हम उसको उसके बालों से पकड़ लेते हैं,
उसके गालों में उंगलियां धंसा जकड़ लेते हैं
उसकी रूह को,
अपनी नज़रों के कैद में।
बस फिर क्या,
हम बस प्यार करते है उससे पूरे टूट के,
और उसकी प्यास बढ़ती जाती है मेरे हरेक घूंट से।
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के फिर से वो मौसम आ ही गया,
जब पेड़ों पे उम्मीद की कलियाँ खिल उठी हैं,
और घोंसलों से निकल सपने आसमां को उड़ चले हैं,
के चाहतें चचहाने लगी हैं सुनो फिरसे
और रास्ते भी देखो फिरसे मंज़िल को मुड़ चले हैं,
पूरा जहां हीं जैसे है एक शुरुआत कर रहा,
के देखो फिर से वो मौसम आखिर आ ही गया।-
वो आये अचानक अपने घर और सारा हीं कुछ ले गए,
अब आठ दीवारों के बीच, अकेली एक छिपकली रहती है।-
चाँद तारों के बीच कुछ यूँ गायब हो गए तुम,
जैसे बादलों पे चेहरे आते और ओझल हो जाते हैं।-
सांसे-क-दम काम-औ-ज़िन्दगी दौड़े
किस्मत को मारने मेहनत कर ख़ुदकुशी दौड़े,
थक कर गिर जाए आँखों से चेहरे के रंग जो
नज़रों के आगे इक बार पाँव तले ये ज़मीं दौड़े।-
खड़े खड़े ही गिर गएं हम उसकी नज़र में,
जो पड़े पड़े बंद पड़ गया मुझे देखते देखते।-
खड़े खड़े ही गिर गएं हम उसकी नज़र में,
जो पड़े पड़े बंद पड़ गया मुझे देखते देखते।-
अंधेरे में चिराग तले,
कुछ ऐसे खो गए,
पत्थर को पूजते पूजते
पत्थर ही हो गए।-
चलते चलते उसने जो
रास्ता बदल लिया,
मंज़िल पे मिलूंगा
तो उसे क्या मुँह दिखाऊंगा।-