Vishal Singh   (विशाल)
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Joined 17 April 2018


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29 JUN 2020 AT 1:01

इश्क़ मुकम्मल है, तो फ़िज़ूल है
बरक़रार वस्ल की चाहत है, तो क़ुबूल है

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20 JUN 2020 AT 9:31

कुछ इस क़दर है कि,
वो मेरी ज़िन्दगी में एक बार
दो बार, कई बार आए
और जब-जब आए
मुझे अधूरा छोड़ गए
उनका मुकम्मल आना
कभी हुआ ही नहीं।

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19 JUN 2020 AT 0:49

किसी का ख़्याल बनकर रह जाना
और किसी के ख़यालों में आना,
दो अलग पहलू है...

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5 FEB 2020 AT 6:05

वो कहते थे
तुम अपनी अच्छाई-बुराई
समेत मुझे पसंद हो
हर हाल में मुझे भाते हो,
तब क्यों आप सिर्फ
अच्छाई से चाह निभाते हो,
बुराई में दूर चले जाते हो ?
क्यों अच्छाई में सब अपना है
और बुराई में पराया है ?
क्यों मैं सिर्फ खुशी में भाता हूँ,
बुराई में घमंड दिखाता हूँ ?
क्यों चाहतों के फूल
मुरझा जाते हैं
और हम आपके हैं कौन ?
पुकारे जाते हैं

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4 FEB 2020 AT 21:01

सूनी डगर
डगर में मिला एक राही
साथ चला
कुछ बात बढ़ी
बात से साथ की राह रही
कभी हंसी
कभी ठठ्ठा हुआ
कभी सहमी सी बात भई
राही से कब वो अपना बना
इसकी न हमें कुछ खबर रही
साथ बढ़े, साथ चले
पर न जाने कब वो दूर भए
फिर वही आ पहुंचे हम
सूनी डगर
तन्हा सफ़र

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30 NOV 2019 AT 9:30

न! मत निकल तू घर के बाहर
न ले तू किसी की मदद
नोच लेंगे ये दरिंदे हैं
घर में ही तू डेरा डाल

सिसक,बिलख और घुट-घुट तू जी
इस दुनिया से दूर भाग
न है यहाँ तेरा वज़ूद
घर में ही तू डेरा डाल

है अंधेरे में तिरा जीवन
खिड़कियों से तू न झाँक
न सुन बाहर की पुकार
घर में ही तू डेरा डाल

हाथ बढ़ता जो दिखे
तिरी पाक आबरू पर
काट दे तू निकाल कृपाण
घर में ही तू डेरा डाल

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14 OCT 2019 AT 14:21

जब आने लगी
उसकी नामौज़ूदगी सताने लगी
देखा आस पास तो कोई न था
अब यादें भी दूर जाने लगी ?

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5 OCT 2019 AT 14:43

बारिश की ये बूंदे...
इन बूंदों से बनते हैं बुलबुले
बुलबुलों की चमक में
बसती है एक दुनिया
औ इस दुनिया में चमकता है सब कुछ
बसता है दिल उस चमक में
पर, बदनसीबी टिकता ही नहीं ये बुलबुला
टिकता ही नहीं...
उस दिल मे बसी चमक का ये बुलबुला
बनता, बिगड़ता
फिर बनता, फिर बिगड़ता
करता इसी तरह ये मस्तियाँ
बारिश का वह मस्तीखोर बुलबुला

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8 SEP 2019 AT 23:19

मैं पास बैठे उन्हें अपना समझ रहा था
मगर... हवा कुछ कह रही थी
वो थोड़ा सरके तो हम भी सरक रहे थे
मगर... हवा कुछ कह रही थी
मैंने कंधे पर हाथ बढ़ाया तो वो ज़रा मचल रहे थे
मगर... हवा कुछ कह रही थी
मैं उनकी ओर पलटा तो वो भी पलट रहे थे
मगर... हवा कुछ कह रही थी
मेरा दिल ज़ोरो धड़क रहा था वो नाख़ून रगड़ रहे थे
मगर... हवा कुछ कह रही थी
मैं कुछ कहना और वो बोलना चाह रहे थे
मगर... हवा कुछ कह रही थी
मैंने चाहा कि हाथ थाम लूँ पर वो दूर जा खड़े हुए
हवा यही कह रही थी...

अब सब कुछ साफ-सा था
वो सरकना, सरकना न था
वो मचलना, कसकना सा था
वो पलटना, हटना सा था
वो रगड़ना, खीजना सा था
वो बोलना, झगड़ना सा था
आखिर हवा यही तो कह रही थी...

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22 JUL 2019 AT 19:19

इस इंतज़ार का भी अपना एक मज़ा है
और रही बात प्यार की...
तो मीठा-सा दर्द और एक प्यारी सी सज़ा है

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