इसलिए भी चाय.... मीठी बहुत पीता हूं......
लोग कहते हैं... मेरी जुबान कडवी बहुत है।।-
B'day: 25th, November
Native: वृंदावन,mathura,up
'दिन' गुजरता है दफ्तर के कामों में,
और 'रात' को तनहाई खा जाती है।
घर से निकलते तो हैं हम आसमान को छूने,
और फिर कंधों पे जिम्मेदारी आ जाती है।।-
"बात होनी चाहिए"- Media is not talking about these issues. But we should talk about these issues in 2020....
1. Ram mandir issue : resolved by bjp govermment ✔️
2. Covid cases: Partially resolve〰️ lockdown.... Speed of spread of covid cases rduce but... covid cases still continously increasing. Soon india will india on the top in the the no. Of cases in world.
3.Economic growth: unresolved ❌- gd growth rate is continuously reducing regularly since 2016 .... And it reach to -21.9 after lockdown.
4.Employement : unresolved❌ unemployement rate is continuously increasing since july 2017.... After 2020 covid pandemic.... It reaches to 23.5% in april,2020.... Around "12 crore people" lost their jobs due to lockdown.
5. Job creation : unresolved ❌ The pace of employment growth in India slowed in the last two years with job creation growing 3.9% in 2017-18 and 2.8% in 2018-19.
6. Border issue with china: unresolved ❌ - talks continued.
7. Flood in assam and bihar : unresolved ❌ Around 500 people dead & 1.26 crore peope affected by flood.
- @vishal_s1ngh-
मेरा नसीब मेरी चाह से कभी इत्तेफाक़ नहीं रखता
करता हूं जिसकी भी तमन्ना बस वही नहीं मिलता
कुछ बचा नहीं कहने को तो भी मुँह नहीं मोड़ता
तजुरबेकार है वो फिर भी दिल नहीं तोड़ता
मुझे शिकायत है कि अब वो मुझे याद नहीं करता
वो इस बात पे खफा है कि मैं उसे फोन नहीं करता
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हम तो निकले थे उस सफर पे जहां सैलाब बहुत था,
अब कश्ती थोडी डगमगाने लगी तो घबराना क्या।
जो मिले ही थे मेरा मुकम्मल मुस्तकबिल देख कर,
अब मुफ़लिसी में छोड़ चले तो अफसोस जताना क्या।
माना नहीं रही वो आबोहवा और ना रहा 'विनोद',
अब जो नहीं रहा उसके लिए अवसाद में जाना क्या।-
ये जो शख्स हस रहा है बात बात पर...
सुना है किसी बात पर कल रोया बहुत है।-
जी नहीं लगता अब घर में, चलो मन बहलाने का कुछ जुगाड़ करते हैं।
ना जाने कब से बेकार बैढे हैं, आओ 'हुस्न और इश्क' की बात करते हैं।।
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"व्यंग्य"
देखो चुप रहो! कुछ भी मत बोलो।
तुम्हारा यूं मुखर हो जाना बुरा लगता है।
मत जगाओ किसी को झकझोर करके,
अंधकार में सोते रहना ही अच्छा लगता है।।
होते हैं हर सिक्के के दो पहलू ,तो होने दो।
सच वही है जो नजरों के सामने होता है।।
संतुष्टी पानी हो तो सांप को दूध पिलाओ।
भैंस के आगे बीन बजाने से क्या होता है।।
क्यों बुरा बनते हो किसी को आईना दिखाकर।
तुम भी मिलो सबसे अलग-अलग मुखौटा लगाकर।।
चलो... सही-गलत से परे बहती गंगा में हाथ धो लो।
और अपनी विफलताओं का ठीकरा दूसरों के सर फोड़ दो।।-
बस अब छोड़ दूंँ या यूंँ ही चलने दूंँ,
ये जो मुश्किलों का 'सिलसिला' है।
निराशा-हताशा के बीच...
बहुत तकलीफ दे रहा,
दिल में जो उठ रहा 'जलजला' सा है।।
अटकलें लगाने या रुस्वा होने का क्या फायदा?
मेरे दोस्त... कभी आओ बैढो... गुफ्तगू करो।
तब तो पता चले...
कि आखिर क्यों आजकल
ये शख्स इतना 'चिड़चिडा़' सा है।।-
मजदूर की गुहार
छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लिए मैं चल रहा हूँ,
रेल की पटरियों पर पैदल ही आगे बढ़ रहा हूँ।
भूख से बिलखते बच्चों को धीरज बंधा रहा हूँ।
हजार कोस को, बस जरा सी दूर बता रहा हूँ।।
मध्य रात्री में ग्रामीण इलाकों से गूजरने पर
जानवरों से नहीं, इंसानों से डर रहा हूँ।
ना जाने कब कौन किधर से टूट पडे,
"चोर चोर... मारो मारो" का शोर गूंज उठे।।
ऐसे ही सैकडों डर हैं मन में
फिर भी आगे बढ़ रहा हूँ।
कभी ट्रक में छिप के,कभी साईकल से,
तो कभी पैदल ही घर जाने की जद्दोजहद में लगा हूँ।।
हे सरकार मेरा ये निवेदन सुनो...
अब ना बचा है रुपया पैसा, ना है कुछ खाने को,
और मन व्याकुल है परिजनों के पास जाने को।
नागरिक ना सही मानव समझ ये उपकार करो,
हमें स्वतः ही सड़क मार्ग से निज धाम जाने दो।।-