Vishal Mishra  
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Joined 16 May 2020


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Joined 16 May 2020
12 JUL 2022 AT 14:47

हसरतें दिल में दबी रह गई हैं ख्वाहिशें सहमी-सहमी रह गई हैं कहने को तो बहुत कहा मगर बातें बहुत सी अनकही रह गई हैं

दिल पर तो पत्थर रखा था मगर आंखों में नमी रह गई है, कोशिशें तो बहुत हुई मगर शायद कही कुछ कमी रह गई है

खत्म कहां हुए हैं सारे ताल्लुक कुछ यादें हैं जहन में जमी रह गई हैं हमको गुजरे हुए एक अरसा हुआ अब बस नाम की जिंदगी रह गई है..

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11 JUL 2022 AT 8:51

मुखौ चेहरे पर मुखौटे लिए हुए भीड़ में चल रहे है लोग कौन अपना है कौन पराया इन्ही सवालों का, दिल पे है बोझ

सोचता हूँ ऊंचाई से गिरकर देख शायद मुझे मेरी औकात पता चले किस किस के हाथ बढ़ते है उठाने जिससे मुझे अपनों का पता चले

मुस्कुराते हुए मुखौटे अक्सर झूठ का सहारा लेते है गिरगिट की फितरत है इनकी जब चाहे मुखौटा बदल लेते है

इन मुखों से डरती हूँ मैं अब न जाने छेड़ दें ये कोनसा राग हर मुखौटे के पीछे छिपे है म जाने कितने गहरे राज

धीरे धीरे सिख रहा हूँ, इन मुखौटो को पड़ना अब छुपाये नहीं छुपती, इनकी जात और औकात क्योंकि माथे की लकीरों पे...... छिपी रहती है इनके दिल की हर बात

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10 JUL 2022 AT 9:20

चेहरे की हसी दिखावट सी हो रही है असल ज़िन्दगी भी बनावत सी हो रही है

अनबन बढ़ती जा रही रिश्तों में भी अब अपनों से भी बग़ावत सी हो रही है

पहले ऐसा था नहीं जैसा हूँ आजकल मेरी कहानी कोई कहावत सी हो रही है

दूरी बढ़ती जा रही मंज़िल से मेरी चलते चलते भी थकावट सी हो रही है

शब्द कम पड़ रहे मेरी बातों में भी ख़ामोशी की जैसे मिलावट सी हो रही है

और मशवरे की आदत न रही लोगो को अब गुज़ारिश भी शिकायत सी हो रही है

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9 JUL 2022 AT 17:52

मुझे बचपन में स्कूल जाने का मन नहीं करता था, पर जब से मोहब्बत हुई, तो स्कूल छोड़ने का मन नहीं करता था।.....❣️

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8 JUL 2022 AT 11:52

अपने साये को अँधेरों में, दर-बदर भटकते देखा है,अरमानों को हालातों की सूली पे लटकते देखा है। विशाल सागर सी बहती थी जो, कभी ये ज़िन्दगी, उसे सिकुड़कर एक पोखर में सिमटते देखा है। विचरण करते थे जहाँ, असंख्य जीव स्वप्नों के, उस हरे-भरे जंगल को, रेगिस्तान में बदलते देखा है। जिसकी हँसी ने हर लिए सौ दर्द कितने दिलों के, उस खिलखिलाते बच्चे को, दर्द से बिलखते देखा है। जिसकी किरण से जाग उठती थी सोई हुई उम्मीद, हर शाम उस सुनहरे सूरज को भी ढलते देखा है। कभी जम सा जाता था जो मेरे अभिनंदन' के लिए,उस समय को भी आज बर्फ़ सा पिघलते देखा है। अरमानों को हालातों की सूली पे लटकते देखा है।

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6 JUL 2022 AT 16:06

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

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6 JUL 2022 AT 7:04

खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं, जिसे भी देखो परेशान बहुत है।

करीब से देखा तो निकला रेत का घर, मगर दूर से इसकी शान बहुत है।

कहते हैं सच का कोई मुकाबला नहीं, मगर आज झूठ की पहचान बहुत है।

मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी, यूँ तो कहने को इन्सान बहुत है।

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2 JUL 2022 AT 8:00

अभी दिल में दर्द कम है, अभी आंख तर नहीं है तेरे ग़म से मेरा रिश्ता अभी मोतबर नहीं है

हैं ज़माने भर में चर्चे मेरी सर बुलंदियों के ये इनायतें हैं तेरी ये मेरा हुनर नहीं है

तुझे लिख के जो न चूमे तुझे देख कर ना झूमे तो जुबां जुबां नहीं है, वो नज़र, नज़र नहीं है

ये ज़माना लाख गुज़रे नये हादसों से लेकिन मैं तेरी पनाह में हूं, मुझे कोई डर नहीं है

ये जो आख़िरी सफ़र है यही हासिल-ए-सफ़र है मग़र इस सफ़र में अपना कोई हमसफ़र नहीं है..

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1 JUL 2022 AT 17:37

बात बात पर तकरार करते हो। तुम ये कैसा प्यार करते हो।। रूठ जाते हो बात बात पर । नाराजगी भी बेशुमार करते हो।। बात करते हो छोड़ जाने की। महोब्बत भी कमाल की करते हो ।। लग न जाए जिस्म पर घाव कहीं । तुम लफ्ज़ो से वार करते हो ।। अपनी गलतियों को छुपाने के।। तरीके हजार रखते हो।। साथ मेरे होते हुए भी। बातें किसी और की करते हो।। महसूस करते हैं तुम्हारे जज़्बातों को। तुम प्यार किसी और से करते हो ।॥

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1 JUL 2022 AT 14:32

प्रेम में यदि तुम उसे ना दे सको प्रेम तो मत छीनना उससे वियोग में जीने का सुख

भले ही वो तुम्हारे साथ भांवर ना ले पाए पर भंवर मे तुम्हारा साथ प्रेम से देगी

प्रेम को अधिकार से अधिक कर्तव्य का भान होता है!

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