वक्त इजाज़त दे अगर
तो उस दौर में फिर हो आऊं मैं
जहाँ फिकर नहीं थी कमाने की
ना जिकर कोई थी ज़माने की
वो अल्हड़पन में दिन गुजारू
रातों में तारे गिन सपने सजा लूं
बचपन की तंग गलियों में
फिर खो जाऊं मैं
वक्त इजाज़त दे अगर
उस दौर में फिर हो आऊं मैं
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वक्त बदला है, जज़्बात वहीं हैं
आगे तो बड़े हैं पर हालात वहीं हैं
छोड़ कर गया हैं वो इस शहर को तब से
इमारतें बदली है, यादों की दीवार वहीं हैं-
तेरी बातो में अजीब सी खनक है
हसीं में बेपरवाही हैं
आंखों में चमक हैं
और हाथों में दुनियां बसाई हैं-
चालबाजियां दुनिया की समझ ना पाए
हाथ थामते हैं लोग यहाँ पीछे धकेलने के लिऐ-
मेरे बस का नही तुझे ख़ुश रखना
मेरी जान की भी क़ीमत कोई लगाता नहीं
बैठ कर समझा तो तुझे सारी दिक़्क़त
बातों में मेरी तू ध्यान अब लगाता नहीं-
मेरे हिस्से सिर्फ़ क़िस्से हैं
कहानियाँ सब उसकी हुईं
उसकी कहानियों में हम नहीं
मेरे क़िस्सों में भी बातें सिर्फ़ उसकी हुईं-
कुछ तो हैं तेरे मेरे दरमियां
जो मिटता नहीं
साहिल से दरिया
यूँ ही मिलता नहीं
बैचैनी सी रहती हैं तुझे ना देखें तो
तुझे देख ले तो
चैन मिलता नहीं-
और क्या ही हैं मेरे पास
तेरे अल्फ़ाज़ों के सिवा
जो भेजें थे तुमने काग़ज़ में लपेट कर
रखा हैं पुरानी क़िताबों में दबा कर उन खतों को
हर साल दीवाली की सफ़ाई में पढ़ लेता हूँ चुपके से
अब वो कागज़ भी पीले पड़ गए हैं
पर अल्फ़ाज़ों में मिठास आज भी कायम है
और क्या ही हैं मेरे पास
तेरे अल्फ़ाज़ों के सिवा-
उसे देखने के बहाने रोज़ दफ़्तर जा रहा हूँ
अब ये कम्बख़त इतवार मुझे अच्छा नहीं लगता-