Vishal Narayan  
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Joined 10 October 2017


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Joined 10 October 2017
28 MAY AT 15:01

मान लो मैं लौट भी आया तो क्या करोगी
नैनों से नीर बहाके खुशी से पागल हो जाओगी
पागल हो जाने से तुम्हारा मौजूदा हाल बेहतर है
बस यही सोचकर फिर लौट नहीं पाता मैं....
✍️--" विशाल विद्रोही "








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22 APR AT 22:35

जिन्दगी के कई पाटों में एक साथ पिसा होना
पिता को समझने की पहली शर्त है पिता होना।
✍️--" विशाल विद्रोही "







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22 APR AT 22:08

बहुत कुछ करने की चाह में कुछ भी कर नहीं पाते
कायदे से जीना तो छोड़ो कायदे से मर नहीं पाते।

एक जल्दी दूजा बेचैनी उसपर भगदड़ मचा रखी है
साँसें चढ़ते चढ़ते छूट जाती हैं पर सबर नहीं पाते।

आजकल ज्यादा बेताबी इश्क में सब पाने को है
पहले तब तक डूबते थे जब तक कि तर नहीं पाते।

खूब मेहनत से पढ़ाई कर के एक नौकरी मिलेगी
तरक्की को शहर का क्वार्टर समझते घर नहीं पाते।

ठहर जाओ, साँस ले लो कहनेवाले भी तो नहीं रहे
वो होते तो इतनी जल्दी परेशानी से भर नहीं पाते।
✍️--" विशाल विद्रोही "




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21 APR AT 17:50

चाहे मर जाएं चाहतें सारीं
ख्वाब एक जिंदा रहे
तू बढ़ते बढ़ते बूढ़ा हो जा
मन चंचल परिंदा रहे।
✍️--" विशाल विद्रोही "







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21 APR AT 17:39

परेशानियों से खीझ अपने आप से लड़ रहे हैं लोग
वक्त क्या बदला कि अपने बाप से लड़ रहे हैं लोग।

उसी नंबर के जूते से आज फिर जख्मी हुआ है पैर
पहले जूते से फिर उसके नाप से लड़ रहे हैं लोग।
✍️--" विशाल विद्रोही "






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21 APR AT 17:15

मेरे होठों पे लाली चेहरे पे रंगत छा ही जाती है
तुम्हारे साथ हो फोटो तो ठसक आ ही जाती है।
✍️--" विशाल विद्रोही "

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19 APR AT 16:16

मौका ला कर न देगा कोई कुछ करने का
जज्बा जूनून खुद से लाना होगा लड़ने का
सोच के बताओ खुद क्या कर रहे हो तुम
या फिर इंतजार कर रहे हो सिर्फ मरने का।
✍️--" विशाल विद्रोही "








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19 APR AT 16:08


कई तरीकों से चल के देखे हमने
संतोष न हुआ तो रस्ते बदल के देखे हमने।

तुमको लगता है कि अनुभव ज्यादा है
ठोकर खाके गिरे फिर संभल के देखे हमने।

एक ख्याल भी हमें राजा कर देता है
झोपड़ी में बैठ सपने महल के देखे हमने।

तजुर्बा है कि हसीनों से बच के रहो
पास आए तो काँटें कमल के देखे हमने।

जो मर गया हूँ अब क्या गवाही दूँगा
आँखों से निशान अपने कतल के देखे मैंने।
✍️--" विशाल विद्रोही "

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19 APR AT 8:58


धीमे धीमे किरणें आई पूरब में लिए अरूणाई
सूरज जैसे मुस्काता है सपनों की सुबह मुस्काई....

छोड़ छाड़ पुरानी बातें नया नया कुछ कर जाना है
त्याग के गम के सारे गहने हमको भी अब मुस्काना है।

दिल को मर्जों को देना है खट्ठी मिठी कोई दवाई...

थकने जैसी बात नहीं है पैरों में अब पंख लगेंगे
आसमान ये क्या होता है उसके भी उपर से उडेंगे।

हवा पे अपनी नाव चलेगी पतवारें होंगी पुरवाई...

सपनों की बस बात नहीं ये सच में सच कर दिखलाना है
बाधाओं को पीछे करके आगे बहुत आगे जाना है।

ठान लिया तो डरना कैसा देखेंगे जैसी होगी लड़ाई....
✍️--" विशाल विद्रोही "





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17 APR AT 22:03

नजर से नजर मिलाके नजर चुराने से पहले
कोई तो वजह बताई होती जाने से पहले।
✍️--" विशाल विद्रोही "

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