कहानियों की कोई उम्र होती हैं क्या या फिर ये सारी कहानियाँ बे-उम्र होती हैं कहानी कभी खिलखिलाते, मुस्कुराती हुई किताबों में मिलती है तो कभी गहरी बातें, गहरा ज़ख्म लिए हुए अपने शब्दों में छुपी मिलती है
जलती हैं मशालें मिसालों से ज़ुबान से निकले अल्फ़ाज़ ही काफी हैं खबर ना छपती तो ना छपें, ज़रूरत नही है उन बिके हुए अखबारों की लिखते हैं वही जो पढ़ाना चाहते हैं सच्चाई क्या है असल में ये तो बस छुपाना चाहते हैं।
Bana Diya hai khudko is qaabil maine ki koi qabiliyat nazar nahi aati haal too kuch yun hai aajkal ki meri Parchhayi bhi meri hi hai is baat se ab muqar jaati..