गज़ल
तुमने कहा जो है सही ही है, मगर तोड़ा मुझे,
हां छोड़कर तूने कहीं का भी नहीं छोड़ा मुझे।
तन्हा किया तुमने मगर होनी खुशी ही चाहिए।
तेरी खुशी में भी खलल है देखकर रोता मुझे।
तुमने मुझे रोने कहा मैं रो पड़ा, फिर क्यों कहा,
"रोता हुआ जो शख्स है अपना नहीं लगता मुझे"
छोड़ी मुझे तू और फिर तुमको लगा संभल गया।
तू लौटकर आया नहीं इसका जख्म हैं गहरा मुझे।
उसके शहर में ही कहीं होता अगर मेरा मकाँ ।
मैं रो रहा हूं देखता तो रोक ही लेता मुझे।
:- विशाल कुमार वैभव-
गज़ल
तुमने कहा जो है सही ही है, मगर तोड़ा मुझे,
हां छोड़कर तूने कहीं का भी नहीं छोड़ा मुझे।
तन्हा किया तुमने मगर होनी खुशी ही चाहिए।
तेरी खुशी में भी खलल है देखकर रोता मुझे।
तुमने मुझे रोने कहा मैं रो पड़ा, फिर क्यों कहा,
"रोता हुआ जो शख्स है अपना नहीं लगता मुझे"
छोड़ी मुझे तू और फिर तुमको लगा संभल गया।
तू लौटकर आया नहीं इसका जख्म हैं गहरा मुझे।
उसके शहर में ही कहीं होता अगर मेरा मकाँ ।
मैं रो रहा हूं देखता तो रोक ही लेता मुझे।
:- विशाल कुमार वैभव-
उसके शहर में ही कहीं होता अगर मेरा मकाँ ।
मैं रो रहा हूं देखता तो रोक ही लेता मुझे।
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तुमने कहा जो भी सही ही था, मगर तोड़ा मुझे,
हां छोड़कर तुमने कहीं का भी नहीं छोड़ा मुझे।
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उसने मुझे रोने कहा मैं रो पड़ा, फिर ये कहा,
"रोता हुआ जो शख्स है अपना नहीं लगता मुझे"-
तन्हा किया उसने मगर होनी खुशी ही चाहिए।
उसके खुशी में भी खलल है देखकर रोता मुझे।
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