तुम्हे जो याद रखता हूँ" तो बाकी भूल जाता हूँ
सुना देता हूं ऊला और सानी भूल जाता हूँ
तेरे हाथों को ले कर हाथ में जब बात करता हूँ"
पड़ी रहती है टेबल पे, मैं काफ़ी भूल जाता हूँ"-
Bibliophile
Fitness enthusiast..
Ultra runner
Loves cricket, movies
like my ... read more
बड़ा ही नर्म लहज़ा था सदा हँसता मैं रहता था
मुझे हर कोई दुनिया में तेरे जैसा ही कहता था
तिरे ख्वाबों का यूँ मुझको,असर दिखता था हर सू में
बिना फूलों के घर मेरा ही खुशबूदार रहता था
निशाँ बाकी है चेहरे पे, वो अश्कों की रवानी के
बची है रेत ही बाकी जहाँ दरिया भी बहता था
वो अनजाने में मेरी पीठ पर इक नाम लिखती थी
बदन मेरे का हर इक पोर फिर जलता ही रहता था
कभी जो पूछती थी वो, बताओ क्या लिखा था जी
दबा लेता था सच दिल में उसे मैं झूठ कहता था
किताबों से निकल कर देश अपने ले ही जाएंगी
तो परियों की कहानी मैं हमेशा पढ़ता रहता था
नहीं रुक पाता था मैं फिर, सदा उसकी जो आती थी
मेरे पैरों में छाले थे मगर मैं चलता रहता था-
न ही चंदा, न कोई गुल, न ही मिट्टी बनेंगे हम
किताबें पढ़ने वाले हैं, किताबें ही बनेंगे हम
कहानीकार या शायर, कभी किरदार भी होंगे ,
गज़ल, नगमा या फिर कोई कहानी भी बनेंगे हम
बहुत से रूप लेंगे और बहुत से रंग बदलेंगे
कभी हम मीर या मीरा, कभी मूरी बनेंगे हम
रहोगे जिस की सोहबत में, बनोगे भी उसी जैसे
अगर सच ये कहावत है, किताबें ही बनेंगे हम
नज़र जब डालोगे हम पे, पुराना वक्त लौटेगा
गुज़श्ता वक्त की यारों वही खिड़की बनेंगे हम
नहीं खुशबू है किंडल में ,मज़ा ना सफ़ पलटने का
महक जो आती है इनसे ,किताबें ही बनेंगे
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रि'आयत दी फरिश्तों ने मगर खाली रही जन्नत
सुना है एक अरसे से नहीं आया कोई जन्नत
कहोगे क्या ज़रा सोचो ,जहां जब छूट जाएगा
अगर पूछा तुम्हें रब ने, बता कैसी लगी जन्नत-
मैं तुमसे कह नहीं पाता, मैं कितना प्यार करता हूँ
सुनहरी धूप जैसी तुम,अमावस सा मैं कजला हूँ
मुझे जो छोड़ दोगी तुम,कोई शिकवा नहीं होगा
ज़माना कब से कहता है,बड़ा घाटे का सौदा हूँ
तेरे जब साथ रहता हूँ बढ़े है मेरी कीमत भी
सिफ़र हूँ मैं बिना तेरे,न फिर आधा, न पौना हूँ
मैं आँखे बंद कर के फिर, यूँ ही बस लेटा रहता हूं
वो तब तब माथा चूमे है, लगे जब उसको सोया हूँ
तुम्हे छूने की चाहत में, कई फिर रूप है बदले
तेरे पैरों की पायल मैं,तेरे कानों का झुमका हूँ
भला अब प्रूफ क्या मैं दूँ, तुम्हे पुख़्ता मुहब्बत का
मैं तेरी हम्म को भी यारा इक आयत समझता हूँ
अजब सी एक उलझन में कटे हैं रात दिन मेरे
जिसे पाया नहीं मैने उसे खोने से डरता हूँ
मैं कहता हूँ कभी ख़ुद को,ज़रा आराम तो कर ले
कभी खुद को उठा कर देर तक चलता मैं रहता हूँ
नज़र आती हो छत पे जब, मुझे लगता है ऐसा फिर
कि जैसे ट्रेन की खिड़की से मैं इक चाँद तकता हूँ-
लगा दो आग जंगल में,ख़बर झूठी सुना कर तुम
बताना शेर को जंगल हरा अच्छा नहीं लगता
कभी कहती थी शोना तुम,कभी बाबू बुलाती थी
मगर क्यों अब ये कहती हो,मुआ अच्छा नहीं लगता
उसे चाहो जियादा खुद से लेकिन याद रखना तुम
कहो इंसान को तुम देवता अच्छा नहीं लगता
चला आता हूं जोगिंग पे,तेरा दीदार करने को
वगरना छह बजे उठना ज़रा अच्छा नही लगता
लगे करने तरफ़दारी बुझे दीपक हवाओं की
थके हारों को मेरा हौसला अच्छा नहीं लगता
लगे जब बे-तकल्लुफ़ बात होने तो समझ लो तुम
कभी माफ़ी कभी फिर शुक्रिया अच्छा नही लगता-
इक लड़की है गीतों के उपहार सी
बहुत अच्छी quotes वो लिखती है
ये बात अलग है कि yq पे वो
पहले से कम वो दिखती है
यौम ए पैदाईश था हफ्तों पहले
अभी तक तोहफ़े गिनती है
"गुलज़ार" साहब को जब भी पढ़े
उनकी नज्मों जैसी खिलती है
कभी लिखे कहानी वो जब भी
बुर्ज खलीफा भी छोटी दिखती है
शायरी की समझ बहुत आला है
Choice जो मुझ से मिलती है
रसायन शास्त्र की विदुषी है
किताबें लेकिन सारी पढ़ती है-
वर मिले थे तीन मुझको मैने बरता एक ही
तुम को पाकर रब से मैंने देखो मांगा कुछ नहीं।-
बंसी सब सुर त्यागे है, एक ही सुर में बाजे है
हाल न पूछो मोहन का, सब कुछ राधे राधे है
ज़ुबैर अली ताबिश
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी
परवीन शाकिर
जिस की हर शाख़ पे राधाएँ मचलती होंगी
देखना कृष्ण उसी पेड़ के नीचे होंगे
बेकल उत्साही
कहे जाती है ऊधौ से ये रो रो कर के हर गोपी
बता अब कब सताएँगे मुझे मिरे किशन आख़िर
अदनान हामिद
रौशनी ऐसी अजब थी रंग-भूमी की 'नसीम'
हो गए किरदार मुदग़म कृष्ण भी राधा लगा
इफ्तिखार नसीम
न किसी गीत से रग़बत न शग़फ़ नग़्मों से
सिर्फ़ मीरा के भजन सुनता है कान्हा दिल का
लकी फारूकी हसरत-
न सीता कोई फिर ज़मीं में समाये
जहाँ में नया कायदा अब चला दो
इज़ाफ़ा करो तुम मिरे दुश्मनों में
चलो आज तुम भी मुझे बद्दुआ दो
मेरा बेटा चाहे वो बन जाए मुझ सा
मैं चाहूँ मुझे फिर से बच्चा बना दो
शिकायत अँधेरे की करते हो हर दम
कभी तीरगी में दिया ही जला दो
तबीयत है नासाज़ कब से ही मेरी
'अता कर के बोसे, मुझे तुम दवा दो-