह के जैसे रहा ही नही।

अहसास सब अच्छे बुरे का था मुझको,
लेकिन मैं चुप रहा कुछ कहा ही नही।

उठकर मेरे सामने से तुम इस तरह गए,
जैसे कभी मैं तुम्हारे सामने था ही नही।

कल रात बारिश मेरा सब कुछ ले गयी साथ,
मैं किसी खम्भे से उलझा रहा बहा ही नही।।

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7 JAN 2023 AT 22:29

मैं शोर मे रहता हु, और शोर मचाता हु बड़े जोर से,
की मेरी आवाज़ ही न पहुंचे मुझ तक किसी ओर से।

बस चलता हु, चलते रहता हु शाम होने तक, और
जान कर भी की घेरे मे हु, मुड़ जाता हु हर मोड़ से।

स्याही फ़ेक कर सब कुछ मिटाना चाहता हु लेकिन,
बीते नज़ारे पलको के सामने नाचते है किसी मोर से

अब हर उन शहरों मे जाने से परहेज है मुझको,
जिनके रास्ते, इमारते तेरी यादों मे है सराबोर से।

जज़्बात है इतने के बस नज़रे फेरत हु टीकाता नही कही,
डरता हु की वो पिघल न जाए जिसे देख लू मैं गौर से।।

- विशेष

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4 JAN 2023 AT 2:00

ख्वाहिश

या तो बस वही दे, वरना ना उसका कोई ख़याल दे,
उसकी याद न दे इक पल, चाहे उसे खोने का मलाल दे।

कई रोज से बिखरी पड़ी है चीजों से लिपटी कमरे मे,
इन यादों को किसी दरार से जमीं के गर्त मे डाल दे।

कभी वापस आ न पाए मुझ तक उसके सपने फिर,
ये सायद अंतरिक्ष से आते है इन्हे अंतरिक्ष तक उछल दे।

लौटते ही रखे हुए सारे खत जला दिये होंगे मेरे,
जो मेरे जहन पर उकेरे है तुने, उन्हे भी फाड़ दे ।

यू अंदर ही अंदर से सिमट कर रह जाना बहुत बुरा है साथी,
कोई बहरहमी से बहुत देर तक मारे मुझे, या फिर बस मार दे।

थक चुका हु आराम से, अब थोड़ा मुझको भी आराम दे ,
आ अपने कोमल हाथो से शीशा पिघला कर सीने मे डाल दे।

-विशेष

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26 DEC 2022 AT 22:52

प्रेम, परवाह, सदाचारी, सराफत, इंसानियत, 

उसका सबसे अच्छा होना याद आता है मुझे। 


झूठ सारे जो मैं बहुत देर से समझ पाया, 

झिझकता हुआ चेहरा सच बताता है मुझे। 


मैं गलतफ़हमी मे था के मेरा कातिल कोई और है, 

पर अंदर कोई मेरा ही हिस्सा खाये जाता है मुझे। 


अब जब उसकी आँखे देखता हुँ, 

उसकी आँखों से कोई आँखे दिखाता है मुझे।।

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9 FEB 2022 AT 10:59

तुम कहाँ हो...

तुम कहाँ हो , जिसको कई बार मैंने गाड़ियों की खिड़की से झांक कर देखा था, 

दुधमुँहे थे, या दस पाँच साल के होंगे, जिसकी ओर कभी कोई सिक्का फेंका था। 

मैले, बेतरतीब कपड़े, कमज़ोर धूलधूसित जिस्म, नाक जैसे हो नदी सदानीरा, 

तुमको देखकर नज़रे चुराई थी मैंने, तुमसे फिर कभी न मिलने का अंदेशा था। 

आज रात शायद तुम पन्नी से ढकी किसी झोपड़ी मे सिकुड़ कर पड़े होंगे, 

जिसे कोहरा चीर कर निकल जा रहा हो, जिसकी किमचियाँ तक कांप रही होगी, 

या कहीं फुटपथ पर नींद की दुआ मांग रहे हो, ताकि सुबह तक ही सही ठंड भूल सको, 

गुजरती कारों की रोशनी एक दुसाले सी, जो पलभर मे कोई उड़ा कर खींच लेता, 

किटकिटाते दांतों की कंपन दिमाग तक जाकर दिन का ख्वाब भी न बुनने दे रही होगी, 

या शायद आज तुम मर गए! खौफनाक ठंड और इंसानियत की दी लाचारी से हार कर, 

तुम्हे जब पाया तुम्हारी सख्त हुई उंगलियो में दवा व्यंग सा झांकता वही पौसा था, 

लाखों ख्वाइशें फटे झोले मे कचरे से लिपटी मिली, जिन्हे तुम अपना खिलौना समझते थे, 

इतने कोमल जिस्म की इतनी भारी रूह को उठा जो सका,जाने वो काल कैसा था, 

खैर फिर मिथक सूरज उपजा फलक पर, फिर शहर दिखने लगा वैसा ही, कल वो जैसा था। 

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16 MAY 2021 AT 22:11

अब वो लाशें बेचता है...

मातम पर बिलखते, दिल को दहलाने वाले तमाशे बेचता है,
मेरे हुज़ूर ने धंधा बदल लिया है, अब वो लाशें बेचता है।

सब सफेद काली गोटियों का राजा वही है,खड़ा किस ओर है ये न देखो,
अपनी पलको से इशारे करके दोनो ही तरफ के पासें बेचता है।

सब 'चंगा' बताकर पहले बेपरवाही से छीनी खुशियां हमारी,
अब हमीं को टीन के डब्बों में भर कर साँसे बेचता है।

हज़ारो नदियों में बहे और लाखों अपनो के हाथ न आये,
अब भी वो सब कुछ ठीक कर देने की झूठी आसें बेचता है।

मौत के मौन से सनी दिल को चुभने वाली फंसे बेचता है,
मेरे हुज़ूर ने धंधा बदल लिया है, अब वो लाशें बेचता है।

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