कुछ पलों को याद कर लिया मैंने
कुछ हसीं शामों को जिया मैंने
कुछ बिखरे शब्दों को किताबों में सजाया मैंने
कुछ ऐसे भी ज़िंदगी को जिया मैंने ।।
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एक ऐसा प्रेम......
जिसकी आंखों में सिर्फ मेरे ख्वाब,दिल में सिर्फ मेरा इंतज़ार
उसके हर एक लफ्ज़ में मेरा नाम
किसी ओर को ना वो देखे ना सुने ना कुछ कहे
उसकी सारी फीलिंग्स पर मेरा हक हो,उसकी बातों में मेरा इश्क़ हो,उसके जज़्बात,उसकी रूह का एक एक कतरा मेरे नाम हो
उसकी हर एक धड़कन पर मेरा नाम लिखा हो
उसका झगड़ना उसका रूठना सिर्फ मेरे लिए हो
कुछ ऐसा प्रेम उसका मेरे लिए हो
कुछ ऐसा प्रेम......-
सर्द मौसम ओर दिसंबर का दिन तुमसे पहली मुलाकात का दिन
झुकी पलकें खुशनुमा मौसम ओर तुम्हारे हाथों की चाय
नज़रें उठाकर देखना तुम्हें फिर पल भर में नज़रें झुका लेना
क्या कहूं तुमसे सोचकर निगाह तुम्हीं पर ठहर जाना
दो पल बातें तुमसे करके, सफ़र तुम्हारे साथ शुरू करना
झील पर तुम्हारे साथ टहलने से लेकर नौ चोकी पाल तक का सफर तय करना
जैसे समय वहीं ठहर गया ठीठुर गया...दिसंबर की सर्दियों में...तुमसे पहली मुलाकात में...
- Vishal Vs Salvi
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आजकल मेरी खुद से खुद की दूरी बढ़ गई हैं
कुछ खामोशियां हैं जो मेरे हिस्से में बढ़ गई हैं
कुछ शब्द हैं जो निरुत्तर की भांति हैं
शायद मेरी बातों में अब शिकायत बढ़ गई हैं
स्वीकृति मिलती नहीं अब यहीं कही
एक कठीन सवाल हैं,जिसकी संभावना ओर बढ़ गई हैं
संभव हैं मैं रहूंगा दिल में उसके
एक हकीक़त हैं वो,जो ओर भी बढ़ गई हैं।।
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कहां गए वो दिन मुसाफ़िर
याद बहुत आते हैं मुझको
दिल ही दिल में ढूंढता हूं एक पल मैं वो मुसाफ़िर
जीने की आस में हम तो बैठे भूल खुद को
विरान जगहों पर अब तो चुपचाप बैठे हम मुसाफ़िर
अनजान राहों पर चल पड़े हैं हम तो यूंही
रोके कहां तक खुद को राहें भटके हम मुसाफ़िर
महक आती नहीं फूलों में अब तो
सूखे पत्तों की तरह बिखरे पड़े हैं हम मुसाफ़िर
फैली हैं खामोशियां हर फिज़ा में अब तो
कैसे दिन ढलेगा शामों के किस्सों में हम मुसाफ़िर
हम मुसाफ़िर.....हम मुसाफ़िर.....
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वो बोल ना पायी ओर मैं कह ना पाया
मेरी सुबह उससे,मेरा दिन वो,मेरी रातों का हिसाब उसका
पर मेरी बाहों में आती जब भी वो
वो बोल ना पायी ओर मैं कह ना पाया
इस सावन कि पहली बारिश वो,मेरे होठों की पहली गुस्ताखी वो
पर गुज़रा जब भी मैं उसकी गली से
वो बोल ना पायी ओर मैं कह ना पाया
मेरी पतझड़ सी जिंदगी का सावन वो,मेरी जिंदगी के लम्हों में हसीं ख़्वाब वो
पर मुलाक़ात हुई जब भी मेरी उससे
वो बोल ना पायी ओर मैं कह ना पाया ।।-
एक जन्म के लिए नहीं हर जन्म के लिए तेरा साथ चाहिए
हाथों में हाथों तेरा हाथ ओर कभी ना खत्म होने वाला वक़्त चाहिए
ख़्वाहिश इतनी सी तेरी आंखो का दीदार ओर तेरे होठों की मुस्कान चाहिए
तेरी जुल्फों को धकेलू जब तेरे कानों के पीछे तो वक़्त वहीं थम जाए ऐसा कोई मौसम चाहिए
एक जन्म के लिए नहीं हर जन्म के लिए तेरा साथ चाहिए।।
वो रानी रोड़ की चाय और तुझ संग सुकून भरा एक लम्हा चाहिए
वो बारिश की बूंदों में हसीं एक शाम चाहिए
गुज़रे हर एक लम्हा तेरे साथ ऐसी अब जिंदगी चाहिए
एक जन्म के लिए नहीं हर जन्म के लिए तेरा साथ चाहिए।।
-Vishal Vs Salvi
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प्रेम के रंग में डूबकर गीत मैं नए गाता रहा
देखकर तुम्हारी तस्वीर को मन मेरा बहलाता रहा ।
तुम्हे देखकर मुग्ध मैं होता रहा
ह्रदय पर बाण चले ऐसे जैसे हारकर भी मैं मुस्कुराता रहा
दोबारा लौट कर भी मैं अपने शहर को तेरे शहर आने को आतुर होता रहा
प्रेम के रंग में डूबकर गीत मैं नए गाता रहा
देखकर तुम्हारी तस्वीर को मन मेरा बहलाता रहा।।
छिन्न भिन्न हुआ ऐसे मैं फिर विशाल ना रहा दोबारा मैं
झुककर तुम्हारे आगे हर बाण मैं तुम्हारा सहता रहा
तुम्हारे नैनों की मधुर ध्वनियों से तन पुलकित मन हर्षित होता रहा
प्रेम के रंग में डूबकर गीत मैं नए गाता रहा
देखकर तुम्हारी तस्वीर को मन मेरा बहलाता रहा ।।
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तेरे बिना कितना अधूरा हूं
कैसे बताऊं तुम्हे!
कैसे बताऊं तुम्हे...
तुम नहीं तो इस जीवन का संगीत नहीं
तुम नहीं तो फूलों में वो खुशबू नहीं
तुम नहीं तो भंवरो की वो आहट नहीं
तुम नहीं तो सावन की बारिश नहीं
पहाड़ों पर वो हरियाली नहीं,गुलशन में बहारें नहीं
सागर में वो लहरें नहीं,पंछियों की वो चहचहाहट नहीं
ओर तुम हो तो...
लौट आता हैं सब कुछ
लौट आते हैं मधुमास के दिन
पंछी भौर होते ही गाने लगते हैं
लौट आती हैं हवाओं में वो खुशबू
ये पहाड़,बर्फ,झरने,हरियाली
सब का आगमन हो जाता हैं फिर से
ओर लौट आती हैं मेरे जीवन में अंधेरों की वो रोशनी फिर से
हां लौट आता हैं जैसे सब कुछ.....-
क्यों नहीं तुम चली आती हो
यूं हर रोज मेरे ख्वाबों में गुम हो जाती हो
क्यों नहीं तुम चली आती हो।
मेरे शहर की ओर रुख करके,मेरे हाथों को स्पर्श करने
क्यों नहीं तुम बिन पूछे मेरा हाल जान लेती हो
क्यों नहीं तुम चली आती हो।
रहकर मेरे लफ्जो में,क्यों नहीं मेरी बातों में ठहर जाती हो
प्रेम में खुद को डुबाकर,क्यों नहीं तुम बेपनाह इश्क़ कर लेती हो
क्यों नहीं तुम चली आती हो।
एक उम्र गुज़ार लू तेरे साथ,इन वादों को पूरा कर ले एक साथ
बनकर राधा सी तुम क्यों नहीं मैं से हम हो जाती हो
क्यों नहीं तुम चली आती हो।।
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