दर्द-ओ-अलम के लिहाफ़ में सिमट कर रह गए,
तुझसे जुदा क्या हुए, लपटों में लिपट कर रह गए।
जोड़ने लगे थे ख़ुद को ज़िंदगी की कड़ी से,
कड़ी ऐसी टूटी के बस छिटक कर रह गए।।-
#बदतमीज़_शायर
शुष्क आँखों से अश्क छलकाऊँ कैसे,
अपनी हाल-ए-ज़िंदगी बतलाऊँ कैसे।
माना के मुझसे मिलना गवारा नहीं तुम्हे,
मेरे दरीदा-ज़ख़्मों का नज़ारा नहीं तुम्हे;
अपने रूह की खरोंच दिखलाऊँ कैसे,
अपनी हाल-ए-ज़िंदगी बतलाऊँ कैसे।।-
जिन बगीचों का माहौल तूफ़ानी हो,
वहाँ के पेड़ों पर फल लगना मुश्किल होता है।-
मचल जाता हूँ बारिश की पहली धमक से,
के फ़िज़ा का सौंधापन तेरा एहसास दिलाता है।-
It's imperative to gauge the normalcy of an incident on account of it's Genesis not Occurrence.
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भगवान ने दुनिया को बनाया,
और इन्सानों ने दुनियादारी को।।
इसलिए "दुनिया" को समझना मुश्किल है लेकिन "दुनियादारी" को समझना आसान। जब हम दुनियादारी को अच्छी तरह समझ लेते हैं तब हम इंसानों के लिए इस दुनिया में जीना आसान हो जाता है।-
न जाने ये किन सपनों की चुभन है,
छलका दिए आँखों ने लहू फिर भी घुटन है।
सहम जाता हूँ अपने लम्स-ए-बदन से,
जहाँ भी हाथ लगाऊँ तेरी ही छुअन है।
सहरा की तपती ज़मीन को तस्कीन कैसे मिले,
उसके सीने पर तो धधकती हुई अगन है।।-
भूल जाता हूँ अपने दर्द-ओ-ग़म तेरे आग़ोश में,
ऐ उर्दू, कहीं तू मेरा मेहबूब तो नहीं।-