मैं तुमसे कह नहीं पाता, मैं कितना प्यार करता हूँ
सुनहरी धूप जैसी तुम,अमावस सा मैं कजला हूँ
मुझे जो छोड़ दोगी तुम,कोई शिकवा नहीं होगा
ज़माना कब से कहता है,बड़ा घाटे का सौदा हूँ
तेरे जब साथ रहता हूँ बढ़े है मेरी कीमत भी
सिफ़र हूँ मैं बिना तेरे,न फिर आधा, न पौना हूँ
मैं आँखे बंद कर के फिर, यूँ ही बस लेटा रहता हूं
वो तब तब माथा चूमे है, लगे जब उसको सोया हूँ
तुम्हे छूने की चाहत में, कई फिर रूप है बदले
तेरे पैरों की पायल मैं,तेरे कानों का झुमका हूँ
भला अब प्रूफ क्या मैं दूँ, तुम्हे पुख़्ता मुहब्बत का
मैं तेरी हम्म को भी यारा इक आयत समझता हूँ
अजब सी एक उलझन में कटे हैं रात दिन मेरे
जिसे पाया नहीं मैने उसे खोने से डरता हूँ
मैं कहता हूँ कभी ख़ुद को,ज़रा आराम तो कर ले
कभी खुद को उठा कर देर तक चलता मैं रहता हूँ
नज़र आती हो छत पे जब, मुझे लगता है ऐसा फिर
कि जैसे ट्रेन की खिड़की से मैं इक चाँद तकता हूँ
-