खोल दो तीसरी आँख हे नटराज,
हो जाने दो ताण्डव फिर से..!
अब तो सच मे फट ही पड़े ये पृथ्वी,
और समा ले स्वयं में प्रकृति..!!
फिर से सृजन करें ब्रह्मा,
नई धरती नया आसमान हो..!
जहाँ इंसान का मतलब इंसान हो,
करो इच्छा पूर्ण अगर कहीं तुम भगवान हो..!!-
पढ़ लो अल्फ़ाज़ मेरे समझ जाओ मुझे
गांडीव रूपी अधर, शब्द रूपी बाण
हो जाएँ जब तीक्ष्ण, हर लेते हैं प्राण
जिव्हा रूपी तूणीर, रख शब्दों का संज्ञान
प्रत्यंचा हृदयाग्नि हुई जब मस्तिष्क को दे विराम
फिर धनुर्धर क्या करे, दम्भ-टंकार अभिमान-
भटकती है हवस दिन रात सोने की दुकानों में,
ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है।-
देश धर्म पर मिटने वाला शेर शिवा का छावा था,
महा पराक्रमी परम प्रतापी एक ही शंभू राजा था।।-
था तुझे ग़ुरूर ख़ुद के लम्बे होने का ऐ सड़क,
ग़रीब के हौसलों ने तुझे पैदल ही नाप दिया..😥-
सुवरों ये जो तुम्हारी वहशियत है,
वो एक दिन चिर जायेगी!
उद्धव अगर अब भी तुम चुप बैठे, तो सरकार गिर जायेगी!!
उद्धव से अब संभलती नही ये वीर शिवा की थाती है,
है हिन्दुवीर बालासाहब अब याद तुम्हारी आती है!
मातोश्री का गौरव रखा है सरकारी फेरो में,
बहुत फर्क होता है जंगल और सर्कस के शेरो में!!
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अनुनय करने से अगर ,बने नहीं जब बात।
करना तब तुम शक्ति से, रिपुदल पर आघात।-
बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है |
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |
सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल |
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||
ज़िन्दगी एक नियामत, इसे सम्हाल के रख |
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||
दिल बहलाने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी |
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ||
- Unknown-
आशियाना बनाये भी तो बनाये कहाँ विशाल,
जमीनें देखो तो बहुत महँगी हो गयी ओर दिल लोगो के छोटे होते जा रहे है😏-
रूठी थी किस्मत मेरी भी ,
अब मेहरबान हो गयी...!
“महाँकाल” के नाम से ही ,
अब मेरी पहचान हो गयी ।।-