मेरी माँ की मैं क्या ही बात करूँ मेरी भूलों को अक्सर हँस कर माफ़ कर दिया करती है लेकिन जब दुखाता हूँ दिल किसी मैं समझाने को सही राह मुझे दुःख दिया करती हैं खुद को मैं क्या करूँ उनका मुझे इतना प्यार जो करती है वो कैसे बताऊँ उनकी रहमतों के बारे में तुम्हें उनकी रहमतों से मेरी जिंदगी में खुशियों की बहार है मैं चाहें कितनी भी बार मैला हो जाऊँ वो हर पल हँस कर मुझे साफ कर दिया करती हैं ।।
* तेरी रहमत पर जो अगर लिखने लग जाऊँ माँ *तो लग जाये साल हजारों माँ *मेरी कलम तो पहले ही छोटी है "माँ"* और एक तेरी महिमा हैं माँ जिसका कोई ओर नहीं तुम ममता का सागर माँ तुम से है जीवन मेरा माँ
अब क्या ही लिखूँ में उसके लिये जिसके ख्याल से मेरा दिन बन जाता है जब जब आँखे तलाश करती है उसे ढूंढता फिरू फिर जगह जगह उसे अब दिल की अपने अब क्या ही कहूँ जो खोया उसी मे रहता है दिल में वो ही रहती है मेरे यहां जोर उसी का चलता है जब जब लिखता हूँ उसके लिए अल्फ़ाज अधूरे पड़ते हैं अब क्या ही कहूं मैं उसके लिए जिसके ख्याल से मेरा दिन बन जाता है
वो मेरे आस-पास रहती है, दिल, सांस और ख्वाबों से होकर वो गुजरती है, चाहकर भी मैं कभी थाम नहीं पाया उसकी बाहें, वो मेरा अधूरा इश्क़ है, सुना है इश्क में ऐसे ही अन्दर ही अन्दर आग सुलगती है, दिल की बातें कितना छुपाओगी, अब तो कह दो, अगर इन बैचेन निगाहों में इश्क है, तो गले लगा लो।
घर की ये जान होती हैं, माँ पापा का अभिमान होती हैं बेटियाँ ये बेटियाँ सर्दियों की मीठी सी धूप सी प्यारी होती है उसकी एक मुस्कान पे खिल उठता है आँगन सारा , उसकी खिलखिलाहट से महक उठता है आँगन सारा।। भाग्य अगर बेटा है, तो सबका सौभाग्य हैं बेटियां फूल कितने भी हो भले आँगन में, पर घर को महकाती है बेटियां।।