लोरी कोई तो सुनाओं बाबा
थपकी दे कर तो सुलाओ बाबा
घर में फिर से चिड़िया कुछ आए
एक दो पेड़ लगाओ बाबा
गर मैं हूँ सब परियों के जैसी
उड़ना फिर आज सिखाओ बाबा
नाम वो कितना जुदा लगता है
फिर से बेटा तो बुलाओ बाबा
आसमाँ मुझको ज़रा छूने दो
कंधो पे अपने बिठाओ बाबा
तारों से भर दो मिरा दामन तुम
आसमाँ को तो हिलाओ बाबा
Vishal Vaid— % &दाढ़ी अच्छी नहीं लगती तुम पे
शेव रोज़ाना बनाओ बाबा
वेट तो ऐसे नही कम होगा
थोड़ा जिम विम में हो आओ बाबा
एक दो कौर तो मुझ से खाओ
एक दो कौर खिलाओ बाबा
लाड बेटी से करो मत इतना
कहते क्यों लोग बताओ बाबा
आज तो मानो मेरा तुम कहना
साथ आफिस ही ले जाओ बाबा— % &-
Bibliophile
Fitness enthusiast..
Ultra runner
Loves cricket, movies
like my ... read more
कोई शख्स मिलने से कतरा रहा है
ज़माने का डर है या शरमा रहा है
मैं पत्थर को छू लूँ तो इंसान कर दूँ
मगर राम बनने में घाटा रहा है
मेरे लफ़्ज़ सारे हवा हो रहे हैं
वो शायद मेरे ख़त को सुलगा रहा है
बहल जाता है झूठे वादों से अक्सर
मेरा दिल हमेशा ही बच्चा रहा है
अभी दाँत ज़हरीले निकले नहीं और
सपोला परिंदों को धमका रहा है
Vishal Vaid— % &सुना था बहुत अच्छे दिन आ रहे है
सुना है कि ये साल अच्छा रहा है
नहीं दिल था देना तो कह देते पहले
मुझे भी कोई लव यू कहता रहा है
हो बचपन जवानी या अब ये बुढ़ापा
हमेशा ही कंधो पे बस्ता रहा है
दे जाता है मेरी वो आंखो को पानी
ये रिश्ता तो बादल ज़मीं सा रहा है
हमें आख़िरी वक्त में जीना आया
चलो ख़ैर मकता तो अच्छा रहा है— % &-
बड़ा ही नर्म लहज़ा था सदा हँसता मैं रहता था
मुझे हर कोई दुनिया में तेरे जैसा ही कहता था
तिरे ख्वाबों का यूँ मुझको,असर दिखता था हर सू में
बिना फूलों के घर मेरा ही खुशबूदार रहता था
वो अनजाने में मेरी पीठ पर इक नाम लिखती थी
बदन मेरे का हर इक पोर फिर जलता ही रहता था
कभी जो पूछती थी वो, बताओ क्या लिखा था जी
दबा लेता था सच दिल में उसे मैं झूठ कहता था
किताबों से निकल कर देश अपने ले ही जाएंगी
तो परियों की कहानी मैं हमेशा पढ़ता रहता था
नहीं रुक पाता था मैं फिर, सदा उसकी जो आती थी
मेरे पैरों में छाले थे मगर मैं चलता रहता था
मुझे सपने में भी तुमसे न कोई मिलने देता था
उठा देते थे इक दम से मैं आँखें मलता रहता था-
पकड़ लो हाथ जो मेरा तो मैं पूरा हो जाऊँगा
रहेगा कुछ नहीं मेरा तेरा हिस्सा हो जाऊँगा
गुजर के पास से तेरे हो जाता हूँ गुलाबी मैं
मैं भी शायद किसी दिन शह्र जयपुर सा हो जाऊँगा
तेरे जो साथ होता हूँ बड़े है मेरी कीमत फिर
बिना तेरा मेरी जाना बड़ा सस्ता हो जाऊँगा
ये महँगा सूट ये टाई मेरा बचपन छुपाते है
ज़रा मिट्टी में खेलूंगा मै फिर बच्चा हो जाऊंगा
मुझे उलझा रही है ज़िंदगी कितने ही सालों से
नहीं सुलझेगा जो कश्मीर सा मसला हो जाऊँगा
यही सोचा था दीवाना तेरा कितना हो जाऊँगा
नहीं सोचा था दीवाना तेरा इतना हो जाऊँगा-
गुजर के पास से तेरे हो जाता हूँ गुलाबी मैं
मैं भी शायद किसी दिन शह्र जयपुर सा हो जाऊँगा-